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Tr Shama Parveen

Children Stories

3  

Tr Shama Parveen

Children Stories

अमरूद

अमरूद

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रेखा अपने छोटे भाई विजय के साथ स्कूल से घर जा रही थी। रास्ते में अमरूद का पेड़ लगा था। विजय ने दीदी से कहा, "रेखा दीदी! मुझे अमरूद खाना है, तोड़ के दो।"

रेखा बोली, "मैं कैसे तोडूँ अमरूद? ये तो बहुत ऊँचाई पर है। मेरा हाथ नहीं पहुँच पा रहा है। घर चलो! माँ से कहकर तुम्हें अमरूद दिला दूँगी।"

"नहीं.. मुझे अभी चाहिए अमरूद और इसी पेड़ के.. वो देखो, जो गुच्छे में है वो वाला अमरूद चाहिए। घर जा कर नहीं मिलेगा। माँ बाजार जायेगी नहीं। वह पिताजी को फोन करके लाने को कहेगी और जब पिताजी रात को घर वापस आयेंगे, तब तक या वो लाना भूल जायेंगे या हम लोग सो जायेंगे। दीदी अभी मुझे इस पेड़ से अमरूद तोड़ के दो। मुझे अभी मन कर रहा है खाने का। देखो न.. कितने सारे अमरूद लगे हैं। मैं ईंट मार कर तोड़ लूँ?"

"नहीं भाई! ऐसा न करना। सब लोग आ-जा रहे है। अगर किसी को ईंट लग गयी तो माँ बहुत गुस्सा होगी।"

"दीदी! आप ही तोड़कर दो मुझे। अब कुछ समझ में नहीं आ रहा है। आप पेड़ पर चढ़ने नहीं दे रही हो और ईंट मारने से भी मना कर रही हो।"

"ठीक है भाई! मैं कोशिश करती हूँ। पास एक डण्डा पड़ा है। मैं इसी डण्डे की सहायता से अमरुद तोड़ती हूँ।" वह अमरुद तोड़ने की कोशिश करती है।

"ये डण्डा भी पहुँच नहीं रहा है। मैं उचक कर तोड़ती हूँ।"

रेखा थोड़ा पीछे हटी और दौड़कर उचककर अमरूद के पेड़ पर डण्डा दे मारा। अमरूद तो नहीं गिरे, पर रेखा फिसलकर गिर गयी। उसे चोट लग गयी। वह रोने लगी।

विजय ने दीदी को उठाया। किसी तरह दोनों घर पहुँचे। विजय अपनी जिद पर शर्मिन्दा हुआ। उसने अपने किए की माफ़ी माँगी और माँ को सारा सच बता दिया। माँ ने चोट पर मरहम लगाया फिर समझाया और गले से लगाया।


*शिक्षा*

हमें धैर्य रखना चाहिए। जिद नहीं करना चाहिए।





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