मित्र
मित्र
"अरे तुम यहाँ बैठे हो मित्र मैं तुम से मिलने तुम्हारे घर गया था।" "पढ़ाई करने के लिये यही जगह अच्छी लगती है।
यहाँ मैं और मेरी किताबें एक दूसरे से अच्छे से बातें कर लेते है।"
"अच्छा मज़ाक कर लेते हो,भला किताबें कैसे बातें करेंगी ?"
"करती हैं मेरे भाई! कभी मन लगाकर पढ़ो फिर देखना कमाल..."
"ओह! ये बात है, इसलिए आज कल तुम ज्यादा नजर नहीं आते" ?
"हाँ भाई ! मैं सोचता हूँ अच्छे से तैयारी कर लूँ ताकि अपने पैरों पर अच्छे से खड़ा हो जाऊँ।"
"बात तुम्हारी सही है पर इतना परेशान न हो जो होगा
देखा जायेगा। अब तुम मुझे ही देखो, बिंदास रहता हूँ। आने वाले कल के लिये रोता नही हूँ, जो होगा देखा जायेंगा।
भाग्य मे जो लिखा है वही होगा।"
"पर मैं भाग्य के सहारे नहीं बैठ सकता मैं मेहनत करूँगा।
खूब मन लगाकर पढूंगा यही किताबें एक दिन मुझे कामयाबी की मंजिल दिलाएगी। अब तुम जाओ और मुझे पढ़ने दो।"
"ठीक है मित्र जा रहा हूँ,
पर याद रखना तुम खुद को परेशान कर रहे हो, यूँ अकेले बैठ कर।"
"अरे भाई! मेरे साथ मेरी किताबें है और ये किताबें ही मेरी सबसे अच्छी मित्र हैं। मै अकेला नहीं हूँ।"
"तो क्या मैं तुम्हारा मित्र नहीं हूँ"?
"तुम भी हो, पर इस समय मुझे तुम्हारी जरूरत नहीं है।मुझे सिर्फ पढ़ना है मुझे इस समय बस इन किताबों का साथ चाहिये।"
"ठीक है मित्र मैं जा रहा हूँ। तुम खूब मन लगाकर कर पढ़ना और हाँ! अगर कुछ मेरे लायक काम हो, तो जरूर बताना। मैं हमेशा तुम्हारे सुख दुख में साथ हूँ।"
"धन्यवाद भाई।"
"मित्र को धन्यवाद नहीं बोलते गले लगाकर जाने को बोलते हैं। ठीक है, मैं चला वैसे भी मैंने तेरा बहुत समय ले लिया।"
"कोई बात नहीं भाई! कम से कम तू मुझे ढूँढते- ढूँढते पास आ तो गया वरना और लोग तो मेरी नाकामयाबी देख कर भाग जाते हैं, कुछ लोग तो बहुत नजरअंदाज करते हैं, इसलिए मेरे शब्दों में कठोरता आ गयी है।"
"अरे! तू इतना परेशान क्यूं है..मैं हूँ ना तेरा मित्र। तुझे घबराने की जरूरत नहीं है। अब तू पढ़ाई कर! अब मैं जब भी तुझ से मिलने आऊंगा, तेरे लिये उपहार में किताबे लाऊंगा।"
*संस्कार संदेश-* किताबें हमारी सबसे अच्छी मित्र होती हैं। इनका उपयोग हमारे जीवन को प्रकाशमय बनाता है।
