🪔 मिट्टी का दीया 🪔
ओह, ये बिजली को भी अभी जाना था…
अभी तो बस सोच ही रहा था कि कुछ लिखा जाए।
इतने में टेबल से पेन नीचे गिर गया।
उसे उठाने को झुका तो कोने में पड़ा मिला — एक पुराना मिट्टी का दीया।
उसे देखते ही याद आया —
पिछली दिवाली पर खरीदा था।
बस वैसे ही पड़ा रहा, जैसे कई भाव हमारे दिलों में पड़े रहते हैं।
सोचा, चलो इसे साफ़ कर दूँ, थोड़ा तेल डाल दूँ, एक बाती रख दूँ।
और जैसे ही दीया जला —
पूरा कमरा उजाले से भर गया।
बिजली तो गई थी, पर दीये की लौ ने जैसे कहा —
“क्यों न इस बार मेरे बारे में लिखा जाए?”
🌿 मिट्टी और इंसान का रिश्ता
हम चाहे जितने भी आधुनिक क्यों न हो जाएँ,
पर मिट्टी से जुड़ा रहना ज़रूरी है।
जैसे पेड़ ऊँचा होता है,
तो उसकी जड़ भी मिट्टी में उतनी ही गहरी जाती है।
मिट्टी ही तो मज़बूती देती है,
जीवन को भी और इस दीये को भी।
और यह मिट्टी का दीया,
सिर्फ एक वस्तु नहीं — एक जीवन यात्रा है।
एक कहानी है उन हाथों की,
जो दिन-रात मिट्टी से रौशनी गढ़ते हैं।
🪔 दीये की यात्रा — मिट्टी से उजाले तक
सुबह-सुबह कुम्हार भीगी मिट्टी गूंथता है।
धीरे-धीरे, दोनों हाथों से उसे आकार देता है।
घूमते चाक पर वह मिट्टी नाचती है,
और एक-एक करके दीये जन्म लेते हैं।
हर दीया उसकी उंगलियों की छाप लिए होता है —
मेहनत की, उम्मीद की, और प्यार की छाप।
फिर उन्हें धूप में सुखाया जाता है।
कभी मौसम साथ देता है, कभी बारिश सब बिगाड़ देती है।
पर वह आदमी हारता नहीं।फिर से चाक घुमाता है,
फिर से मिट्टी गूंथता है,और नए दीये बनाता है —
हर बार नई उम्मीद के साथ।
जब दीये तैयार हो जाते हैं,वह उन्हें टोकरी में भरता है,
कंधे पर रखता है,और निकल पड़ता है — बाजार की ओर।
धूप, धूल और थकान के बीच वह सड़क किनारे बैठता है,अपने दीयों को सजाता है और हर ग्राहक की ओर उम्मीद से देखता है।
हम और वो
और हम —
उसी से मोलभाव करते हैं।
“भैया दो रुपये कम कर दो…”
“तीन में चार दीये दे दो…”
सोचो ज़रा,
कभी-कभी जहाँ ज़रूरत नहीं, वहाँ हम बिना सोचे पैसा खर्च कर देते हैं। पर जब किसी मेहनतकश की बात आती है,
तो हमें हर सिक्का गिनने की आदत पड़ जाती है।
उस दो-तीन रुपये के फर्क से शायद उसके बच्चे भी उस रात
नए कपड़े पहन सकते हैं,थोड़ा अच्छा खाना खा सकते हैं,
और कह सकते हैं —“आज हमारे घर भी दिवाली है।”
असली रौशनी
मुझे पसंद हैं वो, जो मिट्टी से दीये बनाते हैं।
पसंद इसलिए नहीं कि वो बेचते हैं, बल्कि इसलिए कि उनके बनाये दीयों से मेरा घर, मेरा आँगन दिवाली में जगमगा उठता है।
बाज़ार में बहुत दीये मिलते हैं —
रंगीन, काँच के, बिजली वाले भी।पर मिट्टी के दीये की बात ही कुछ और है।उसमें मेहनत है, खुशबू है,और अपनापन भी।
इसलिए मैं हर साल उसी दिए वाले का इंतज़ार करता हूँ।
क्योंकि उस छोटे से दीये में किसी की ज़िंदगी की पूरी कहानी छिपी होती है।
इस बार जब दीया खरीदो, तो मिट्टी का ही लेना।
क्योंकि उसकी रौशनी सिर्फ घर नहीं, किसी का मन भी जगमगाती है।
उस छोटे से दीये को जलाते समय
याद रखना —
तुम सिर्फ दिवाली नहीं मना रहे,
किसी की मेहनत, किसी की उम्मीद,
और उस मिट्टी को भी सलाम कर रहे हो,
जिससे सारा उजाला जन्म लेता है।
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