सच का आईना

सच का आईना

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कुमार साहब रोज की तरह सुबह अपनी स्कूटर पर घर से निकले।

"आज भी ऑफिस को कहीं देर न हो जाये कहीं मेट्रो भी लेट हुई तो, न बाबा ऐसा हो गया तो आज फिर बड़े बाबू से लेक्चर सुनना पड़ जायेगा जो मैं बिलकुल नहीं चाहता।"

मन में न जाने कितनी ही बातें परेशानी को और भी बढ़ा रही थी। अचानक से नजर पड़ी कि यहाँ तो जाम लगा हुआ है थोड़ी नजर मारी तो पुलिस की गाड़ी भी खड़ी थी और ढेर सारे तमाशबी। शायद कोई एक्सीडेंट हो गया था। कुमार साहब ने फौरन गली में से शार्ट कट मारा और अंदर की तंग गलियों में से होते हूए मेट्रो स्टेशन पहुँच गए और मन ही मन अपने ऊपर गर्व होने लगा कि मैं जाम होते हुए भी सही टाइम पर मेट्रो स्टेशन पहुँच गया।

मेट्रो में इसी एक्सीडेंट की चर्चा चल रही थी कि एक गाय को बचाने के चक्कर में वो बेचारा बाइक वाला युवक कितनी बुरी तरह से घायल आधे घंटे से सड़क पर पड़ा था।कोई उसे हॉस्पिटल ले जाने को तैयार नहीं था। हर किसी को जल्दी थी। एक नेक दिल ने पुलिस को फ़ोन कर दिया इसलिए वहां पुलिस पहुँच गयी थी। तब तक काफी खून बह चूका था। पुलिस उस युवक को हॉस्पिटल ले गई।

"आगे क्या हुआ पता नहीं भगवान भला करे।" एक व्यक्ति ने बताया।

सभी लोग अपनी अपनी राय दे रहे थे कोई कहा रहा था कि "खून तो बहुत बह रहा था

पता नहीं वह बच भी पायेगा या नहीं।"

कोई कह रहा था कि अगर फौरन ही उसे हॉस्पिटल ले जाया जाता तो अवश्य ही बच सकता था लेकिन सवाल यही था कि उसको टाइम पर हॉस्पिटल लेकर जाता कौन?

कुमार साहब का स्टेशन बस आने ही वाला था कि उनके फ़ोन की घंटी बजने लगी। कुमार साहब ने सोचा बस अब उतर कर ही बात करूँगा लेकिन फ़ोन की घंटी लगातार बजे ही जा रही थी। आखिर उन्होंने फ़ोन उठा ही लिया उधर से किसने क्या बोला किसी को पता नहीं था लेकिन फ़ोन को कान से लगाये ही कुमार साह्ब चक्कर खाकर जमीं पर गिर पड़े।

लेकिन फ़ोन में से अब भी किसी के रोने की आवाजें आ रही थी। किसी सज्जन ने फ़ोन उठाकर बात की तो उसके भी आंसू रोके न रुक पा रहे थे। कुमार साहब के घर से फ़ोन था। उनके बेटे की अभी-अभी एक रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई है। ये जो रास्ते में युवक सड़क पर पड़ा था और जिसकी चर्चा पूरी मेट्रो में हो रही थी। वो युवक कुमार साहब का बेटा था।


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