मॉम-डैड
मॉम-डैड
मेरे लिए वे आदर्श कपल थे। हम उन्हें मॉम डैड कहते थे। मेरी सास और ससुर। डैड रिटायर्ड आई.ए. एस थे। मॉम हाउसवाइफ। 3 बेटे 3 बहुएँ और पोते पोतियां। मॉम सुल्ताना थीं घर की। अपने जीवन के अंतिम 15 साल उन्होंने व्हीलचेयर पर गुज़ारे। लेकिन घर उसी रौब और प्रभाव से चलाया। लेकिन कहानी मॉम के प्रभुत्व की नहीं, उनकी लव स्टोरी है। मॉम डैड एक दूसरे को बेहद चाहते थे। जब एक दूसरे से नाराज़ होते तो बोलचाल बंद कर देते। फिर कभी मेरे हाथ या पोते के हाथ चिट्ठी भिजवाते। चिट्ठी में क्या लिखा होता था,पता नहीं। पर चिट्ठी पाते ही डैड दौड़े चले आते मॉम के पास। और मॉम विजयी मुस्कान के साथ मुझे कहतीं ," वेखया, ऐवें ही ज़िद करदे ने। मैं गल्त नहीं कहन्दी। " मैरिज एनीवर्सरी पर दोनों एक दूसरे के लिए छुप कर गिफ्ट मंगवाते, नौकरों के हाथों फूल मंगवाते और 85 साल की मेरी सास एक नई नवेली दुल्हन की तरह शरमा जातीं, डैड का गिफ्ट पा कर। मॉम व्हीलचेयर से ही पूरे घर का अनुशासन बनाये रखते।
और फिर एक दिन डैड गंभीर रूप से बीमार हो गए। मॉम ने सभी बच्चों को बुलाया। अपनी सारी पासबुक्स, चेकबुक्स सामने रख कर बोली,"सब कुछ लगा दो। मेरे सिंह साब को कुछ नहीं होना चाहिए। " लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। डैड नहीं रहे लेकिन वो प्यारी सी अनोखी लव स्टोरी खत्म नहीं हुई। मॉम जब तक रहीं, उन्होंने डैड की उपस्थिति हर दम घर में बनाये रखीं। हर त्यौहार वही खाना बनता जो डैड को पसंद था। उसी रंग की चादरें ,परदे खरीदे जाते तो डैड को पसंद था। मॉम सुबह सुबह वही शबद कीर्तन सुनतीं जो डैड सुनते थे।
मॉम डैड आज नहीं हैं लेकिन उनके प्यार की खुशबू औरअहसास से आज भी घर महका हुआ है।