Dr Rajiv Sikroria

Classics

4.5  

Dr Rajiv Sikroria

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नारद मुनि का पूर्व जन्म

नारद मुनि का पूर्व जन्म

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इस संसार में नारद मुनि को कौन नहीं जानता । ये वही मुनि हैं जो कि तीनों लोकों में भ्रमण करते रहते हैं , अपने इकतारा के साथ। 

यह विषय अति पुरातन है, अपितु कहने सुनने में नया ही लगता है। भागवत् महा पुराण के प्रथम भाग के प्रथम स्कन्ध के षष्ठम् अध्याय मे स्वंय नारद मुनि से वेद व्यास जी ने प्रश्न किया कि काल तो सब कुछ विस्मृत कर देता है, परन्तु आप को पूर्व कल्प की स्मृति शेष कैसे रह गयी। किसी भी मनुष्य को तो अपने पूर्व जन्म की स्मृति तक नहीं रहती है। एक कल्प, पूरा एक सहस्त्र चतुरयुग, जिसमें कि चारों युगों की ही काल गणना अत्यंत दुष्कर होती है। आश्चर्य है, परन्तु यह सत्य भी तो है ।

" देवर्षि यह आखिर कैसे संभव हुआ ?" कृपा कर हमें मानव कल्याण हेतु बतायें । 

यह कह कर वेद व्यास जी नारद मुनि के मुख की ओर देखने लगे । नारद मुनि ने अपनी पूर्व जन्म की कथा सुनाते हुये व्यास जी से कहा, मुनि वर मैं अपने पिछले जन्म में गरीब बाहृमण माँ का इकलौता पुत्र था, मेरी माँ साधु सन्तों की सेवारत थी। वो साधु लोग तीनों काल की संध्या करते थे, उनके भजन मुझे बहुत अच्छे लगते और मैं दिन रात वो भजन गाता रहता, यह देख साधु जनों का मुझ पर अनुराग बढता गया , उनकी कृपा से मेरी भगवत् भक्ति भी बढ़ गयी। अब मुझे न अपने शरीर का ही भान रहता न ही दिन रात का। इसी तरह समय जाता रहा और वर्षा तथा शरद ऋतु के बाद सभी साधु जन चले गये । मेरे तीनों गुण , सत् , रज और तम, तो पहले ही जा चुके थे मत्सर गुण भी नहीं बचा था, बस भगवत् भक्ति ही मेरा उद्देश्य हो गया। मुनि उस समय मेरी अवस्था मात्र पाँच वर्ष की थी। एक रात मेरी अनुरागी माँ दूध दुहने हेतु गौशाला गयी और उनका पैर एक साँप पर पड़ गया और उसने माँ को डस लिया तथा उनकी वहीं मृत्यु हो गयी। उस घटना के बाद मैं उत्तर दिशा की ओर चल दिया। रास्ते में मुझे अनेक प्रकार के सरोवर, पर्वत, नदियाँ और जंगल मिले परन्तु मैं चलता गया। थक कर एक वृक्ष के नीचे सो गया । जागने पर जल पिया और कुछ कन्द मूल खाये । इस प्रकार बहुत दिनों बाद , जब मैं ध्यान मग्न था तो भगवान मेरे हृदय पटल पर प्रगट हुए। मेरा मन बहुत प्रसन्न हुआ अब मैं बार-बार उनके दर्शन की कोशिश करने लगा, भजन और भक्ति में रम गया। परन्तु भगवान के दर्शन दोबारा न हो सके।

बहुत समय बाद आकाशवाणी हुई , और उसने कहा, कि इस जन्म में तुम मुझे नहीं पा सकोगे परन्तु तुम्हें मेरी भक्ति का लोप युगों-युगों तक न होगा, अगले जन्म में तुम देवर्षि बन तीनों लोकों में मेरी भक्ति का प्रसार करते रहोगे। वेद व्यास जी यही रहस्य है कि मेरी स्मृति का लोप नहीं हुआ और ईश्वरीय कृपा वश मैं देवर्षि बन कर अवतरित हुआ हूँ । इस प्रकार अपनी वाणी को विश्राम देकर वेद व्यास जी से विदा ले कर नारद मुनि अपना इकतारा बजाते हुए नारायण-नारायण गाते हुए अन्य लोक चले गये ।



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