मेरा वजूद मेरी माँ
मेरा वजूद मेरी माँ
मैं अपने ही वैचारिक द्वन्द्ध में खोयी थी कि बेटी ने आवाज़ लगायी। माँ! क्या हुआ ? तुम चुप बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती।पता है तुम्हें माँ, तुम्हारा साथ मुझे हमेशा अच्छा लगता है। जब कभी तुम मुझसे दूर होती हो तो मेरा मन तुम्हारे पास उड़कर पहुँचना चाहता है।
बिटिया की बात सुनकर मन के विचारों में एक भूचाल आया जो चाहे क्षणिक था, पर असर अधिक कर गया।मैं सोचने लगी कि क्या माँ की कमी, माँ के पास न होने का अहसास, क्या सभी को जीवन में खलता है याँ ये महज़ कहने भर की ही बातें हैं।फिर सोचने लगी,अगर मेरी माँ न होती तो आज मेरा अस्तित्व न होता,और अगर आज मैं न होती तो मेरी बिटिया का वजूद न होता
सच है जिनकी माँ नहीं होती, उनका जीवन कितना दर्द से भरा होता है, वे ही जानते हैं। माँ चाहे अपनी हो, चाहे सासू माँ हो, चाहे भारत माँ हो ,विपत्ति के क्षणों में सदैव मानव को उसी की शरण में जाकर चैन और सुकून मिलता है।आज महिला दिवस के उपलक्ष्य में माँ के प्रेम,स्नेह, समर्पण,त्याग,जज़बे को सलाम करते हुये विश्व की हरेक माँ के प्रति आज पूर्ण श्रद्धा भाव प्रकट करती हूं।