मेरी बेटी मेरा अभिमान
मेरी बेटी मेरा अभिमान
मैं एक सरकारी अस्पताल में फार्मासिस्ट की पोस्ट पर कार्यरत हूँ। मेरा एक बेटा हुआ 5 साल बाद बेटी हुई, बेटी होने से घर में रौनक ऐसे बढ़ी की जैसे हमारे परिवार का कायाकल्प ही बदल गया। घर से सारे दुख दर्द मिट गए कुछ बैंक का कर्ज था वो भी जल्द ही उतर गया, मानो घर में बेटी नहीं साक्षात लक्षमी का अवतार है। मैं तो हमेशा उसे देखता ही रहता ड्यूटी पर मन ही नहीं लगता बस बेटी के लिए उदास रहता। रात को भी अपनी छाती पर ही सुलाता श्री मति जी का दूध भी नहीं उतरा तो बकरी का कभी गाय का दूध ला कर देता। पता नहीं क्यूँ बेटी के किसी भी काम की देरी नहीं होने देता उसके हर काम करने की खुशी होती, परिवार वाले तो मुझे सनकी ही समझने लगते। वास्तव में मैं अपनी बेटी में अपने आप को देखने लगा। थोड़ी सी बड़ी हुई तो बिलकुल मेरा बचपन का चेहरा ही दिखता। मैं सब कुछ भूल कर बस अपनी बेटी में मग्न हो गया और बेटे की तरह पलने लगी। दोनों बहन भाई खूब खेलते कभी लड़ते झगड़े तो डाँट सिर्फ बेटे को ही पड़ती क्योंकि वो बड़ा भी था और बेटी तो जैसे मेरी जान थी। मैंने अपनी पुरी जिंदगी में कभी भी उसे ना डाँटा और ना ही किसी को डाँटने दिया। जैसे जैसे बड़ी होती गई पढ़ाई में बहुत होशियार और वैसे भी स्यानी चालाक थी अपनी मम्मी और दादी के संस्कार और मेरे प्यार से कब बड़ी हो गई पता ही नहीं चला। बहुत सुंदर और समझदार थी कभी कभी मुझे भी डाँट देती लगता जैसे मेरी दादी है। बेटा बड़ा था उसे डाक्टर बनाने में बहुत खर्च हो गया और कर्ज लेना पड़ा धीरे धीरे कर्ज उतर रहा था, इतने में बेटी के डाक्टर एडमीशन में पैसे चाहिए थे सभी परिवार वाले कहते इसे डाक्टर मत बनाओ बहुत खर्च होता है इतने में तो इसकी शादी हो जाएगी मैंने सभी....आगे
क्रमशः
