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Nalini Mishra dwivedi

Inspirational

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Nalini Mishra dwivedi

Inspirational

मेरी ताई माँ

मेरी ताई माँ

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बचपन से माँ और ताई माँ दोनो का प्यार मिला। ताई माँ की एक बेटी थी। और मैं दो भाई और एक बहन, मैं सबसे बड़ा था।

ताई माँ मुझे सबसे ज्यादा मानती थी। कभी मेरी ग़लतियों पर माँ मुझे मारने आती तो वो हमेशा अपने आँचल में छुपा लेती और कभी आइसक्रीम के लिये माँ पैसे नहीं देती थी। ताई माँ चोरी से मुझे दे देती थी जब माँ को पता चलता तो हमेशा ताई माँ से कहती कि "जीजी आप छोरे का मन बढ़ा रही है" वो हमेशा यही कहती यही उमर है इसे खेलने, खाने की बाद में समझ जायेगा।

मधु दीदी भी ताई माँ से हमेशा शिकायत रहती कि माँ आप रोमी को ज्यादा प्यार करती है ।

अरे तेरा छोटा भाई है ना तो प्यार थोड़ा ज्यादा बनता है। और मैं उनको चिढ़ाने लगता वो दौड़ती मुझे मारने के लिए मैं भाग कर ताई माँ के गोद में छिप जाता।

ना जाने किसकी नजर लग गयी एक दिन पापा और ताऊ जी में ज़मीन को लेकर झगड़ा हुआ बात इतनी ज्यादा बढ़ गई कि हमें घर छोड़ कर जाना पड़ा।उस समय मैं पांच में पढ़ता था। "बाल मन" तो कुछ समझ ना पाया। पापा ने हम सबको अपने साथ हमेशा के लिये कोलकाता ले आये।

पापा और ताऊ जी के झगड़े ने ताई माँ से दूर कर दिया था। जब मैं आ रहा था तब ताई माँ फूट फूट कर रो रही थी, पर उस समय कोलकाता जाने की खुशी में ये ख्याल ही नहींआया कि मैं उनसे दूर जा रहा हूँ।

यहाँ आने के बाद मैं कई बार माँ से पूछा हम ताई माँ के पास क्यो नहीं जाते?? माँ हर बार कुछ न कुछ बहाने बना देती।

कई बार तो कोशिश की उनसे मिलने जाने की पर हर बार पापा मना कर देते। धीरे धीरे मैं अपनी पढ़ाई में वयस्त हो गया। और उनसे मिलने कभी जा नहीं पाया।

एक दिन गाँव से खबर आई कि ताई माँ बीमार है उन्हे शहर के इलाज की जरूरत है पर ताऊ जी शहर में ले जा नहीं रहे थे। उस समय मैं ग्रेजुएसन में था। और अब मैं समझ चुका था गाँव ना जाने का कारण.... एक दिन बिना बताये मैं गाँव पहुँच गया।

ताई माँ ने मुझे देखते ही पहचान गई, तू बिलकुल ना बदला छोरा, वो बहुत ही कमजोर हो गई थी चेहरे पर झुर्रीया़ पड़ गई थी, एक महीने से बुखार छोड़ ही नहीं रहा था।

बेटा जब से तू गया है तब से तेरे आने का इंतजार कर रही हूं, देख तेरे बिना कितना कमजोर हो गई है। तब तक मधु दीदी आती है वो चिढ़ाती है , हाँ हाँ रोमी ही आपका ख्याल रखता है हम तो रखते ही नहीं ।

ताई माँ मैं आपको अपने साथ शहर ले जाने आया हू आप चल रही है मेरे साथ। वही आपका इलाज होगा देखियेगा आप जल्दी ठीक हो जायेगी।

तक पीछे से ताऊजी की आवाज़ आई कहीं नहीं जावेगी। अभी मैं जिंदा हूँ उसका इलाज कराने के लिये। तुम लोगो की कोई जरुरत नहीं ।

मैं भी अपने ताई माँ का बेटा हूँ मैं अपने साथ लेकर ही जाऊँगा। जा लेकर मैं एक पैसा नहीं दूँगा। आपसे मैं एक रुपये नहीं लेने वाला। मैं अपनी ताई माँ का इलाज कराने में सक्षम हूँ।

चलिए ताई माँ....

मैं अपने साथ शहर ले आया ताई माँ और मधु दीदी को। माँ को बिना बताये गया था तो मुझे खूब डॉट पड़ी। पर ताई माँ को मैं घर लाया इस बात से पापा भी नाराज़ नहीं हुए। कहीं न कहीं वो भी चाहते थे कि ताई माँ आये।

धीरे धीरे सब कुछ पहले जैसा होने लगा था। घर में रौनक आ गई थी, बस कमी थी ताऊ जी की जो अपने अहम में परिवार की खुशी नहीं देख पा रहे थे।

एक दिन ताऊजी घर पर आये। पापा बड़ी खुशी से अन्दर ले आये, छोटे मुझे माफ़ कर दे, मैं अपने अहम में परिवार की खुशी को देख ही नहीं पाया।जितना गाँव की ज़मीन पर मेरा हक है उतना ही तेरा है, मैं लालच पे पड़ गया था। ये ले ज़मीन के कागज़ात।

नहीं भाईसाहब मुझे तब भी ज़मीन नहीं चाहिए था और ना ही आज बस आप उस समय प्यार से बोल दिये होते तो मैं खुद ही दे दिया होता। 

अब मुझे शर्मिंदा मत कर प्यार से कह रहा हूँ नहीं तो अभी ले लो नहीं तो थप्पड़ लगेगा। और तब ताऊ जी और पापा दोनो हँसने लगे, घर में ख़ुशियों की रौनक आ गई ।

आज फिर हमारा परिवार एक हो गया....।



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