नेग रिवाज़
नेग रिवाज़
शादी...और त्यौहार..नाम सुनते ही लोगो को बड़ा जोश आ जाता है।
अपनी संस्कृति और परंपरा को हम बड़े शान से आगे बढ़ाते हैं और खुशियाँ मनाते हैं।
शादी जैसे और कई फंक्शन में बहोत सारी रसम होती हैं..जो पुराने रीत रिवाज़ो और संस्कृति की देंन हैं जैसे की..अगर लड़की की शादी हैं तो उसकी बिदाई के वक़्त उसे गुड़ और सुूकून की मिठाई दि जाती हैं उसका ये मतलब ...गर ससुराल दुर हो और दुल्हन को भूख लगे तो खा सके किसी से मांगने की जरुरत ना पड़े...
एसे कई रसम हैं जिसके पीछे कोई ना कोई अच्छा कारन जुड़ा होता है
नेग रिवाज़ की बात करे तो ये अच्छा हैं की कुछ रस्म में पैसे देने होते हैं जिसके पीछे भी कोई ना कोई कारन होता हैं मगर ये नेग उतनी ही होनी चाहिए जितनी देने की क्षमता हो मगर पर जैसे की शादी में ज्यादा मांगना दहेज़ में ये ठीक नहीं हैं कानून के खिलाफ भी हैं
उससे दुल्हन को परेशानी हो सकती है।
कभी कभी बात मरने..या मारने पर भी आ जाती है। ऐसे रिवाज़ का कभी स्वीकार नहीं होना चाहिए।
मैं तो कहती हूँ अगर हम शादी में पैसों का लिफाफा दे सकते हैं उसी तरहा से जहां कोई मृत्यु हुई हो वहां भी देने चाहिए। जिससे वो अकेला या अकेली अपनी ज़िंदगी कि कुछ दिन अच्छे से काट सके..तब उनको पैसों की ज्यादा जरुरत होती है।
हम भगवान के सामने पैसे रखते है क्या वो पैसे हम गरीब संसथान को नहीं दे सकते ? जिसे गरीब बच्चों की परवरिश हो ?
कुछ रिवाज और कुछ परम्पराये गर समय से रहते जन हित में बदली जाए तो काफी बदलाव ला सकते हैं।
सारी रीत-रस्म अच्छी ही है बस थोड़ी सोच बदलनी है।