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Churaman Sahu

Tragedy Inspirational Children

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Churaman Sahu

Tragedy Inspirational Children

नदी

नदी

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ऊँचे पहाड़ों से निकलकर ,पथरीले रास्तों को पार करके आगे बढ़ती है। पेड़ पौधों और घने जंगल से बहती हुई मैदानी इलाक़ों में बहुत अधिक दूरी तय करती हैं । वह बहना पसंद करती हैं और आगे बढ़ते रहना उसकी आदत सी हैं। पर क्या किसी ने सोचा उसे भी पीड़ा होती हैं ,क्या नदी के तकलीफ़ कोई देख पाया हैं । और होती भी होगी तो किसी से क्या कभी ओ कह पायी ।

वह जब उद्गम स्थान से बहती तो धाता बहुत पतली होती है ।उसके रास्ते में छोटे बड़े कई चट्टाने आ जाती हैं । अपनी तेज धारा की तेज प्रवाह से लगातार प्रयास से चट्टान को काटकर रास्ता बना ही लेती हैं ।

जब उच्चे पहाड़ों से नीचे गिरती हैं तब मधुर आवाज़ करती हैं। प्रकृति प्रेमी को वह दृश्य बहुत ही पसंद आता हैं । मगर मेरे नजरो में वह एक चेतावनी होती हैं उसे रोकने वाले के लिए । 

वह कहना चाहती हैं मेरी रास्ता में कोई रुकावट बन कर न आए नहीं तो और अधिक गति से उसे भी चिरते हुए आगे निकल जाऊँगी । उसकी आवाज़ को समझ पाती हैं तो वह हैं छोटी छोटी सहायक जल धारा तो रास्ते में अपना मूल रूप को और नाम को भूल कर बड़ी नदी में समाहित कर लेती हैं। आगे बड़ते हुए जब वह मैदानी इलाक़े में बहती हैं । तब अपनी गति तो कम करके अपने किनारों को दूर दूर तक किनारा का विस्तार लेती हैं ।

तब वह एक जीवन दाहिनी हो जाती है ।आस पास से गाँव के लिए वह मानो वरदान सा हो जाती हैं । उसके किनारे में किसानों को खेती के लिए पानी मिलता है ।खेतों में लहलहाते फसल देख कर और किसान की चेहरे की मुस्कान देखकर नदी को सुकून मिलती होगी कि उनका संघर्ष व्यर्थ नही गया । 

नदी आगे बहती हैं और छोटे से बड़े शहर के पास से भी गुज़रती । लोगों की प्यास बढ़ती जाती हैं तो वह तकनीक का प्रयोग कर उस बहती नदी के धारा को रोक कर उस ऊँचे बांध बना लेते हैं । ऊँचे बांध बन जाने से उसकी प्रवाह रुक सी जाती है ।उसे दुःख अवश्य होती होगी ।मगर नदी परोपकार करना जानती हैं इसलिए उस बांध से बहुत सारा जल को दूर दूर तक नहरों के द्वारा लोगों तक पहुँच कर सभी की ज़रूरत को पूरा करती हैं ।

क्या किसी इंसान के ऊपर कोई कीचड़ डाल सकता है और अगर गलती से कोई फेंक दे तो क्या उसे बुरा नहीं लगता है । अवश्य लगता है । लेकिन नदी जब बड़े शहरों से होकर गुजरती है तब क्या होता है ?

शहर की सारी गंदगी नदी में उड़ेल दी जाती है । कहीं कहीं तो बड़े कारखाने से निकलने वही दूषित रासायन युक्त जल भी नदी में छोड़ दिया जाता है । इससे नदी को सबसे ज़्यादा पीड़ा होती होगी । उसमें मिलने वाले रसायन से वह अपने मूल रूप को जाने का डर उसे होती होगी ।

बस उसे आगे बहने की इच्छा मानो मर सी जाती है । वह सोचती होगी मैं तो जीवन दायनी हूँ, मिले हुए दूषित जल को किसी गांव से होकर गुजरना न पड़े ,जिससे किसी पशु पक्षी और अन्य जीव के मौत का कारण न बनना पड़े । वह मजबूर और इसलिए बहती चली जाती है ।कोई भी उसके पीड़ा को क्यों नहीं समझता ?

ये बात नदी को समझ आ चुका होता है इसलिए वह जैसे तैसे आगे का सफर करती हुई खारे पानी के समुद्र में मिल जाती है । 

समुद्र में मिलकर नदी अपना अस्तित्व को देती है । जल चक्र में समुद्र का पानी सूर्य के प्रकाश से वाष्प बन कर उड़ जाती है और आसमान में बादलों के रूप में उपर घूमते रहते है । वही बादल फिर से बरस पड़ती है ।गिरती हुई बारिश के बूंदें पेड़ ,पहाड़ से होती हुई उस नदी में मिलती होगी ।नदी उन बुंदों को शायद पहचान पाती होगी और एक माँ की तरह ख्याल रखती होगी ।


बहती नदी ,बहती नदी 

बहुत कुछ कहती नदी 

ऊँचे पहाड़ो से गिरती नदी 

चट्टानों को चीरती नदी 

बाँधो के दीवारों में घिरती नदी 

खेती को सिंचती नहीं 

शहरों की प्यास बुझाती नदी 

गंदे नालों को समा ले जाती नदी 

कितना दुख सहती नदी 

फिर भी कुछ न कहती नदी 

फिर भी नहीं रुकती नदी 

कौन देखभाल करेगा सोचती नदी 

चीखती, पुकारती सूखती नदी 

बहती कुछ कहती नदी 

बहती नदी ,बहती नदी 



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