मेरी ज़िंदगी
मेरी ज़िंदगी
अँधेरों से उजालों में बाहर निकल कर देखो सुबह सूरज की किरणें अपनी खिड़की खोलकर देखो, अपने पुराने दुःखों को ज़िंदगी में भूला कर तो देखों,देखों हर चेहरे पर मुस्कान आज़मा कर देखों, वक्त के अँधेरों से उजालों में लाकर देखों,हर यादों में उसकी नादानियाँ देखों, जितनी भी हो ख़ूबसूरत दुनिया,उस अँधेरी दुनिया से बाहर उजालों में आकर देखों,अपने सभी पँख फैलाकर पंछियों की तरह खुली हवाओं में उड़ना सीखों,जितनी भी ज़िन्दगी हो,बस दो पल किसी के साथ प्यार से निकाल कर देखों,अपने एहसासों। की गहराइयों में,खुलें अरमान सजा कर देखों, सबकी ज़िंदगी की तरह दूसरों की ज़िंदगी में खुशियाँ लाकर देखों,
अपनी उम्मीदों को कभी दबाना नहीं चाहिए,अपने सपनों को कभी चूर नहीं होने देना चाहिए, जीतने भी वक्त साथ हो उन सब के ज़िंदगी में बस खुशियाँ ही खुशियाँ हो सब के साथ हमारी,
अपनी खुशियों से ज़्यादा दूसरों की खुशियाँ ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं,जो पल दूसरों से ज़्यादा अपनों में नहीं होते वो खुशियाँ भी कभी अपनी नहीं होती हैं!
मेरी ज़िंदगी नाज़ करती हैं,उन पर जिससे मैं खुशियाँ देख सकूँ!