मृत्युभोज
मृत्युभोज
हवेली के बाहर कुछ लोग खड़े खड़े आपस में खुसुर- फुसुर कर रहे थे ठाकुर साहब को आते हुए देखा तो खामोश हो गए। ठाकुर साहब ने सबको प्रश्न भरी निगाहों से देखा और आने का कारण पूछा ?
गाँव के मुखिया राजनाथ चौधरी ने दबी जबान में कहा-
'यह क्या सुन रहे हैं ठाकुर साहब, आप पूरे गाँव को भोज करा रहे हैं वह भी जो मृत्यु के उपरान्त कराया जाता है।'
'ठीक ही सुना है आपने चौधरी जी पूरे गाँव को भोजन कराने का इरादा है। आप सब अवश्य पधारें।'
'आप जुग जुग जिएं ठाकुर साहब पर यह तो हमारी परम्परा नहीं है।' -चौधरी जी ने कहा।
'आप सब ठीक कह रहे हैं पर परम्पराएँ भी तो हम ही बनाते हैं न।अब जीना न जीना तो ईश्वर के हाथ में है और समय भी तो आ ही गया है।'
ठाकुर साहब ने सबको बठने का इशारा करते हुए कहा- 'अब देखिए भाइयों, मृत्यु के पश्चात भोज होगा तो पता ही नहीं चलेगा सब लोगों ने ठीक से खाया है या नहीं। मैं चाहता हूँ आप सब मेरे सामने ही खा पीकर तृप्त होकर जाएँ। आप सबको मेरे साथ समय बिताने का अवसर मिलेगा और अगर तारीफ होगी तो वह भी मैं सुन सकूँगा।'
'पर ठाकुर साहब..........'
'अब और कुछ नहीं,अब यह तय हो गया है तो यही होगा।और हाँ, अन्तिम संस्कार जैसी कोई बात नहीं होगी। मैंने देहदान का फार्म भर दिया है।'
गहरे आत्मसंतोष के साथ ठाकुर साहब ने सबको देखा जो हाथ जोड़े चुपचाप खड़े थे।