Dravin Kumar CHAUHAN

Abstract

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Dravin Kumar CHAUHAN

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न जाने क्यों दूर चला जाता हूं

न जाने क्यों दूर चला जाता हूं

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हमें दुख होता है कभी-कभी उसकी आंखों में आंसू देख कर न जाने कैसा मेरे उसके दिल का संबंध है उसकी आंखों में आंसू आते हैं तो मेरा दिल रोने लगता है मैं उसे हर पल अपने साथ महसूस करता हूं ओ मेरे साथ हो ना हो पर हमेशा लगता है मैं उसके साथ हूं उसे जब खुश देखता हूं तो दिल को सुकून मिल जाता है पर उसे जब उदास देखता हूं तो दिल में उथल-पुथल मच जाता है न जाने क्यों कब कैसे समय निकल गया हमारे उसके बीच मैं उसके आंसुओं का कारण बनने लगा न जाने क्यों मैं उससे दूर जाने।

लगा ऐसा नहीं है कि मैं फिर उसके पास नहीं आऊंगा लेकिन वक्त है जिंदगी है सफर है कभी पास तो कभी दूर होना पड़ता है कभी ख़ुशी कभी ग़म पर न जाने क्यों दिल इतना उदास क्यों हो जाता है ओ रोती है तो मेरी आंखें भर आती हैं मेरा दिल रोने लगता है न जाने क्यों उसके पास समय ना दे पाता हूं जिंदगी के सफर में कभी पास तो कभी दूर क्यों चला जाता हूं।


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