मजबूत कंधे

मजबूत कंधे

5 mins
608


अस्पताल में बेचैनी से चहलकदमी करती हुई सोना जी मन ही मन भगवान से प्रार्थना करते हुए ना जाने कितनी मनौतियाँ मना रहीं थीं। उनकी बहू निभा अंदर प्रसूति कक्ष में प्रसव पीड़ा से जूझ रही थी।

आख़िरकार दस वर्ष के इंतज़ार के बाद प्यारी सी बिटिया की किलकारी से उनका सूना आँगन गूँज उठा।

यूँ तो सोना जी पोती के जन्म से खुश थी, लेकिन साथ ही मन में थोड़ी कसक भी थी कि काश इतने इंतज़ार के बाद घर में पोता आया होता। ऊपर से डॉक्टर ने साफ़-साफ़ कह दिया था कि अब दूसरा गर्भ निभा के जीवन के लिए ठीक नहीं है।

बिटिया के पिताजी अतुल ने बड़े ही प्यार से उसका नाम रखा 'भाव्या'।

चौड़े माथे और एक अलग ही आभा से दमकती हुई भाव्या अपने नाम को सार्थक करती हुई प्रतीत होती थी।

भाव्या अब विद्यालय जाने लगी थी। उसकी तोतली बोली और किलकारियों की जगह अब उसके जिज्ञासु बालमन में उपजे अनेक सवालों ने ले ली थी।

सोना जी हमेशा उसे लड़की होने का अहसास दिलाते हुए कम बोलने की हिदायत देतीं| लेकिन अतुल कहता, "यही तो हमारी सरस्वती रुपा बिटिया की ख़ासियत है माँ। इसके अंदर सीखने की, जानने की ललक है जो इसे जीवन में बहुत आगे लेकर जायेगी।"

"जाना कहाँ है इसे? बस ससुराल ही तो। ये लक्षण रहें तो जाने क्या होगा।" कहकर सोना जी भगवान के आगे हाथ जोड़ लेती।

अतुल आगे कुछ कहना भी चाहता तो निभा उसे रोक लेती और कहती, "बेवजह घर में बहस का क्या फायदा है? सब वक्त पर छोड़ दीजिये।"

भाव्या के विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस पर विद्यार्थियों की परेड निकलने वाली थी। लड़कियों की तरफ से नेतृत्व की जिम्मेदारी भाव्या को दी गयी थी।

विद्यालय के पश्चात एक दिन घर में भाव्या परेड की रिहर्सल कर रही थी कि तभी सोना जी उसे टोकते हुए बोलीं, "लड़कियों को कंधे झुकाकर चलने चाहिए, ना कि तनकर।"

दादी की बात सुनकर भाव्या का चेहरा कुछ पल के लिए निर्विकार हो गया। लेकिन अगले ही पल उसने अपनी दादी को गले लगाते हुए बोला, "दादी, एक दिन आप भी कहेंगी लड़कियों को झुकना नहीं चाहिए। ये आपकी पोती का आपसे वादा है।"

सोना जी ने उसकी बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और अपने कमरे में चली गयीं।

पढ़ाई में होशियार भाव्या अब स्नातक की विद्यार्थी थी। उसने सिविल सेवा में जाने का पूरा मन बना लिया था।

जब पहली ही कोशिश में भाव्या का परीक्षा में चयन हो गया तो उसके पैर मानों ज़मीन पर ही नहीं थे।

उसके साथ-साथ अतुल और निभा की खुशी का भी कोई ठिकाना नहीं था। खुश तो सोना जी भी थीं कि उनके खानदान में आज तक किसी ने इतनी बड़ी परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कि थी, वो भी पहले ही प्रयास में। फिर भी अपनी कुंठाओं में जकड़ी हुई वो इस खुशी को ज़ाहिर नहीं कर पा रहीं थी।

भाव्या के सामने जब आईएएस और आईपीएस में से किसी एक को चुनने का विकल्प रखा गया तो उसने आईपीएस चुना।

सोना जी ने इसका विरोध किया लेकिन अतुल और निभा ने भाव्या के फैसले में उसका साथ दिया।

सबका आशीर्वाद लेकर भाव्या अपनी ट्रेनिंग के लिए चली गयी।

ट्रेनिंग पूरी करने के बाद जब पुलिस अधिकारी की वर्दी में भाव्या अपने घर पहुँची तो अतुल और निभा बहुत भावुक हो गए।

अतुल ने सोना जी से कहा, "देखो तो माँ, कितनी जँच रही है तुम्हारी पोती इस वर्दी में।"

सोना जी ने कुछ नहीं कहा बस मुस्कुराकर अपने कमरे में चली गयी।

ये देखकर अतुल को बहुत बुरा लगा। उन्हें समझाते हुए भाव्या बोली, "कोई बात नहीं पापा। दादी जताती नहीं हैं लेकिन मैं जानती हूँ वो भी बहुत खुश है। हमें उन्हें थोड़ा वक्त देना होगा बदलते वक्त के साथ अपनी सोच को बदलने का।"

भाव्या के सर पर हाथ रखते हुए अतुल ने निभा से कहा, "हमारी बिटिया समझदारी के मामले में बिल्कुल तुम पर गयी है।"

भाव्या की पोस्टिंग पास के ही जिले में हुई थी।

अगले दिन जब वो अपनी पोस्टिंग पर जाने लगी तो सोना जी ने उसे एक बैग देते हुए कहा "जानती हूँ अब तू बड़ी अधिकारी हो गयी है। नौकर-चाकर वहाँ तेरे आगे-पीछे घूमेंगे पर वो हमारी तरह तेरा ख्याल नहीं रख सकते। इसमें खाने का कुछ सामान है। सेहत ठीक रहेगी तब तो अपराधियों को पकड़ेगी तू वरना तो नाक ही कट जाएगी हमारी। खत्म हो जाये तो बता देना। फिर भेज दूँगी।"

भाव्या बचपन की तरह उनके गले लगते हुए बोली, "फिक्र मत कीजिये दादी, आपकी ये पोती आपकी नाक का पूरा ख्याल रखेगी। और सेहत बनाने के साथ-साथ आपका सर खाने छुट्टियों में आपके पास आती रहेगी।"

पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभाने के कारण महकमे में सभी भाव्या की बहुत इज्ज़त करते थे।

अपराधियों में जल्दी ही उसका खौफ़ भरने लगा था।

एक शाम को घर लौटते हुए बदहवास दौड़ती हुई एक लड़की भाव्या की गाड़ी से टकरा गई। भाव्या तत्काल उसे लेकर अस्पताल गयी।

होश में आने पर उस लड़की ने भाव्या को बताया की वो बच्चों का अपहरण करके, उन्हें अपाहिज बनाकर भीख मंगवाने वाले गैंग के चंगुल से किसी तरह निकलकर भाग रही थी।

उसकी बात सुनकर भाव्या हैरान हो गयी कि शांत और सुरक्षित नज़र आने वाले इस शहर में ऐसा कांड भी हो रहा है।

उसने इस मामले की तह तक जाने का फैसला कर लिया।

उस लड़की से मिली जानकारियों के अनुसार योजना बनाकर अपनी टीम के साथ भाव्या ने मासूम बच्चों के साथ ये घिनौना अपराध करने वाले उस खतरनाक गिरोह को सबूत के साथ गिरफ्तार कर लिया और हज़ारों बच्चों का जीवन बर्बाद होने से बचा लिया।

भाव्या और उसकी टीम के सहयोग से जल्दी ही लगभग सभी बच्चे पर्याप्त चिकित्सा के बाद अपने-अपने परिवार के पास पहुँच गए।

महकमे में सभी लोग भाव्या को इस सफल नेतृत्व के लिए बधाई दे रहे थे।

गणतंत्र दिवस के अवसर पर अपने हाथों से भाव्या के कंधे पर सितारे लगाकर महामहिम राष्ट्रपति जी ने उसे सम्मानित किया।

टेलीविज़न पर भाव्या को देखते हुए आज सोना जी की आँखों से आँसू बह रहे थे।

भाव्या के घर आने पर उसे गले लगाते हुए सोना जी ने कहा, "तूने सही कहा था मेरी बिटिया। लड़की को कभी झुकना नहीं चाहिए।

तेरे तने हुए कंधों पर आज हमारे परिवार का नाम गर्व से सर उठाकर खड़ा है।"

दादी का आशीर्वाद पाकर भाव्या की आँखों से भी खुशी के आँसू बह चले थे।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama