Jiya Prasad

Tragedy

4.0  

Jiya Prasad

Tragedy

मरजीना

मरजीना

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वह आज चुपचाप बैठी है. बेहद! उसकी बेटी डरपोक कब से हो गई? उसके लिए यह सवाल आज बहुत बड़ा बन चुका है. उसने पहले ध्यान क्यों नहीं दिया? कब से उसने घर के काम काज के चलते अपनी बेटी का चेहरा देखना और समझना बंद कर दिया है? उसने दिमाग पर ज़ोर डाला. पर वह ज़्यादा सोच नहीं पाई. उसे लगा अगर वह सोचेगी तो हो सकता है दिमाग में कोई धमाका हो जाए. शायद उसकी मौत भी हो सकती है. उसने न सोचने के लिए कुर्सी पर अपनी पीठ टिकाकर कुछ राहत की साँस अन्दर लेने की कोशिश की. उसने आँखें बंद कीं. बेटी की छुटपन से अब तक की तस्वीरें उसके दिमाग में एकाएक उभर आईं. उसके चेहरे पर अब राहत थी.

वो देर तक कुर्सी पर ऐसे ही पड़ी रही. वह सोई नहीं थी बल्कि अपनी ज़िन्दगी के सैलाब में तैर रही थी. उसने कभी इस वक़्त के बारे में नहीं सोचा था. वक़्त ने उसे जो भी दिखाया उसने समझदारी से सबका सामना किया. उसने हमेशा अपने सोए हुए मन में दिलेरी को छुपाए रखा और वक़्त आने पर उसका इस्तेमाल भी किया. उसने कभी अपने अकेले होने को लोगों के लिए फ़ायदा उठाने की वजह नहीं बनने दिया. उसे पता है कि अकेली औरत पर हमले ज़्यादा होते हैं. और अकेली औरत इन हमलों से बच भी सकती है.

उसका मन हुआ कि उठकर कमरे में रौशनी कर ले. बल्ब की रौशनी उसे अतीत में जाने से रोक सकती थी. रौशनी की आदत होती है, न सोचने देने की. रौशनी का हमला जब भी उसकी आँखों पर होता है तब वह तुरंत किसी सांप की तरह चौकन्नी हो जाया करती है. वह अकेली माँ है. उसे पता है चौकन्नेपन का मतलब. रौशनी और चौकन्नापन मिलकर उसे इस दुनिया में जीने लायक बना देते हैं. लेकिन इस वक़्त तो वह अपने अतीत में झाँक रही थी. वह जानती है कि अतीत से वह कुछ ताक़त बटोर कर वापस वर्तमान में ला सकती है ताकि भविष्य को संभाल सके. वह रौशनी के लिए नहीं उठी. उसने बैठकर सोचना जारी रखा.  

उसने अपनी ज़िंदगी का एक लम्बा वक़्त अकेलेपन में गुज़ारा है. उसकी उम्र क़रीब पंद्रह बरस रही होगी जब उसने अपने पिता को एक भयानक दुर्घटना में खो दिया. उसके एक महीने बाद उसकी माँ ने भी पिता के ग़म में इस दुनिया को छोड़ दिया. इसके बाद उसे लगा कि वह भी मर जाए. यहाँ जीने लायक कुछ बचा नहीं है. उसने अपने को घर में कैद कर लिया. उसे आज भी याद है कि कुछ दुःख दुनिया के भारी दुखों में से एक हैं. दुःख व्यक्ति को घिसकर रख देते हैं. पर फिर भी वह जीने लायक अनुभव तो दे ही देते हैं. उसे पता है, अनुभवों के चरागों की ज़रुरत पड़ती है.

उसने अपने पुराने दिनों पर सोचना जारी रखा. वह बेचैन रहने लगी थी. अभी दुःख गया भी नहीं था कि एक हादसा उसका इंतज़ार कर रहा था. उस हादसे ने उसे हमेशा के लिए फौलादी इन्सान में तब्दील कर दिया. आज जब वह उस घटना को सोचती है तो वह सहम जाती है. उसके लिए अब बड़े से बड़े धक्के कुछ भी नहीं है. पर आज उसकी बेटी का यूँ डर कर घर लौट आना उसे अखर रहा है. वह ऐसे कैसे होने दे सकती है? उसने ही बाप और माँ बनकर उसे पाला है. उसे प्यार किया है. उसे अब तक सबसे ज़्यादा चाहा है. उसने कुर्सी पर बैठे-बैठे कुछ करने का सोचा. पर क्या, वह नहीं जानती थी.

उसे याद है जिसे उसने चाहा था वह भी उसे छोड़ कर चला गया था. उसने उसे समंदर के किनारे अपने जाने की बात कही थी. उसके चले जाने के बाद वह कब तक वहीं बैठी रही थी. वह चला गया. वह जो सपने टूटे थे, उन्हें समेटते रही. पर वह इतने बिखर गए थे कि वह देर तक कोशिश करती रही, पर उन्हें वह समेट नहीं पाई. कुछ तो समंदर के पानी में खारे हो गए. कुछ भाप बनकर उड़ गए. कुछ उसी समय हुई बारिश में बह गए. कुछ समंदर के ऊपर से गुज़रते हुए हाई वे पर सवार होकर कहीं चले गए. पर कुछ ऐसे भी थे जो उसे छोड़ने के लिए राज़ी नहीं थे. सो, उसके सीने के रास्ते दिल में घुसपैठ कर के कहीं बैठ गए. कभी-कभी रात के अँधेरे में वे उन्हें जगाती है पर रेवा की आहट सुनकर उन्हें तुरंत किसी चीज़ से ढक देती है. रेवा को नहीं पता चलना चाहिए कि उसकी माँ के दिल में कहीं कुछ ओस की बूँदें दबी हुई है. पर रेवा को यह बात क्यों नहीं पता चलनी चाहिए, वह यह भी नहीं जानती.

वह जब गया तब वह फिर से अकेले हो गई. जैसे उसके माँ-पापा के जाने के बाद हो गई थी. धीरे-धीरे उसकी उम्र इक्कीस हो चुकी थी. उसके चाचा ने आनन-फानन में उससे पूछे बिना उसी के घर में पत्नी और बच्चों सहित ढेरा जमा लिया था. वह मना करना चाहती थी पर रिश्ते के लिहाज़ से चुप लगा बैठी. वह कहना चाहती थी कि वह ख़ुद अकेले जी सकती है और अपना ख़याल रख सकती है. पर उसकी ये बातें उसके मन में ही रहीं. वह चाहकर भी इन बातों को उगल नहीं पाई. उसने पढ़ाई छोड़ कर पार्ट टाइम काम तलाशा और क़िस्मत से मिल भी गया. उसकी दोस्ती खुशमिजाज लड़की सलोनी से हुई. सलोनी ने अपने घर वालों के खिलाफ़ जाकर अमर से शादी की थी. कई बार बातों-बातों में सलोनी अपना दुःख भी जता देती थी. फिर भी उसे सलोनी में कुछ ख़ास दीखता था जो ख़ुशी के साथ झलकता था.

उसे हमेशा सलोनी में बहादुरी दिखाई देती थी. उसे अमर भी ख़ास लगता था. शांत सा रहना वाला लड़का. लेकिन एक सुबह जब उसका फोन बजा तब बुरी ख़बर ने उसके कान से खून ही निकाल दिया. जब वह सलोनी और अमर के घर पहुंची तब पुलिस ने शुरूआती पूछताछ की और यह बताया कि दोनों का देर रात खून हुआ है. बच्ची जब सुबह उठी तब से रो रही है. शक होने पर पड़ोसियों ने पुलिस बुलाई. दोनों की हत्या बेरहम तरीके से हुई. उसे लगा उसकी दुनिया एक बार फिर उजड़ गई. रेवा, सलोनी और अमर की आख़िरी निशानी थी. रेवा को यह बात आज भी मालूम नहीं कि वह उसकी बेटी नहीं है. रेवा को पालना उसके ज़िंदगी के सबसे महान सुखों में से एक सुख था. लेकिन रेवा के चलते उसके चाचा और चाची में न दिखने वाली जलन महसूस होती थी. उसने कभी नहीं सोचा था कि उसके ख़ुद के रिश्तेदार उस पर क्या करना है और क्या नहीं करना है का दबाव डालेंगे.

जब वह रेवा को क़िताबी कहानियाँ पढ़कर सुनाती तब कभी-कभी वह बीच में रूक जाती. उसे अपने ही घर में यह महसूस होता था कि उसके शरीर को कोई दो आँखें घूरे जा रही हैं. ऐसा लगता था कि उसके नहाने से लेकर सोने तक की प्रक्रिया कोई अपनी निगरानी में रखता है. एक दिन उसने अपने चाचा को गौर से देखा और पाया उन्हीं की दो नज़रें ऐसी हैं जो शिकारी की तरह उसके पीठ पर चिपकी रहती हैं. उसे घर में घुटन सी होती थी. उसे अपनी और रेवा की फ़िक्र भी होती थी. उसने अपनी चाची से कई बार चाचा के बर्ताव पर बात करने की कोशिश की पर चाची बात सुनना नहीं चाहती थीं.

एक रोज़ रेवा को चाइल्ड केयर में छोड़कर वह घर लौटी. घर में अजीब सा एक सन्नाटा था. उसने चाची को कई आवाज़ लगाईं पर वह कुछ न बोलीं. थोड़ी देर बाद चाचा अपने कमरे से निकल कर आए और कहा, “कई औरतें मंदिर गई हैं. वो भी उनके साथ चली गई है.” उन्होंने शरीर पर एक तौलिया ही लपेटा हुआ था. एक अजीब सी दहशत उसके मन में घुस गई. उसने नज़रें नीचे कर लीं. वह रसोई की तरफ़ बढ़ चली. पीछे से उसके चाचा ने कहा- “अगर चाय बनाने जा रही हो तो मेरे लिए भी एक कप बना लेना. तुम्हारे हाथों की चाय की बात ही अलग है.” वह सहम गई. उसने एक शब्द भी मुँह से न बोला. उसके मन में हुआ कि चाची जल्दी से आ जाए.

दूध डालने के बाद वह अपने ही डर में खड़ी हुई बेसुध हो चुकी थी. उसके मन में अजीब से ख़याल आ रहे थे. तभी उसने अपनी कमर पर किसी के हाथों को महसूस किया और चौंकते हुए पीछे मुड़ी. उसके डर ने उसके चाचा का लिबास पहन लिया था. उसने अपने को छुड़ाने की कोशिश की. पर उसकी कोशिशें मरती जा रही थीं. उसने चाय का बर्तन उठाकर चाचा के सिर पर दे मारा और चिल्लाना शुरू कर दिया. लेकिन बंद दरवाजे से आवाज़ बाहर कम जा रही थी. उसने अपनी शक्ति बटोरकर हैवान को रसोई से बाहर किया और कुण्डी लगा कर अपने को बंद किया.

सिर की चोट और गर्म चाय गिरने के कारण चाचा की बौखलाहट बढ़ गई थी. उसने उसे गंदी-गंदी गालियाँ देकर दरवाज़ा खोलने के लिए कहा. पर वह एक कोने में दुबक चुकी थी. फोन बाहर था. उसने अपने आप को असहाय महसूस किया. डर ने उसे बर्फ की तरह जमा दिया था. दरवाजे पर लगातार प्रहार हो रहे थे. उसे लगा कि अब वह नहीं बचेगी. उसने आँखें बंद कीं. उसे रेवा का चेहरा दिखा. वह बोलती हुई दिखी- “माँ उठो...माँ उठो!” उसने आँखें खोलीं. अपने आप को संयमित करने की कोशिश की. उसने उसी चाय के बरतन में आनन फानन में सरसों का तेल गैस पर तेज आंच पर गर्म करना शुरू किया.

उधर दरवाज़ा टूटने की कगार पर था. इधर तेल गर्म होना शुरू हुआ. उसके मन में कोई ख़याल नहीं था. उसे बस यह महसूस हुआ कि उसे अपने को बचाना है. अपनी रेवा को बचाना है. जैसे ही दरवाज़ा टूटा उसने खौलता हुआ तेल हैवान बन चुके आदमी पर फेंक दिया. वह आदमी चीख़ उठा. उसने उसी बरतन से उसके सिर पर कई वार किए. वह बुरी तरह घायल था और चीखे जा रहा था. तभी दरवाजे पर घंटी बज गई. उसे घंटी की आवाज़ सुनकर थोड़ा होश आया. उसने जल्दी से दरवाज़ा खोला और चाची को सामने खड़ा पाया.

वह इस दिन को कभी नहीं भूलती न भूल सकती है. दो ही दिन में उसने अपने कथित रिश्तेदारों का बोरिया बिस्तर समेट दिया. चाची ने ढेरों मिन्नतें कीं. लेकिन उसने एक भी न सुनी. वह कुछ सुनना और कहना नहीं चाहती थी. उसे याद रहा तो वही बचपन वाली कहानी जिसमें मरजीना ने अपने दिमाग के चलते चोरों को गर्म तेल से ढेर कर दिया था. बल्कि उसने मरजीना के दिमागी हिस्से को अपने अन्दर बसा लिया था. उसने कुर्सी पर बैठे-बैठे सोचा कि उसे यह कहानी रेवा को भी सुनानी चाहिए. उसने कुर्सी में देर से धंसे हुए शरीर को शक्ति लगाकर उठाया और किताबों के बीच मरजीना वाली कहानी खोजने लगी. वह उस किताब को रेवा के आने से पहले खोज लेना चाहती थी. वह रेवा को उन सभी बहादुर औरतों के बारे में बताने के बारे में सोच रही थी, जिन्होंने अपने दम पर ख़ुद बनाया था. रेवा को यह सीखना और जानना ज़रूरी था.

                        

 


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