मुफ़्त की हवा
मुफ़्त की हवा
आज ज़िन्दगी दो कमरों के घरों में सिमट कर रह गई है। जहाँ आँगन तो है ही नहीं,
बस छोटे से बालकनी में बैठकर सामने ऊँची इमारतों और छोटे से मैदान पर कुछ लोगों को टहलते देख पाते हैं।
प्रकृति ने हमें आज उन्ही छोटे-छोटे कमरों में रहने को बाध्य कर दिया, ताकि हमें अपनी गलती का अहसास हो सके।
आखिर गलती किसकी है? जिन घरों के बंद कमरों में हम रह रहे हैं, पहले वहाँ पर क्या था ? कुछ वर्ष पहले वहाँ ऊँचे और बड़े पेड़ रहे होंगे। हमारी जनसंख्या बढ़ती गई और रहने को घर कम पड़ते गए। कुछ बिल्डर आए, सरकारी दस्तावेज बने, ज़मीन ख़रीद ली गई और पेड़ों की बेरहमी से कटाई शुरू हो गई। शायद जब सरकार से इजाज़त ली गई होगी तो वहाँ पर हरे भरे कॉलोनी बसाने की बात ज़रूर हुई होगी। लेकिन उन दिनों फ़ुरसत किसके पास थी, कि कोई जा कर देख सके की हरे-भरे और पेड़-पौधों से सजी घर बन रही है या नहीं।
यहाँ पर कोई कह भी सकता है कि कैसी बाते करते हो, जो घर और कारख़ाने लगाते हैं, वे पेड़ तो लगाते हैं, हाँ लगाते तो हैं, लेकिन कहीं पर यह कहाँ लिखा होता है कि पेड़ की ऊँचाई पहले जैसी हो। छोटे से पार्क में लगे हुए बोनसाई के पौधे जिन पर पत्तियाँ भी गिन कर लगे होते हैं और वर्षों लग जाते हैं उसे बढ़ने में।
छोटे से मैदान में खेलते हुए बच्चों की गेंद किसी घर की खिड़की में लग जाए या अंदर चली जाए तो उसी दिन शाम को मीटिंग बुला ली जाती है। बच्चों के खेलने के नियम भी बड़े लोग मिलकर बना देते हैं। कि उन्हें कैसा खेलना है।
लेकिन उसी मैदान के आसपास लगे पौधों की तरफ़ देखने, उसमें पानी देंने के लिए किसी का ध्यान नहीं जाता। ओ तो सिर्फ़ माली का काम है, आख़िर वह पगार जो लेता है। ऐसे लोगों को कभी कोई सभा या कही पर्यावरण पर बोलने मिल जाए तो २०-३० मिनट के लिए घोर चिंता व्यक्त करते हैं। जैसे आने वाले बरसात में तो बस १०-२० पेड़ लगा ही देंगे। उससे अच्छे तो कुछ लोग हैं जो आम जामुन खा कर बीज कही रख देते हैं जो बारिश आते ही अंकुरित हो जाती है,
फिर उसे उचित जगह देख कर उस नन्हे पौधों को लगा देते हैं और बड़ा होने तक पूरा ख़्याल भी रखते हैं।
किसी भी बात का दर्द जब तक न हो हमें अहसास कहाँ होता है। मुफ़्त में मिलने वाली हवा आज पैसा दे कर भी समय में ख़रीद नहीं पाए और उसका नतीजा हम सब जानते हैं, देख रहे हैं।कई लोगों ने अपने-अपने करीबी को खो दिया है।
मौन रहने वाली प्रकृति समय -समय पर हमें चेतावनी देती रहती है। उसके इशारों को समझना अत्यंत आवश्यक है।
जीते जी हम सबका क़र्ज़ चुकाने की कोशिश करते हैं, तो मरने के बाद क्यों उधार की लकड़ी से जलने पर मजबूर हो जाते हैं। आने वाला महीना बारिश का है कम से कम एक पेड़ ज़रूर लगा सकते हैं।
ओ नन्हा पौधा एक दिन बड़ा वृक्ष बनेगा, खट्टे मीठे फल और ताजी शुद्ध हवा मुफ़्त में देगा। कभी वहाँ से गुज़रोगे तो उसकी छाँव में ठहरना, पक्षी भी दुवाएँ देंगे, तुम्हें गज़ब का सुकून मिलेगा।।
जब तुम दुनिया छोड़ जाओगे, ओ पेड़ भी रो पड़ेगा। वही पेड़ की सुखी टहनी तुम्हारे साथ-साथ जलेगी।
ओ पेड़ इशारों में तुम्हारी कहानी सभी को सुनाएगा। छाँव की तलाश में जब कोई भटकता हुआ आएगा।।