मनोभाव:-एक स्त्री के-2
मनोभाव:-एक स्त्री के-2
आगे का भाग-
"हाँ, मैं अब लोगों को मनोभाव को पढ़ना सीख रही हूं या यूं कहूं तो उनका चेहरा पढ़ कर बता देती हूं कि उनके मन में क्या चल रहा है। " जानकी में संदली के बाल के लटों को पीछे करते हुए कहा।
संदली ने उत्सुकता से पूछा-"अच्छा आंटी ऐसी बात है तो आप मेरा चेहरा पढ़कर बताइए ?"
जानकी जानती थी संदली के मन में कुछ चल रहा है। संदली अपने चाचा-चाची के साथ रहती थी। जब संदली पैदा हुई तभी उसकी माँ चल बसी। पत्नी के जाने का गम संदली का पिता न सह पाया। उसने अपने आप को दारू के हवाले कर दिया। संदली को उसके चाचा-चाची ने पाला था। वे लोग संदली को बात-बात पर मनहूस कहकर उसको पुकारते थे। जानकी पड़ोस में रहती थीं। संदली की माँ और जानकी जी एक ही गाँव की थी। उन्होंने ही जानकी को बड़ा किया था।
धीरे-धीरे संदली ने जवानी में कदम रखा। संदली सुंदरता और विचारों में बिल्कुल अपनी माँ पर गई थी। संदली ने कालेज में एडमिशन लिया था।
जानकी की तंद्रा तोड़ते हुए संदली बोली-"आंटी जी ,बताइये न मेरा भविष्य कैसा है। ?
जानकी जी बोलीं-"बेटा,हरेक उम्र में ऐसा होता है। तुम अभी सीख रही हो। लड़कों के साथ दोस्ती करना बुरा नहीं है। प्यार एक खूबसूरत एहसास है। अगर वह लड़का तुमसे सच्चा प्यार करता है तो वह अपने कैरियर को लेकर बहुत गंभीर होगा। तुम्हारी पसंद-नापसंद का उसे पता होगा। वह तुम्हेंं पाने के लिए पहले खुद को मजबूत करेगा। वह यह भी चाहेगा कि तुम भी अपने कैरियर में आगे बढ़ो। वह तुम्हारी हर वक्त ख्याल और चिंता करेगा। बेटा तुम कैरियर पर ध्यान दो। वह अगर तुमसे सच्चा प्यार करता है तो वह तुम्हारा इंतजार करेगा, तुम्हें सहयोग करेगा। "
यह सुनकर संदली बोली-"जानकी आंटी आप सच में मनोवैज्ञानिक बन गईंं और एक बात और मैं कभी न कह पायी कि आप मेरी माँ भी बन गईं। "यह कहकर संदली ने जानकी जी को गले लगा लिया।