मेरी पूजा ,,,,,,
मेरी पूजा ,,,,,,
देखिए वर्मा जी, मेरा अपना एक नज़रिया है - जिन्दगी अपने उसूलों पर चलती है इन्हीं उसूलों में विशेष होता है जीवनयापन, यही जीवनयापन अपने खास उसूलों से बंधा होता है ! ये उसूल ही एक विशेष पहचान देते हैं, एक-दूसरे से अलग भी करते हैं। इस दृष्टि से देखें तो ईमानदारी से किया गया काम ही पूजा है। वो काम चाहे व्यवसाय हो या फिर नौकरी ! मेरे लिए भी मेरा काम ही मेरी पूजा रहा है, गृहकार्य और काॅलेज में अध्यापन कार्य मेरे लिए दोनों ही महत्वपूर्ण रहे हैं और हैं ! मेरे काम ने ही मुझे आत्मविश्वास एवं आत्मसम्मान से जीने का ज़ज़्बा दिया, अपने होने का बड़ी शिद्दत से अहसास कराया, समाज में एक पहचान दी है।
अरी ओ फिलोस्फर मैडम, ये क्या बड़बड़ाती जा रही हो - काम, पूजा वगैरह-वगैरह ।
कुछ नहीं यार, वो वर्मा जी ... कैसी बातें करते हैं यार, कह रहे थे मुझसे - काहे परेशान हो रही हो मैडम, इंपोर्टेंट क्वेशन बता दीजिए बच्चे अपने आप पढ़ लेंगे ! सुनकर मुझे इतना गुस्सा आया, मैं उन्हीं को सुना रही थी कि वे तो खिसक लिए और आ गई तू । अरे ऐसे लोग जब अपना काम ईमानदारी से नहीं करते, बड़ा गुस्सा आता है , यह तो सरासर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है ! वो अपना सुरेश शर्मा साफ-सफाई का काम भी कितनी ईमानदारी और जी जान से करता है जैसे सारा काॅलेज उसका अपना ही हो, ब्राह्मण होकर भी कभी वो नाक भौं नहीं सिकोड़ता, और वर्मा जी जैसे लोग, छि: !
छोड़ यार, मूवी देखने का मूड हैं, छुट्टी के बाद चलते हैं, फोन कर देते हैं, राजीव और शिरीष भी डायरेक्टर आ जाएंगे ! कैसा आइडिया है ?
सुपर-डुपर !
फिर ठीक है !