निर्णय

निर्णय

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अपने बड़े पुत्र अरुण का विवाह सानन्द सम्पन्न हो जाने से कृष्णा जी बहुत संतोष एवं प्रसन्नता का अनुभव कर रही थीं। सभी मेहमान एक एक करके जा चुके थे। आज पुत्री भी अपने ससुराल

चली गई थी और छोटा पुत्र होस्टल। बेटा-बहु कल ही हनीमून से लौटे थे। घर में खुशी का वातावरण था। कृष्णा जी ने राहत की सांस ली

और मन ही मन एक निर्णय ले लिया। उन्होंने रात्रि भोजन के पश्चात सबको अपने कमरे में बुलाया और पुत्र और पुत्रवधु को एक चाभी पकडा़ते हुए कहा-यह तुम्हारे फ्लैट

की चाभी है अब से तुम वहीं रहोगे। सब आश्चर्य से उन्हें देखने लगे। कृष्णाजी ने एक नजर सब पर डाली और उनकी जिज्ञासा को शान्त करते हुए कहा-देखो तुम सब यह सोच रहे होगे कि मैैं 

यह क्योें कर रही हूँ ? देखो बेटा तुम्हारे आगे का जीवन सुख शान्ति से बीते इसलिए यह जरूरी है कि तुम दोनों एक दूसरे को ठीक से जानो और समझो । यहाँ पर रहकर यह न हो सकेगा और

बहुत समय लगेगा। तुम्हारा फ्लैट पास ही है। हम समय समय पर मिलते जुलते रहेंगे। पर्व त्योहार एक साथ मनाएंगे। सुख सुख साझा करेंगे।

बस एक दूसरे की दिनचर्या में बाधक नहीं बनेंगे।

बहु इन्दु जो अभी तक चुपचाप सुन रही थी हिचकिचाते हुए बोली -"पर मम्मी जी सब तो यही समझेंगे कि यह सब करने के लिए 

मैंने ही कहा है। " कृष्णा जी ने दृढ़तापूर्वक कहा -"तुम इसकी चिन्ता न करो। यह मेरा निर्णय है और तुम्हारे पापा की भी पूर्ण सहमति है। सबको

जवाब मैं दूंगी। सुखद भविष्य के लिए हमें कुछ त्याग तो करना ही होगा। " आँखों की नमी छुपाते हुए कृष्णा जी ने कहा- "चलो कल नया संसार बसाने में मैं भी कुछ मदद कर दूँ। "


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