Amit Tiwari

Romance Tragedy Others

2.6  

Amit Tiwari

Romance Tragedy Others

मृदुला

मृदुला

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कुछ ही वक़्त में इंजीनियरिंग ख़त्म भी जाएगी, कैम्पस सेलेक्शन के लिए कम्पनियाँ आने वाली हैं। तुम्हारा सेलेक्शन हो गया तो तुम जाओगी क्या? आशीष मृदुला के दुपट्टे से खेलता हुआ पूछता है। मृदुला को देखते ही बनता था कॉलेज के सारे लड़के फ़िदा थे उस पर नैन नक्श जैसे तराशा गया हो बड़े फुर्सत से आँखें ऐसी की जो एक बार को ध्यान से देख ले तो कुछ क्षण के लिए खो जाए लेकिन मृदुला थी की आशीष पर जान छिड़कती थी। फर्स्ट इयर में जब एडमिशन हुआ था तभी दोनों की मुलाकात पहली क्लास में हुई और फिर देखते देखते कब एक दूसरे के इतने करीब आ गये की कोई किसी एक का नाम भी ले तो बिना दूसरे का भी नाम लिए नाम पूरा ही न होता। क्या स्टूडेंट्स क्या टीचर्स सबको पता था आशीष और मृदुला के बारे में, इंजीनियरिंग के चौथे साल तक तो मृदुला का शरीर भी खिल के निखर गया था। लेकिन मृदुला थी की आशीष के अलावा उसे कोई और दिखता ही नहीं था। दिन रात जेहन में बस एक ही नाम गूंजता था उसके, आशीष और कोई नहीं ऐसी थी उनकी जोड़ी। लेकिन अब मृदुला को थोड़ा डर सताने लगा था। आखिरी साल जो था जिसका जहाँ सेलेक्शन हुआ वो वहाँ चला जायेगा और अगर मेरा और आशीष का सेलेक्शन एक जगह नहीं हुआ तो अलग होना पड़ेगा और मृदुला इस बात के लिए तैयार नहीं थी। आशीष के भी मन में कहीं न कहीं इस बात का डर था कि कहीं अलग न होना पड़े इसीलिए तो आज आशीष ने ये बात पूछ ही ली मृदुला से मृदुला पहले तो थोड़ी देर चुप रही फिर बोली, मैं एक मन की बात बताऊँ मुझे तो किसी भी कंपनी में काम करने का मन ही नहीं है। मैं ज़िंदगी को कुछ अलग तरीके से जीना चाहती हूँ इस बात को सुनकर आशीष ने भी झट से हामी भरी और कहा, मैं भी कुछ दिनों से यही सोच रहा था की सभी इस दौड़ में भागे जा रहे हैं क्या हम भी इसी दौड़ में शामिल हो जायेंगे। मृदुला ने तभी कहा मैं कुछ दिनों से सोच रही थी की जो गुरूजी हमें कभी कभी पढ़ाते हैं सुना है उन्होंने अपना आश्रम खोला है और नए उम्र के कई लड़के और लड़कियाँ वहां पर काम करने जा रहे हैं मैं भी सोच रही थी वहीं चलते हैं साथ में रह भी सकते हैं और आश्रम में काम भी करेंगे। क्योंकि आशीष का भी झुकाव इसी तरफ था तो बात मानने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। अब दोनों ही आश्रम में रहने लगे थे और आश्रम के काम पर काफी मन लगाते थे।

धीरे धीरे आश्रम का काम काफी बढ़ने लगा एक से दो और दो से कई शहरों में अब क्यूंकि मृदुला और आशीष दोनों ही अपने काम में पारंगत थे तो जल्द ही गुरूजी के चहेते बन गए और आश्रम के काम से अब अलग अलग शहरों में जाने लगे। एक दूसरे के साथ साथ वक़्त बिताने का कम ही मौका लगता अक्सर जब मृदुला आश्रम में होती तो आशीष आश्रम के काम से किसी दूसरे शहर में होता और जब आशीष आश्रम में होता तो मृदुला बाहर किसी शहर में होती ऐसे ही करते करते काफी वक़्त गुजर गया। एक बार आश्रम से सभी लोग उत्तरकाशी गए इस बार मृदुला और आशीष काफी खुश थे क्योंकि दोनों भी साथ थे उत्तरकाशी पहुंचकर सभी टेंट कैम्प में रुकते हैं रात होती है दोनों साथ घूम रहे होते हैं ऊपर आसमान एक दम साफ़ था एक एक छोटे छोटे तारे नजर आ रहे थे चांदनी रात में मृदुला ऐसे दिख रही थी जैसे ताजमहल चमक रहा हो। आशीष देख रहा था मन भर के की मृदुला पिछले कुछ महीनों में और भी निखर गयी है और यह देखकर वह आकर्षित हुआ जा रहा था। तभी मृदुला ने कहा आज सफर में काफी थक गए हैं नींद आ रही है अपने अपने टेंट में जाकर सो जाते हैं। सुबह जल्दी उठेंगे और सुबह सूर्योदय और घास पर पड़ी ओस में चलने का आनंद लेंगे और यह कहकर दोनों एक दूसरे को गुड नाइट बोलते हैं और चले जाते हैं। आशीष अपने टेंट में पहुँचता है तभी उसे याद आता है की सुबह इस्तेमाल होने वाले गुरूजी के कुछ जरूरी सामान उसी के पास हैं उसे विचार आता है की अभी जाकर गुरूजी के टेंट में दे आता हूँ नहीं तो खामखाँ सुबह सुबह गुरूजी को दिक्कत होगी और यह सोचते हुए आशीष ने सामान का पैकेट लिया और गुरुजी के टेंट की तरफ चल दिया। टेंट के पास पहुंचकर अब क्यूंकि टेंट में दरवाजा तो था नहीं और टेंट भी गुरूजी का तो क्या संकोच आशीष पर्दा हटाकर अंदर घुस गया। टेंट में हल्की पीली लाइट जल रही थी एक क्षण तो कुछ समझ में नहीं आया लेकिन अगले ही पल वह सम्भला तो उसके पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गयी, काटो तो खून नहीं देखता है की मृदुला नीचे लेटी हुई है और गुरूजी उसके ऊपर दोनों के ही ऊपर वस्त्र के नाम पर कुछ भी नहीं था और पूरी तरह से प्रणय प्रेम में लिप्त थे, मृदुला आशीष को देखकर सकपकाई और गुरु जी घुटनों के बल बैठ गए उसी अवस्था में यह सब आशीष को अचरज में डाल रहा था।

 मृदुला अब भी लेटी हुई थी। उसका शरीर इस अवस्था में ढीला पड़ गया। आशीष थोड़ा सम्भला तो यूँ ही हकलाते हुए पूछ बैठा ये सब क्या? लेकिन गुरूजी अब तक संभल चुके थे उन्होंने कहा तुम अभी नहीं समझोगे ये एक अलग तरह का जुड़ाव है जो दिख रहा है वो हो नहीं रहा है, हो कुछ और रहा है, एक ऊँचे स्तर की बात चल रही है। और मृदुला के ऊपर जैसे ज्यादा असर नहीं पड़ा हो। आशीष टेंट से बाहर आ गया थोड़ा हाँफ रहा था घबराहट की वजह से शायद और आँखों में थोड़ा डर, संशय, क्रोध, असहजता लिए हुए आगे धीरे धीरे अपने टेंट की तरफ बढ़ रहा था उसे समझ नहीं आ रहा था की इस बात पर वह खुद को ही कैसी प्रतिक्रिया दे।         



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