मुकाम
मुकाम
"यकीनन,अगर आपके पास सपने हैं तो उसे पूरा करने का हौसला भी होगा और फिर ये बात भी बिल्कुल सत्य है कि अगर जिंदगी में सपने ना हो तो फिर वो जिंदगी कैसी"।इसी बात को कहते कहते रामलाल अपने कुर्सी पर से लाठी का सहारा लेकर खड़ा हुआ और अलविदा कहते हुए अपने घर की ओर चल पड़ा। उसके जाते ही उस दुकान पर जो महफिल जमी थी वो भी जाने लगी। रामलाल का रोज सुबह इस चाय के दुकान पर आना और अपनी बातों से महफिल जमाना ये रोज का काम था। कहते हैं उसकी बातें इतनी प्रभावशाली होती थी कि लोग उसे अपना गुरु मान बैठे थे।पर आज तक किसी ने ये नहीं जाना कि वो कहां से आया और उसकी कहानी क्या है।
रामलाल कि उम्र तो करीब सत्तर या बहत्तर साल होगी पर उसकी जिंदगी जीने का तरीका हम सब से बिल्कुल अलग था तभी तो उसके चेहरे और मुस्कुराहट को देख कर हमें ज़िन्दगी जीने का हौसला मिलता था।और एक दिन जिद पे आकर हमने उसकी जिंदगी के पन्ने पलटने को कहा पहले तो रामलाल और दिन के तरह बहाना बनाना चाहा पर हमारे जिद के सामने रामलाल को झुकना ही पड़ा। उसने उस दिन अपने ज़िंदगी के वो जख्म दिखाए जो शायद किसी और के साथ होता तो वो कब का जीवन से हार मान गया होता। रामलाल छोटा सा था जब उसके मां और पिताजी दुनिया से अलविदा कह दिए, उसकी परवरिश उसके मामा ने किया। उसके अस्मरण में मां और पिताजी कि छवि धुंधली सी हो गई थी।सो उसने अपने मामा को ही सब कुछ मान लिया था। रामलाल जब बड़ा हुआ तो उसके मामा उसे पढ़ने के लिए गांव से बाहर भेज दिये परन्तु कुछ दिन उपरांत उसके मामा भी चल बसे।
रामलाल अब इस दुनिया में बिल्कुल अकेला सा रह गया उसके जिवन में अपना शब्द का कोई स्थान नहीं रहा।अब उसे अपनी पढ़ाई पूरी करने और पेट कि आग को शांत करने के लिए एक नौकरी कि तलाश थी।सो उसने एक सेठ की दुकान में काम करने लगा।युं तो रामलाल ने अपनी छोटी सी जिंदगी में सिर्फ दुखों का पहाड़ देखा परन्तु इन सब दुखों को दरकिनार कर के उसने जो एक बात सीखी थी वो ये कि सपना को पूरा करने का हौसला कभी नहीं छूटना चाहिए क्योंकि जिवन में अगर सपना ना हो तो जिंदगी का कोई आंनद नहीं।और इस तरह वो अपने सपनों के साथ जि कर सेठ के यहां नौकरी करने लगा और अपनी मंजिल को पाने के लिए आगे बढ़ता रहा। अपनी कड़ी मेहनत और सपनों को पूरा करने का हौसला रामलाल को आज आफिसर बना दिया था। रामलाल के जिवन के सफर को सुन कर हम सब आश्चर्य में थे और कहीं ना कहीं हमारी आंखें भी नम थी परन्तु उसका हौसला जो इतना कष्ट सहकर भी कभी जिंदगी से हार नहीं माना, कभी अपने सपने को खोने नहीं दिया,अपने हौसले को हमेशा बुलंद रखा ये बातें सचमुच प्रेरणादायक थी।खैर रामलाल और दिन के तरह आज भी महफिल से अलविदा कहता हुआ अपने कुर्सी से उठा और लाठी के सहारा से घर की ओर निकल पड़ा।