मुखौटे
मुखौटे
बहुत से चेहरे आये थे जूलिया के जीवन में।कौन उसकी बेटी एंजेलिना कि पिता था वह स्वयं नहीं जानती। एक-एक रात उसके साथ बिताने के बाद वे सब कहाँ गुम हो गए, बेटी को कैसे बताती?
बारह साल मिशनरी स्कूल के बोर्डिंग में रह कर वापस आई एंजेलिना अपने पिता से मिलने की जिद पर अड़ी हुई थी।
जूलिया ने अपनी याद्दाश्त के आधार पर उन चेहरों के मास्क बना कर रख दिए और बेटी से कहा, "लो ढूँढ लो अपने पिता को।"
इतने सारे घिनौने मुखौटे देख कर एंजेलिना घबरा गई।माँ की आँखों में आँखें डालकर उसने प्रश्नसूचक नज़रों से देखा।जूलिया की झुकी नज़रों में छिपे आँसू देखकर एंजेलिना को अपनी माँ की मजबूरी का अहसास हो गया।माँ की ममता को ठेस न पहुँचे। इसलिए उसने बिना कोई सवाल किये, चुपचाप एक मुखौटा उठा लिया और माँ को गले से लगा कर चूम लिया।
अब पिता का होना न होना, उसके लिए कोई मायने नहीं रखता था।माँ के निश्छल प्रेम के होते उसे किसी चेहरे के मुखौटे की आवश्यकता नहीं थी।
