Amit Tiwari

Tragedy

4  

Amit Tiwari

Tragedy

टीस

टीस

4 mins
455


अक्सर यह कहते सुना होगा कि मैं ज़िंदगी में करना कुछ और चाहता था लेकिन कर कुछ और रहा हूँ और जो कर रहा हूँ उसमें मन नहीं लग रहा है बस करते जा रहा हूँ। सुबह से शाम पैसे कमाने में निकल जाते हैं वो जहाँ तहाँ खर्च होते रहते हैं और आखिर में हाथ कुछ भी नहीं बचता न पैसा न ज़िंदगी| बहुत देर से शुभम भी यही सोच रहा था बैठे बैठे आज रविवार जो था, कई दिनों से वो सोच रहा था की शांति से बैठूं बिना किसी काम के और कुछ वक़्त बस सोचूं की मैं कर क्या रहा हूँ?

वैसे तो शुभम अब एक अच्छी खासी नौकरी करता है आईटी सेक्टर की एक बहुराष्ट्रिय कंपनी में जब ये नौकरी लगी थी तो कितना खुश था शुभम, 

गुरुग्राम के एक अच्छे से अपार्टमेंट में किराए का टू बी एच के फ्लैट और फिर जैसे जैसे पगार आती गयी हर महीने कुछ न कुछ फर्नीचर उसके घर में बढ़ते गए। पहले किचेन और बेडरूम सेट किया फिर बाकी जरूरतों की चीजें और अब तो ऐसी और एक बड़ी सी टीवी भी लग गयी है और पिछले महीने कंपनी में हुई तरक्की के बाद अब उसने ई एम् आई पर कार भी ले ली और घर पर भी अब ज्यादा पैसे भेजने लगा था सब खुश थे उसके खर्चे तो बढ़े साथ में उसके गाँव के घर के भी खर्चे बढ़ गए थे। हर कोई शुभम की तारीफ़ करता था की बड़ा होनहार लड़का है देखो कैसे सबकुछ संभाल लिया है।लेकिन इधर कुछ दिन से शुभम कुछ बेचैन सा रहने लगा था हांलाकि ये बेचैनी उसके अंदर काफी समय से थी लेकिन अब कुछ ज्यादा ही बढ़ चली थी। जी बहुत बोझिल बोझिल रहने लगा था क्यों यह तो बहुत ठीक ठीक नहीं समझ में आ रहा था लेकिन जब वह वह पूरे दिन के बारे में सोचता तो पाता की उसने क्या क्या किया है? पूरे दिन भर बॉस की खरी खोटी और काम में और तरक्की की होड़ ने तो जैसे ज़िंदगी दूभर कर रखी हो और जब से प्रमोशन मिला है तब से तो ऐसा लग रहा है जैसे कम्पनी ने खरीद लिया हो। बस अब बहुत हो गया अब मैं यह काम और नहीं कर सकता कल जाते ही सबसे पहले ऑफिस में बोल दूंगा की अब अगले महीने इस्तीफ़ा दे रहा हूँ, कुछ और करूंगा बहुत दिनों से कुछ लिखने पढ़ने का मन कर रहा है कालेज के समय कहानियाँ लिखा करता था और आर्ट बनाया करता था वो सब अब छूट गया है लेकिन वो सब करने की इच्छा नहीं छूटी अब करूँगा यह सोचते हुए बड़े झटके से उठा और फोन की तरफ भागा की सबसे पहले ये बात मम्मी और पापा को बताता हूँ। हाँ अब उनको भी यह बात बता ही दूंगा की मुझे जो करना है वही करूँगा दिल पर ये बोझ अब सहा नहीं जा रहा है, हर वक़्त पैसे कमाने और नौकरी बचाने की जद्दोहद ज़िंदगी में नासूर की तरह बढ़ती ही जा रही है हर बार यही लगता है की अब ज़िंदगी थोड़ी आसानी से चलेगी काफी सामान हो गया और पैसे जोड़ लिए लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है| यह ऐसा दलदल है जिसमें जितना निकलने की कोशिश कर रहा हूँ उतना ही धंसता जा रहा हूँ।

तभी दुसरी तरफ घंटी जाने लगी और उधर से शुभम के पापा की आवाज़ आयी और शुभम थोड़ा सकपकाता है फिर बोलता है "पापा मैं आपसे बहुत दिन से एक बात कहना चाह रहा हूँ मुझे अब ये नौकरी नहीं करनी है। अब मैं अपने सपनों को जीने जा रहा हूँ पैसे कितने मिलेंगे पता नहीं है लेकिन अब बस बहुत हो गयी ये नौकरी" और इतना सुनते ही तो शुभम के पापा के नीचे से जैसे जमीन खिसक गयी हो कहाँ वो पास के शहर में नया मकान लेने की तैयारी कर रहे थे और उसका ढिंढोरा भी आस पास में खूब पीट दिया था और कहाँ ये नौकरी छोड़ने की बात पहले तो बदनामी का ही सोचकर रूह काँप गयी कि अब क्या होगा सारे खिल्ली उड़ाएंगे और इतना सोचते ही चेहरा तमतमा गया गुस्से से एक दम लाल और गुस्सा इतना की हलक से आवाज़ ही ना निकले थोड़ी देर में खुद को संभाला और फिर फोन शुभम की मम्मी को देते हुए बोले "अजी सुनती हो ये लो अब तुम ही बात करो पागल हो गया है तुम्हारा बेटा लगता है किसी ने कुछ कर दिया है" इसके साथ और शुभम की मम्मी नें फोन लिया तो शुभम से कुछ कहते न बना घर की इस हालत को देखकर और हालचाल पूछकर फोन रख दिया। बड़े जोर शोर सपने को पूरा करने का ख्वाब एक छण में धराशायी हो गया बिस्तर पर लेटकर पंखे को देख रहा था आँखों के कोने से एक पतली से आँसुओं की धार निकलते ही थोड़ी दूर पर जाकर सूख गयी जैसे की अभी उनको भी पूरी तरह से बहने की इजाजत न मिली हो, वो डायरी उठाता है आस पास कलम खोजता है फिर कुछ लिखने लगता है छोटी ही लेकिन शायद शुरुआत आकर दी शुभम ने।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy