मनःस्थिति का भूगोल
मनःस्थिति का भूगोल
कभी कभी हमारी मनःस्थिति इस प्रकार की होती है कि हम मन के अनुरूप कार्य नहीं कर पाते हैं। हम कार्य कुछ और करते हैं किंतु मन कहीं और होता है। हमारी मनःस्थिति निर्भर है हमारे विचारों पर क्योंकि जिस प्रकार का हमारा विचार होगा उसी प्रकार की हमारी मनःस्थिति होगी और हमारा विचार निर्भर है हमारी परिस्थिति पर क्योंकि परिस्थितियाँ ही विचारों को जन्म देती हैं। जब परिस्थितियाँ सामान्य होती हैं तो हमारे मस्तिष्क में विचार भी सामान्य या उच्च होते हैं और हमारी मनःस्थिति भी सकारात्मक होती है, वहीं इसके विपरीत जब परिस्थितियाँ असामान्य होती हैं तो हमारे विचार भी सही नहीं होते हैं और हमारी मनःस्थिति नकारात्मक होती है। उदाहरण के तौर पर जब किसी मजदूर वर्ग के व्यक्ति से हम मजदूरी कराते हैं एवं नम्रता पूर्वक व्यवहार करते हैं और उसकी मजदूरी के बदले तय राशि से कुछ ज्यादा राशि या खुश होकर कुछ इनाम देते हैं तो उस मजदूर वर्ग के व्यक्ति की मनःस्थिति स्वतः ही सकारात्मक हो जाती है वह अपने कार्य को और अच्छी तरह से करता है तथा इसके विपरीत यदि हम उससे मजदूरी कराते हैं और उसके साथ सही व्यवहार नहीं रखते हैं साथ ही मजदूरी के बदले उसकी मनःस्थिति बिगड़ जाती है वह हमारे प्रति नकारात्मकता अपनाने लगता है। मनःस्थिति के इसी उतार चढ़ाव को हम मनःस्थिति का भूगोल कहते हैं क्योंकि मनःस्थिति कभी स्थिर नहीं रहती है यह परिस्थिति रूपी भूमंडल पर विचारों के समंदर से बहने वाली वो हवा है जो कभी सकारात्मकता लिए शांत तो कभी नकारात्मकता लिए एक भंवर की भाँति होती है।
