गुरू और शिष्य
गुरू और शिष्य
श्याम और सोनू एक ही स्कूल में पढ़ते थे। पड़ोसी होने के नाते दोनों साथ ही स्कूल जाते थे। श्याम कक्षा एक का विद्यार्थी था जबकि सोनू कक्षा आठ का विद्यार्थी था। दोनों की उम्र में भी बहुत फर्क था, फिर भी दोनों एक-दूसरे के साथ ही रहते थे। सोनू के अच्छे व्यवहार के कारण श्याम मन ही मन सोनू को एक अच्छा दोस्त मानने लगा था।
सोनू साथ रहता था, पर उसके मन में दोस्ती जैसा कुछ भाव नहीं था। श्याम अक्सर सोनू से पढ़ाई के सम्बन्ध में प्रश्न उत्तर किया करता था। जब भी मौका मिलता, वह अपना बैग उठा लाता और घर पर या खेल के मैदान में वह सोनू के साथ पढ़ाई करता था। श्याम दोस्ती के साथ-साथ सोनू को अपना गुरु भी मानने लगा था।
श्याम के अत्यधिक प्रयास और कोशिश की वजह से पढ़ाई में निरन्तर तरक्की हो रही थी। श्याम का स्कूल में भी बड़ा नाम हो रहा था। धीरे-धीरे श्याम को पढ़ाई में बहुत सारे पुरस्कार मिलने लगे।
सोनू ने एक दिन कहा-, "यह जो-जो तुम्हें पुरस्कार मिल रहा है, वह मेरे कारण ही मिल रहा है। तुम उसका बखान क्यों नहीं करते?" हालाँकि सोनू ने कभी नहीं कहा कि तुम मुझसे प्रश्न पूछो या मेरे पास आकर पढ़ाई करो। श्याम अपनी मर्जी से ही सोनू से पढ़ाई के सम्बन्ध में प्रश्न उत्तर किया करता था और पढ़ने के लिए सोनू के पीछे-पीछे जाया करता था।
सोनू की बात सुनकर श्यामू ने कहा-, "ठीक है, जब भी मुझे अब कोई पुरस्कार देगा। मैं तुम्हारा जिक्र जरूर करूँगा।" धीरे-धीरे श्यामू, सोनू का जिक्र भी करने लगा, कि पढ़ाई में सोनू मेरी अक्सर मदद करता है। इस पर भी सोनू को गुस्सा आने लगा। वह कहता कि-, "सिर्फ तुम मदद करना ही कहते हो, जबकि तुम्हारी पढ़ाई में सिर्फ और सिर्फ मेरा ही हाथ है।" श्याम को सोनू की बात समझ में नहीं आती कि आखिर सोनू क्या चाहता है? धीरे-धीरे सोनू, श्याम से दूर होने लगा। यह देखकर श्याम बहुत दुःखी हो गया। उसने सोनू से कई बार-बात करने की कोशिश की, पर सोनू ने शाम से कोई बात नहीं की।
एक बार तो सोनू ने हद कर दी। श्याम से यह कहकर पीछा छुड़ा लिया कि-, "अब तुम मेरे से कोई प्रश्न न करना। मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं करूँगा। देखूँ, तुम अपने आप कैसे बढ़ पाते हो और कैसे पुरस्कार लेते हो? मेरा तुम्हारा कोई सम्बन्ध नहीं है। न ही तुम मेरे हमउम्र हो, जो मैं तुम्हारा दोस्त हूँ। मैं तुम्हारा गुरु भी नहीं हूँ, जिससे चाहो, उससे पढ़ो, पर मेरे पीछे मत आना। मैं अपने क्लास का मानिटर हूँ। मेरा रुतबा नेता की तरह है। सब मेरे पीछे रहते है। तुम्हारे साथ रहने से मेरा नुकसान हो रहा है। हर रोज कोई न कोई मुझसे तुम्हारे बारे में पूछता है। मेरे रुतबे पर इसका असर पड़ रहा है। आज से मेरा तुम्हारा रिश्ता खत्म.. अब तुम कभी मेरे साथ नहीं रहना। तुम यहाँ से चले जाओ!"
सोनू की बात सुनकर श्याम रोते हुए घर चला आया।
श्याम को कुछ दिन बहुत दुःख हुआ। फिर धीरे-धीरे सब सही हो गया। श्याम घर पर खुद ही पढ़ने लगा और स्कूल में मन लगाकर पढ़ने लगा। श्यामू को पहले से भी अधिक पुरस्कार मिलने लगे, परन्तु उसको दुःख यह था कि उसने सोनू को मन ही मन अपना दोस्त और गुरु मान लिया था। वह सोचता कि सोनू साथ होता, तो अच्छा लगता। पर सोनू को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। सोनू को अपने ऊपर गुरूर होने लगा था। इसलिए वह सबसे धीरे-धीरे जुदा हो रहा था। उसने अपने गुरूर में श्यामू जैसे मित्र को भी ठुकरा दिया।
शिक्षा
हमें अपने ऊपर कभी भी गुरूर नहीं करना चाहिए। गुरूर हमें अकेला और अपनों से दूर कर देता है।
