मेरी भूल

मेरी भूल

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आज सर्दी अधिक थी ऊपर से बैंक का क्लोजिंग डे था सो देर तो होनी ही थी, मेट्रो से उतरते -उतरते रात के १० बुज चुके थे घर तक पहुँचते -पहुँचते ११ तो बज ही जायेंगे, मैंने सोचा क्यों न यहीं ढाबे में ही खाना खा लिया जाए कमरे में पहुँच कर आराम से सो लूँगा और इसी बहाने चलो खाना भी हजम हो लेगा फिर यहाँ पर खाना थोड़ा किफायती भी रहेगा नौकरीपेशा हो और अकेला, पैसे तो सोच समझ कर ही खर्च करने पड़ते है . जल्दी से खाना खाया और पैदल ही स्टैंड की तरफ चलने लगा , एक तो सर्दी ऊपर से अंधेरा और सुनसान सड़क अंदर ही अंदर थोड़ा डर और घबराहट होना स्वाभिक ही था अपने क़दमों की आवाज़ भी थोड़ा हॉरर सी लगने लगती है.

थोड़ी दूर चलने के बाद मुझे महसूस हुआ की एक कम्बल से में लिपटा कोई साया मेरी तरफ तेज़ क़दमों से हूँ हूँ करता आ रहा है, कभी भूत और कभी लुटेरा का डर ,मेरे पैर कांपने लगे मैं चाह कर भी दौड़ नहीं पा रहा था वो साया मेरे बहुत नज़दीक पहुँच चुका था अब मैंने सोच लिया था की और नहीं भाग पाउँगा

जैसे ही वो साया मेरे बिलकुल नज़दीक पहुंचा मैंने बिजली की सी फुर्ती से अपना बैग घुमाकर उसके मुंह पर दे मारा, वो साया वहीँ गिर पड़ा उसी वक्त किसी गाड़ी की रौशनी पड़ी और मैंने देखा की उसने अपने हाथ में कुछ पकड़ा हुआ है और वो मेरी तरफ देख रहा है अरे ये क्या मेरा पर्स उसके हाथ में कैसे उसके मुँह से खून बह रहा था वो बोल नहीं पा रहा था ,अरे ये क्या मैंने उसे पहचान लिया था

मैं सन्न रह गया मेरी आँखों में पश्चाताप के आँसू थे ये तो वही गूंगा बहरा लड़का था जो ढाबे पर खाना खिला रहा था मुझे समझते देर न लगी कि पैसे देने के बाद मैं ये पर्स वहीँ टेबल पर ही भूल गया था और ये लड़का चादर ओढे मेरे पीछे मेरा पर्स लौटाने आ रहा था. अब मैं होश में आ चुका था फ़ौरन मैंने ऑटो वाले को ढूंढा और पास के नर्सिंग होम लेजा कर उसको पट्टी करवाई और वापिस ढाबे पर छोड़ा ,उसके मना करने के बाद भी मैंने कुछ पैसे उसकी जेब में डाल दिए, मैं उस से नजरें नहीं मिला पा रहा था .


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