शहीद की माँ
शहीद की माँ
अलार्म की आवाज़ से विनीता चौंक गई।अरे सुबह हो गई यानी सारी रात वह विचारों के जंगल में ही भटकती रही।पिछले कुछ दिनों से वह बहुत उखड़ी हुई सी थी। विद्यालय में प्रार्थना सभा के दौरान बच्चे राष्ट्र गान ऊँचे सुर में नहीं गा रहेथे।बार बार टोकने पर भी उन पर कोई असर नहीं हो रहा था। कल तो आखिर वह झल्ला ही गई और हारमोनियम पर सुर छेड़ ऊंचे स्वर में चिल्लाई- कोई कक्षा में नहीं जायेगा जब तक पूरे जोश के साथ राष्ट्र गान संपन्न नहीं हो जाता। कैसे युवा हो तुम?अपना राष्ट्र गान भी बुलंद स्वर में नहीं गा सकते।
धूप लगती है मैम- पिछली पंक्ति से स्वर उभरा।
खून खौल उठा उसका। याद आया सुयश उसके कलेजे का टुकड़ा जो पिछले साल ही आतंकी हमले में शहीद हुआ था। उसने सोचा किन लोगों के लिये सुयश जैसे जांबाज सैनिक अपने प्राणों की बाजी लगा रहे हैं! उनके लिए जिन्हें राष्ट्र गान गाने में भी धूप सताती है।
कैसी-कैसी विषम परिस्थितियों में रहकर ये फौजी अपना धर्म निभाते हैं। पहाड़ों की बर्फ में अपना जिस्म गलाते हैं, रेगिस्तान की तपिश में खुद को झुलसाते हैं। अपने परिजनों से दूर उन्हे देखने, उनसे मिलने के लिए तरसते हैं पर जब देश के लिए जान की बाज़ी लगाने का समय आता है तो पर के लिए भी हिचकिचाते नहीं और हंसते हंसते शहादत का रास्ता चुन लेते हैं।
हमारा युवा इतना कृतघ्न कैसे हो सकता है! नहीं,एक शहीद की मां होकर मैं ऐसे सिस्टम का हिस्सा बनकर नहीं रह सकती। किसी फैसले पर पहुंचना बहुत जरुरी था।जो चल रहा है उसे चलने दिया जाये या अपने तरीके से विरोध किया जाये।
कल इस घटनाक्रम के बाद वह छुट्टी लेकर घर आ गई थी।बेटे सुयश की तस्वीर से लिपट कर बहुत रोई थी।सारी रात विचारों के झंझावातों से जूझने के बाद वो फैसला ले चुकी थी कि ऐसे लचर सिस्टम का हिस्सा बनकर काम नहीं करेंगी।
भगवान अंशुमालि आकाश में आकर जगत को तमिस्र से मुक्त करा चुके थे।उसने भी फटाफट रोजमर्रा के काम निपटाये। अपना त्यागपत्र तैयार किया। अपने बेटे की तस्वीर को चूम विद्यालय के लिए निकल गई। सीधे प्राचार्य कक्ष में जाकर उनकी मेज़ पर अपना इस्तीफा रख दिया। सर चौंक गये- क्यों मैम, इस्तीफा क्यों ? मन की पीड़ा होंठों पर आ गई और क्षमायाचना के साथ विनीता ने कहा नहीं सर इस व्यवस्था में और नहीं। विद्यालय में यह खबर जंगल की आग की तरह फ़ैल गई कि विनीता मैम रिजाइन कर रही हैैं। सर से बातचीत करके जैसे ही उनके कमरे से बाहर निकली, दरवाजे पर ही बच्चों का एक समूह हाथ जोड़कर खड़ा था।सबसे आगे अमर था जिसने कल धूप लगने वाली बात कही थी।चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ। विनीता के बाहर आते ही उसके पैरों में गिर पड़ा और क्षमायाचना करते हुए बोला- मत जाइए मैम प्लीज़।
विनीता ने कहा बेटा मैं इस्तीफा दे चुकी हूँ।अमर उसके पैर पकड़े पकड़े ही बोला,मैम मेरी गलती की इतनी बड़ी सज़ा सबको मत दीजिए। मेरी जगह सुयश भैया होते तो क्या आप उन्हें भी माफ़ नहीं करतीं। विनीता की आँखें भर आईं और उसने अमर को पैरों से उठाकर बाँहों में भर लिया। पीछे खड़े प्राचार्य महोदय ने मुस्कराते हुए विनीता का इस्तीफा फाड़ दिया।