मुट्ठी भर रेत...
मुट्ठी भर रेत...
आज किसी काम की वजह से पुरानी दिल्ली के किसी मार्किट में जाना हुआ। आम तौर पर मार्किट में ख़रीददारी करते हुए देर हो ही जाती है। अमूमन रात को जल्दी ही घर लौटने की मेरी कोशिश रहती है, लेकिन आज थोड़ी ज्यादा ही देर हो गयी।
रात का वक़्त था तो और नयी जगह थी तो मैं गाड़ी जरा ध्यान से चला रही थी। रास्ते पर जाते जाते अचानक किसी दुकान पर लिखे बोर्ड पर मेरा ध्यान गया। दुकान में बड़े बड़े अक्षरों में नॉवेल्टी स्टोर का नाम लिखा था और साथ ही दुकान का नंबर और नीचे जी टी रोड लिखा था...
जी टी रोड का नाम देखते ही मेरे दिमाग मे खटका हुआ। अखबारों और किताबों में जो कभी बातें पढ़ी थी वे सारी की सारी बातें मेरे जहन मे कौंध गयी....
जी टी रोड के नाम से मेरे अंदर का लेखक जाग गया। मुझे लगा की आज कहानी या कविता के लिए कोई विषय ज़रूर मिलेगा। अनायास ही मेरी निगाहें उन बिल्डिंग और वहाँ की खिड़कियों की तरफ फिरने लगी...क्योंकि रात का वक़्त था और सबको अपना अपना काम ख़त्म कर घर जाना था तो रास्तें पर ट्रैफिक जैसे रेंग रहा था और साथ में हमारी गाडी भी...
मै उचक कर उन खिड़कियों की तरफ दोबारा देखने लगी....आखिर में मुझे एक कोने में खड़ी एक लड़की दिखायी दी.... क्योंकि गाडी की स्पीड कम थी तो मुझे उस लड़की को ध्यान से देखने का मौका मिला।
वह लड़की भी कमोबेश वैसी ही लग रही थी जिस तरह का वर्णन अख़बारों और टीवी में या किस्से कहानियों में पढ़ा था और सुना था... थोड़ी दूर जाकर एक और अधेड़ सी दिखने वाली औरत दिखी। उसका भी पहनावा और मेक अप कुछ कुछ वैसा ही था। थोड़ी ही देर में ट्रैफिक कम हुआ। गाडी ने स्पीड पकड़ ली...गाड़ी आगे बढ़ गयी और जी टी रोड पीछे छूट गया...
लेकिन मै ?मैं सोचने लगी कि मेरी निगाहों में और किसी गिद्ध की निगाहों में क्या कोई फ़र्क़ था? बिलकुल भी नहीं.... अपने स्वार्थवश मुझे कहानी और कविता के लिए विषय मिलने का ख़याल आया। लेकिन मुझे क्यों कोई ख़याल नहीं आया की मैं इन लड़कियों के लिए कुछ सोच सकूँ जिससे की वे इस नरक से मुक्ति पा सके... लेकिन मैंने क्या किया? मैं उन मजबूर लड़कियों की जिंदगी पर कोई कहानी या कविता लिखने के बारे में सोचती ही रह गयी......
