मुख्य अतिथि
मुख्य अतिथि


हम सब छोटे पर से ही बहुत से गणतंत्र दिवस देखते आ रहे हैं और उतने ही देखे हैं मुख्य अतिथि। हर कार्यक्रम में किसी अध्यक्ष नेता या मंत्री को मुख्य अतिथि के तौर पर बुला लिया जाता है। ये बात तब की है जब मैं क्लास 10थ में रहा हूंगा, वो दिन था गणतंत्र दिवस का दिन। मतलब पूरे स्कूल में एकदम देश के प्रति जोश साफ दिखाई दे रहा था, देशभक्ति के गीत चल रहे थे और एक तरफ बच्चे अपनी परफॉर्मेंस की तैयारी कर रहे थे और इन सब के बीच में बीच में ये सोच रहा था कि ऐसा क्या करें जो हमें दो पैकेट लड्डू मिल जाए।
ख़ैर देखते देखते ध्वजारोहण का वक्त हो गया हो गया और अब तक मुख्य अतिथि भी आ मुख्य अतिथि भी आ चुके थे। वह शायद कोई बहुत व्यस्त इंसान रहे होंगे इसलिए आते ही उन्होंने ध्वजारोहण किया फिर एक दो फोटो हुई, उसके बाद उन्होंने पन्ने पर लिखा एक भाषण हम सबको हम सबको सुना दिया और फिर वह चले गए। अब भले ही उनकी कहीं बात ना तो समझ आई और ना ही अच्छी लगी लेकिन सबके साथ मैंने भी भाषण के अंत में तालियां पीट दीं। अगले दिन समाचार पत्र में सबसे आगे वाले पृष्ठ पर पर हमारे स्कूल की ध्वजारोहण करते हुए मुख्य अतिथि व प्रिंसिपल की एक फोटो निकली, ऐसा नहीं था कि और स्कूलों की फोटो नहीं थी लेकिन शायद वहां के मुख्य अतिथि इतने खास नहीं रहे होंगे।
धीरे-धीरे कुछ साल बीत गए बीत गए साल बीत गए बीत गए और मुझे ये बात समझने में भी देर नहीं लगी कि यह सारा कुछ सब यह सारा कुछ सब अपने स्कूल का नाम बढ़ाने के लिए है। मतलब जिले में तो दो स्कूलों के बीच जैसे कंपटीशन चलता था किसके वहां कितना बड़ा अधिकारी या नेता आएगा। अब मुझे भी इन सब की आदत हो गई थी, हर साल कोई नया मुख्य अतिथि आता और चला जाता था लेकिन एक चीज थी जो नहीं बदली थी और वो थी मेरी दो पैकेट लड्डू पाने की ख्वाहिश।
स्कूल पूरा होने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए मैं दूसरे शहर आ गया। अब यहां जब भी कोई पर्व होता चाहे वो धार्मिक हो या राष्ट्रीय, मैं हमेशा घर आ जाया करता था क्योंकि इन्हीं के कारण छुट्टियां मिलती थी। लेकिन इस बार गणतंत्र दिवस पर मैं हॉस्टल में ही था और फिर सुबह 8:00 बजे सभी को हास्टल ग्राउंड में ध्वजारोहण के लिए एकत्रित होना था और हां यहां तो लड्डू और समोसे दोनों ही मिलने थे तो मैं भी एकदम समय से पहुंच गया। वहां देखा तो 40-50 बच्चे छोटे-छोटे ग्रुप बनाएं खड़े थे, तभी उधर गाड़ी से हमारे हास्टल के प्रवोस्ट और असिस्टेंट प्रवोस्ट उतरे और फ़िर वो भी हम सबके सामने आ गए। उनके आते ही सब शांत हो गए और मेरे मन में एक ही चीज चल रही थी कि कब हम सब एक स्वर में बोलेंगे गुड मॉर्निंग सर,बिलकुल वैसे ही जैसे छोटे पर बोलते थे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
ख़ैर ध्वजारोहण का वक्त हो गया, अब तक कोई मुख्य अतिथि तो आया नहीं था तो मुझे लगा कि शायद प्रोवोस्ट सर खुद ही ध्वज फहराएंगे। लेकिन उन्होंने एक ऐसे इंसान को चुना जिसके लिए शायद झंडा फहराना एक सपना ही रहा होगा।वो मेरे हास्टल के सबसे निचले स्तर के कर्मचारी थे, उनकी उम्र तकरीबन 55 रही होगी और देखने से लगता था कि वह पढ़े लिखे नहीं हैं। जब प्रोवोस्ट सर ने उन्हें ध्वजारोहण के लिए बुलाया तो वो बोले अरे साहब आप कर लीजिए। लेकिन फ़िर सबके कहने पर वो ध्वजारोहण करने आ गये। यकीनन ये वो पल था जब मैं पहली बार गणतंत्र दिवस मना कर इतना खुश था, और उन भैया की आंख में हल्के से आंसू आ गए थे। जब हम सब जन-गण-मन कर रहे थे तो वो बस चेहरे पर एक मुस्कान लिए अपने हाथों को जोड़े लिए अपने हाथों को जोड़े खड़े थे।ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उनका एक ख्वाब पूरा कर दिया हो। फिर वहां लड्डू समोसे मिलने लगे, इतनी भीड़ थी कि मुझे पहले तो कुछ मिला ही नहीं। बाद में बड़ी मुश्किल से एक लड्डू और एक समोसा मिला, बाकी सब को चार लड्डू और हमें बस एक।इस बात का बहुत दुःख था हमें लेकिन उससे ज्यादा खुशी आज के मुख्य अतिथि को देखकर हुई थी......
बुरा है इंसान यहां बुराई का तो आफताब है
गौर करोगे तो पाओगे विभोर, अच्छाई का अब भी एक चिराग है ।