STORYMIRROR

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Tragedy Crime

3  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Tragedy Crime

मक़सद

मक़सद

7 mins
197

"सुनो, जयपुर से आते समय पनीर के घेवर लेते हुए आना।"अदिति ने अपने पति विवेक से फोन पर कहा "कल 'हरि' भाईसाहब आने वाले हैं ना। उन्हें पनीर के घेवर बहुत पसंद हैं।" अदिति ने विवेक को यह भी बता दिया कि कल हरि भाईसाहब भी आने वाले हैं। "अच्छा मैडम जी, इतना खयाल रखतीं हैं, भाईसाहब का। हमारा तो खयाल आज तक भी नहीं किया आपने।"विवेक उसे छेड़ते हुए बोला। 

"वो भाईसाहब कितने आशीर्वाद देते हैं हमें ? आखिर उन आशीर्वादों के लिए खयाल तो रखना ही पड़ेगा ना। और आप हमें देते ही क्या हैं ? आज तक तो कुछ दिया नहीं। फिर आपका खयाल क्यों करें" ? अदिति ने उलाहना देते हुए कहा। 

"अरे मैडम। सब कुछ तो दे दिया आपको। हमारे पास तो बस एक दिल ही था उसे हमने आपके कदमों तले बिछा दिया। अब उससे बड़ी चीज तो कोई और है नहीं हमारे पास जो हम आपको दे सकें। आप ही बता दो कि हम आपको और क्या दें" ? विवेक के शब्दों में दुनिया भर का प्यार घुला हुआ था। 

"बस, आप तो जल्दी से आ जाओ। यही हमारे लिए सबसे बड़ा तोहफा है। आपके बिना एक एक पल कैसे कटता है, यह हम ही जानते हैं। और हां, रात का समय है। ड्राइवर से कहना कि गाड़ी लिमिट में ही चलाये, दौड़ाये नहीं। यदि उसे नींद आ रही हो तो फिर कल सुबह आ जाना। रात में रिस्क लेने की जरूरत नहीं है।" अदिति ने प्यार के साथ साथ अपनी चिंता भी अपने पतिदेव विवेक को बता दी। 


अदिति और विवेक की शादी को चार वर्ष हो गए थे मगर ऐसा लगता था कि जैसे उनकी शादी कल ही हुई है। कितनी ताजगी भरी थी उनके रिश्तों में। दोनों जैसे एक दूसरे के लिए ही बने थे। विवेक एक आर्किटेक्ट था और अपने काम का मास्टर था वह। अलग अलग शहरों में वह अपने काम के सिलसिले में जाता ही रहता था। अदिति कंप्यूटर इंजीनियर थी और पार्ट टाइम जॉब करती थी घर से ही। दोनों में खूब छन रही थी। 


अचानक रात को बारह बजे अदिति के पास फोन आया। कोई पुलिस वाला था। कह रहा था कि विवेक का एक्सीडेंट हो गया था। अब वह अस्पताल में भर्ती है जोधपुर में।

अदिति को एकदम से सांप सूंघ गया। लेकिन हिम्मत करके वह खड़ी हुई और तुरंत गाड़ी निकाल कर सीधे अस्पताल भागी। 


जब वह अस्पताल पहुंची तो इमरजेंसी में विवेक भर्ती था। उसे अब होश आ गया था। सारा शरीर खून में नहाया हुआ था उसका। अदिति ने जैसे ही विवेक को इस हालत में देखा, वह खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाई और फफक कर रो पड़ी। नर्स उसे लेकर बाहर आ गई। 


अपने पर कंट्रोल कर वह फिर से विवेक के पास चली गई। शरीर पर घावों के निशान हल्के ही थे मगर डॉक्टर यह आशंका जता रहे थे कि विवेक की रीढ़ की हड्डी टूट चुकी है और वह कमर से नीचे के भाग के लिए अपाहिज बन चुका है। 


अदिति के लिए यह खबर किसी सदमे से कम नहीं थी। विवेक जैसा स्मार्ट, हंसमुख, एक्टिव और जिंदादिल व्यक्ति अपंग होकर एक जगह कैसे बैठ सकता है ? वह दुखों के सागर में डूब गई। मगर ऐसे हताश और निराश होने से तो काम नहीं चलेगा इसलिए उसने अपने आंसू पोंछ लिए। अब अदिति ने अपने समस्त नाते रिश्तेदारों को भी बुला लिया था। 


डॉक्टर की सलाह पर अदिति विवेक को मुंबई के सबसे बड़े अस्पताल में लेकर गई। वहां पर उसने विवेक का इलाज दो महीने रुक कर करवाया। पैसा पानी की तरह बहाया मगर विवेक के शरीर में कमर से नीचे के हिस्से में "सेंसेशन" नहीं आया। अब विवेक जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो गया था।


अब अदिति पर घर का सारा भार आ गया था। अब तो उसे फुल टाइम जॉब करना आवश्यक हो गया। विवेक को संभालना, घर को संभालना और जॉब करना। बड़ा मुश्किल काम था इन सबके साथ सामंजस्य स्थापित करना। लेकिन अदिति एक ऐसी साहसी, परिश्रमी, समझदार और व्यवहार कुशल महिला थी जो सब कुछ अच्छी तरह से हैंडल कर सकती थी। आज के जमाने में वह सीता जैसी पतिव्रता, सावित्री जैसी दृद निश्चय वाली, द्रोपदी जैसी परिस्थितियों से सामंजस्य बैठाने वाली नारी थी। उसकी मेहनत, व्यवहार और उसके प्यार ने विवेक को मानसिक रूप से मरने नहीं दिया वरना विवेक जैसे व्यक्तित्व वाला आदमी सदमे से ही पागल हो जाता। 


उस एक्सीडेंट को दो साल हो चुके थे। अदिति ने एक नौकर विवेक के लिए अलग से लगा दिया था। विवेक अब व्हील चेयर पर बैठ सकता था। दो आदमी उसे पलंग से उठाकर व्हील चेयर पर बैठा देते फिर उसे व्हील चेयर से उठाकर कार में बैठा देते थे। इस तरह विवेक ने अपने ऑफिस जाना भी शुरू कर दिया था। जिंदगी धीरे धीरे फिर से पटरी पर लौट रही थी। 


अब घर में तीन तीन नौकर हो गए थे। एक ड्राइवर, दूसरा विवेक का सहायक और तीसरा घर का काम करने वाला। अदिति को ऐसा लगने लगा कि वह जैसे इन नौकरों का पेट भरने के लिए ही कमा रही है। नौकर भी थोड़े थोड़े उद्दंड होते जा रहे थे। नौकरों को लगता था कि उनके बिना विवेक और अदिति जी ही नहीं सकते हैं। 


विवेक का कमर के नीचे का हिस्सा बिल्कुल सुन्न पड़ गया था इसलिए बच्चे होने की कोई संभावना नहीं थी। इसलिए उन दोनों ने अनाथाश्रम से एक बिटिया गोद ले ली। 


एक दिन अदिति ने ड्राइवर संजय को कुछ कहा तो उसने अदिति को कुछ उलटा सीधा बोल दिया। विवेक ने जब संजय को डांटा तो संजय ने विवेक को भी कुछ कुछ सुना दिया। यह कुछ ज्यादा हो गया था। विवेक को बहुत अखरा था संजय का व्यवहार। इस असभ्य व्यवहार के कारण अदिति और विवेक ने संजय को नौकरी से निकाल दिया ‌‌। 


संजय को जैसे विश्वास ही नहीं हुआ कि उसे नौकरी से निकालने की हिम्मत कर सकेंगे ये लोग। इसलिए वह बदतमीजी पर उतर आया था। वह उनका दुश्मन बन गया था और दूसरे लोगों को भड़का कर उसने वहां पर ड्राइवर लगने नहीं दिया किसी को। 


घर का काम करके रोज रात को करीब दस बजे अदिति अपनी गाड़ी गैरेज में पार्क करती थी। तब तक दोनों नौकर भी चले जाते थे। 


एक दिन रात को करीब साढ़े दस बज गए थे। बिटिया सो गई थी। अदिति जैसे ही गाड़ी पार्क करने बाहर आई, वहां पर घात लगाकर छुपे बैठे संजय ने उस पर चाकू से प्रहार करने शुरू कर दिए। अदिति बचने के लिए वापस अपने घर के दरवाजे की ओर भागी लेकिन संजय ने उसे पकड़ लिया। अदिति दरवाजे के बाहर गिर पड़ी। संजय उस पर चाकू से वार करता रहा। अदिति पड़ी पड़ी जोर जोर से चिल्लाने लगी। मगर हाय रे दैव ! विवेक उस क्रंदन को सुनकर खून के आंसू रो पड़ा। उसकी दुनिया उसके सामने उजड़ रही थी मगर अपंग विवेक कुछ भी नहीं कर सकता था। जोर से दम लगाकर वह पलंग से नीचे कूद पड़ा। अपनी सारी शक्ति लगाकर हाथों के सहारे से धीरे धीरे रेंगने लगा। अदिति की चीत्कार उसके कानों को फ़ाड़ रही थी। वह मजबूर था। जब तक वह बाहर पहुंचता तब तक अदिति मर चुकी थी। ड्राइवर संजय भाग गया था वहां से। 


विवेक ने जब सामने यह मंजर देखा तो वह भी बेहोश हो गया। इतने में शोर सुनकर एक दो लोग आ गए। उन लोगों ने शोर मचाकर पड़ोसियों को बुलाया और फिर दोनों को अस्पताल पहुंचाया। वहां पर अदिति को मृत घोषित कर दिया गया। पुलिस को सूचना दी गई और पुलिस ने अपना काम शुरू कर दिया। 


विवेक की दुनिया बर्बाद हो गई थी। क्या से क्या हो गया अचानक ? अदिति विवेक के लिए लाइफ लाइन थी। अदिति के बिना विवेक का अब कोई अस्तित्व नहीं था। एक जिंदादिल आदमी विवेक मृत जैसा हो गया था। नियति के सामने किसका वश चलता है। नन्ही बिटिया फिर से अनाथ हो गई थी।


चूंकि घर के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ था इसलिए वह सारी घटना उसमें रिकॉर्ड हो गई थी। उससे सब कुछ साफ़ हो गया था। चार साल चला था मुकदमा। विवेक टूटा नहीं था बल्कि और मजबूत हो गया था। उसका एक ही सपना रह गया था बस। उसकी दुनिया बर्बाद करने वाले राक्षस की बरबादी। बस, ना इससे कम और ना इससे ज्यादा। सारी ताकत लगा दी थी उसने इसके लिए। 


आखिर वो दिन आ ही गया। आज उस मुकदमे का फैसला होना था। जज साहब कोर्ट में बैठे। फ़ाइल मंगवाई और फैसला सुना दिया। संजय को उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी। विवेक वहीं फट पड़ा। फांसी क्यों नहीं दी उस राक्षस को ? उसके ये शब्द आज भी उस न्याय के मंदिर में गूंज रहे हैं और न्याय व्यवस्था पर हंस रहे हैं। संजय ने केवल अदिति का ही खून नहीं किया था बल्कि विवेक की भी लगभग हत्या ही कर दी थी। नन्ही बिटिया का सारा संसार उजाड़ दिया था। मगर जज का निर्णय तो अटल था। इस फैसले से विवेक टूट गया था। उसे लगा जैसे अब जीने का कोई मकसद नहीं रह गया था उसके पास। 


मगर उसे याद आया कि नन्ही बिटिया के लिए तो जीना ही पड़ेगा उसे। अगले ही पल उसने फिर से एक और निश्चय किया। हाई कोर्ट से फांसी की सजा करवाऊंगा इसे। यह सोचकर उसके अंदर कुछ जान सी आई। उसे ऐसा लगा कि जैसे अब फिर से जीने का मकसद मिल गया है। निराशा और आशा दोनों के साथ विवेक धीरे धीरे घर की ओर बढ़ने लगा। 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance