मुस्कान
मुस्कान


नन्हीं चिंकी घर में पड़े - पड़े पूरी तरह ऊब चुकी थी। कैद - सी होकर रह गई थी वो अपने ही घर में , पर बाहर जा भी तो नहीं सकती थी ना। अचानक उसे ख्याल आया कि उसकी किताबें , उसके ज्योमैट्री बाक्स का सामान भी तो कैद है । उन सबको भी ऐसा ही महसूस हो रहा होगा जैसा कि मुझे । वह अपने बस्ते को अलमारी से निकाल लाई। बस्ते में से सभी कापी-किताबों को उसने खुली हवा में रख दिया और ज्योमैट्री बाक्स में से भी पेंसिल, रबर, शार्पनर आदि को बाहर निकाल दिया। चिंकी ने महसूस किया जैसे उसकी उदास किताबों और बाकी सामान के चेहरे से उदासी के बादल छँट गये और एक मीठी मुस्कान तैर गई। अपने सामान को खुश देख चिंकी भी मुस्कुराने लगी।
तभी उसको पिंजरे में कैद अपना मिट्ठू याद आया। वह दौड़ी-दौड़ी पिंजरे के पास पहुँची तो देखा मिट्ठू बड़ी खामोश निगाहों से बगीचे में हवा से झूमते पेड़ों को निहार रहा था। चिंकी की आँखें भर आईं, उसने मिट्ठू से कहा - मुझे माफ कर दो मिट्ठू, आज मैं जब स्वयं घर में बंद हो कर रहने के लिए मजबूर हूँ तो तुम्हारी पीड़ा समझ सकती हूँ।
यह सुन मिट्ठू बोला - मेरी प्यारी चिंकी तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो पर हवा में झूमते ये पेड़ जैसे मुझे अपनी फुनगी पर झूलने का आमंत्रण देते हैं।
चिंकी मुस्कुराई और पिंजरे का दरवाजा खोलकर बोली अब जब भी तुम्हारा जी चाहे तुम मेरे साथ मस्ती करना और जब जी चाहे पेड़ पर झूलना। मिट्ठू पिंजरे से फुदक कर बाहर आया और फुर्र से उड़कर पेड़ की सबसे ऊँची डाल पर जा बैठा। चिंकी चिंकी का शोर मचा अपनी खुशी का इजहार करने लगा। उसकी आजादी ने चिंकी के चेहरे पर जो मुस्कान ला दी थी। मिट्ठू की शैतानी ने उसे खिलखिलाहट में बदल दिया।