दसवीं कक्षा
दसवीं कक्षा
"पप्पू बेटा! तू क्या कर रहा है?" पप्पू के पिताजी ने पूछा!
"पिताजी! मत रोकिए मुझे, मेरे नम्बर कम आये हैं दसवीं कक्षा में। मैं इस नदी में कूदकर अपनी जान दे दूँगा।" पप्पू ने कहा।
"नहीं बेटा! ऐसा मत करना, तेरी माँ को गुज़रे जमाना हो गया। जब तू दो साल का था, तब तेरी माँ हम दोनों को छोड़कर भगवान को प्यारी हो गयी। मैने तुझे माँ और पिता दोनों का प्यार दिया है। मेहनत मजदूरी करके तुझे पढ़ाया कि पढ़-लिखकर तू अपने पैरों पर खड़ा हो जाये। सपने पूरे करे। मेरे सपने पूरे करे और इस देश के सपने पूरे करे। कुछ करना है तो इस देश के लिए कर बेटा! अपने जीवन को देश के लिए समर्पित कर बेटा! अच्छे कर्म करके ताकि मुझे तुझ पर गर्व हो और मैं सबसे खुशनसीब पिता बन जाऊँ। और तू दसवीं कक्षा में नम्बर कम पाने की वजह से आत्महत्या करने जा रहा है। अरे, तू मेहनत कर! इस बार और अच्छे नम्बर ले आना।
अभी पूरा जीवन पडा है। मेहनत से हर सफलता हासिल की जा सकती है। तू मेरा बहादुर बेटा है। तू ये कायरों जैसी हरक़त न कर, वरना मैं जीते जी मर जाऊँगा। तेरे सिवा मेरा इस दुनिया में है ही कौन?"
इतना कहकर पप्पू के पिताजी रोने लगे। पप्पू को अपनी गलत हरकत पर पछतावा हुआ। उसने पिताजी के आँसू पोंछे और माफ़ी माँगते हुए गले से लगाया। साथ ही वादा भी किया कि मेहनत से पढ़-लिखकर एक अच्छा इन्सान बनकर दिखाऊँगा तथा आपका और माँ का सपना भी पूरा करूँगा। साथ ही साथ समाजसेवा करके देश की सेवा सदैव करता रहूँगा।"
पप्पू की ढ़ाढस भरी बातें सुनकर उसके पिता को बड़ी प्रसन्नता हुई। उनका सारा दुःख दूर हो गया।
*शिक्षा*
हालात कैसे भी हों, हमें हमेशा धैर्य बनाए रखना चाहिए।
