विकास या नाश
विकास या नाश
समय कभी रुकता नहीं है और इतिहास से भी पुराना हमारा-उनका नाता रहा है, जंगलों और बगीचों के साथ कोई आखिर भूल भी कैसे सकता है? एक छोटा बालक बचपन से ही उस समय से पेड़ के पास खेलता था, जब उसे यह भी नहीं पता था की यह कौन सा पेड़ हैI पर वह पेड़ भी अपनी शाखाओं के साथ साथ बढ़ता जा रहा था दोनों की मित्रता और साथ ऐसा कि बालक सुबह सुबह उस के पास पहुँच जाता और दिन भर उसकी शाखाओं से खेलता रहता थाI उस पर अपराजिता की बेल छाई थी और उसके नीले नीले फूल सबका मन मोहते थेI दिन कब निकल जाता था, पता ही नहीं चलताI वहां एक नहीं, बहुत सारे पौधे और वृक्ष थे और बहुत मनमोहक फूल थे और इसी लिए असंख्य पक्षी रहा करते थेI
धीरे- धीरे समय चलता रहा और एक दिन उसके गाँव में भी विकास की बयार आने लगी और धीरे-धीरे सभी ग्रामीण लोगों ने सोचना शुरू कर दिया कि खेतों से मिलता ही क्या है ? क्यों न हम भी दूसरे गांँव की तरह विकास करें ? प्रधान ने भी यही कहा कि दूसरे गाँव आख़िर इतनी तेज़ी से कैसे विकास कर रहे है और हम वही ढांँक के पात बने हुए हैंI जब विकास की शर्त ही खेती बाड़ी छोड़ना हो तो फिर विलम्ब किस बात का ? मैं आज ही उस प्रतिनिधि को बुलाता हूँ जो हमारे मित्र गाँब में विकास की लहर बहा रहा हैI उसकी कितनी अच्छी सड़कें बन चुकी हैं, लाइट्स आ चुकी है, हर घर में टेलीविज़न लग चुके हैं, सबके घरों में कार और मोटर साईकल आ चुकी है और हम क्या कर रहें हैं? हमारा धर्म भी तो विकास का ही है न! अब वह कोई गाँव नहीं लगता अब हम भी वैसे ही आगे चलेंगे सभी ने हामी भी भर दी पर वह बालक दुःखी मन से वहां से घर बापिस आ गयाI
अगले दिन ही वह प्रतिनिधि भी आ गया और अपनी फाइल खोलते हुए बोला कि हम आपका गांव भी शहर जैसा ही बना देंगे, बस हमें आप सबका साथ चाहिएI सबने हामी भी भर दी पर उस बालक को तो सुनाने बाला कोई भी नहीं थाI कोई भी अपने विकास से समझौता करने हेतु तैयार नहीं था, विकास सबको नई सम्भावना दे रहा था, वो बालक रो रहा था, उसे डर था कि कहीं ये विकास उसके गाँव के वास्तविक स्वरूप को ना बदल देI अब उसने तय कर लिया कि इस विकास का प्रतिरोध करना ही होगा, पर मेरा साथ आखिर देगा कौन ? चिंता स्वाभाविक थी, बालक ने तय किया कि क्यों न अपनी बात को पंचायत में रखे, फिर देखते हैं कि आखिर होता है क्या? अगले दिन ही उनसे अपनी बात को पंचायत के समक्ष रखा पर पंचों का निर्णय भी भिन्न नहीं था, अब विकास की शर्त सिर्फ पुरानी रीति रिवाज का विध्वंस ही था, नया विकास नई संभावनाI यही मूलमंत्र चल निकला और सब पीछे हो गयाI
अब तो हर दिन नई नई मशीने आने लगीं और सबको अच्छा लगने लगा, प्रधान के गुण गाने बालो की भी कोई कमी नहीं थीI धीरे – धीरे ये विकास खेतों तक पहुँच गया और अब बारी आई उस वृक्ष कीI अब इसको तो काटना ही होगा, विकास बार बार नहीं होता हैI वृक्ष तो फिर लग जाएंगे, ये बात कोई और नहीं ग्राम प्रधान की थीI
पर उस बालक का क्रोध अब इतना बढ़ चुका था कि उनसे सरे आम यह घोषित कर दिया कि इतना विकास नहीं होने देंगे कि हमारी प्राकृतिक संपदा ही खत्म हो जायेI
उनसे हुंँकार भरी और बोला कि मेरे रहते यह वृक्ष नहीं कट सकता, ये मेरा प्राकृतिक मित्र है, मेरा बचपन इसकी छांँव में बीता हैI गांँव के अन्दर का विकास ठीक है, पर खेती की कीमत पर नहींI वो लड़का वृक्ष से लिपट गया और अपने मित्रों से बोला कि हमें वृक्ष से बांँध दो, अगर यह नहीं तो मैं भी नहींI ये बात अब गांव से निकल कर भारतीय वन विभाग के अफसरों तक पहुँच गई, वो आये और विकास कि रफ्तार कि तारीफ तो बहुत किया परन्तु वृक्ष काटे जाने की बात पर नाराज़ हो गएI
यहाँ ऐसे कितने लोग हैं जिन्होंने इस वृक्ष का सहारा जीवन में कभी नहीं लिया है? जरा हाथ उठा कर बताओI एक अफसर ने कहाI जब थक जाते हो तो इसकी छाया के नीचे कौन नहीं बैठा ?
सबके चेहरे अब शर्म से नीचे हो गयेI प्रधान ने कहा कि ऐसा तो कोई भी न होगा ! तो आज इसके कट जाने के बाद इसकी छाया और दूसरे लाभ कहाँ से लोगे ? तुम लोगों को यह बालक की स्थिति भी नहीं दिख रही हैI जान देने को तैयार है ये बालक पर इसके बाद भी किसी को कोई चिंता नहीं है, इतने अंधे हो चुके है लोग यहाँ के !
हम वृक्ष काटने की अनुमति नहीं दे सकते, यह किसका विचार था, तुरंत ही बालक बोला प्रधान जी का ही तो है, हमें कोई भी सुनने को तैयार नहीं था तभी तो आप लोगों को आना पढ़ाI भई, वृक्ष नहीं कट सकताI आप लोग कोई दूसरा रास्ता निकालो, यही नहीं, विकास के नाम पर किसी भी वृक्ष को नहीं काटा सकताI किसी भी प्रकार से किसी हरे भरे वृक्ष को नुकसान पहुँचाने वाले व्यक्ति पर भारी जुर्माने का प्रावधान हैI अब सबको बात समझ आ गई होगीI ये कह कर उन लोगों ने वृक्ष को चिह्नित करना शुरू कर दियाI प्रधान भी बोला कि हां भई यहाँ विकास तो होगा, पर कोई हरा भरा वृक्ष कभी भी अब से कभी नहीं काटा जाएगाI ये सुन कर बालक बहुत खुश हो गया और मित्रों ने उसे खोल दिया और सबका धन्यवाद करता हुआ घर चला गया और सब जगह बताने लगा कि विकास तो करो, पर हमारी तरह, हमारे यहाँ कोई वृक्ष नहीं कटा जाताI यही सीख देता देता वो बालक आगे जा कर स्वंय भी भारतीय वन विभाग का अफसर बनाI उसका कहना था कि मैं वृक्ष तो क्या जलोनी के लिए भी लकड़ी नहीं काटने दूंगा, यही मेरी प्रतिज्ञा हैI ये ही अभियान भीI ये कहानी तब तक अधूरी रहेगी जब तक आप इस अभियान को अपना नहीं मानतेI इसको अपना लो और अपनी धरती माँ को हरा भरा ही रहने दोI हमें अभी ऐसे कोई ग्रह नहीं पता है, यहीं है जो हरी भरी और नीली हैI