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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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मेरा मन मंदिर

मेरा मन मंदिर

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    डा. सृष्टि अपने पति के कार से मंदिर जा रही थी, मंदिर के रास्ते में एक बुजुर्ग असहाय अवस्था में पड़ा दिखाई दिया। सृष्टि ने कार रुकवाई और उतरते हुए ड्राइवर को साथ आने का आदेश देते हुए बुजुर्ग के पास पहुँची। बुजुर्ग ने हाथ जोड़कर कातर नजरों से देखा, लेकिन कुछ बोल न सका। तब तक उसके पति भी आ गये और खींचते हुए कहा - अरे यार! तुम भी कहाँ चक्कर में पड़ रही हो। हमें मंदिर के लिए देर हो रही।       सृष्टि ने शांत भाव से कहा - आप चले जाइए, मैं इन बाबा जी को क्लीनिक ले जा रही हूँ। आप कार ले जाओ, मैं कोई आटो ले लूँगी।       उसके पति ने कहा- क्या तुम मंदिर नहीं चलोगी?      सृष्टि ने साफ कह दिया - बिल्कुल नहीं। मेरा मन मेरा मंदिर और मेरा धर्म ही मेरी पूजा है।          उसके पति की समझ में नहीं आया कि वह क्या कहें और ड्राइवर की सहायता से बुजुर्ग को गाड़ी में बैठाकर सीधे क्लीनिक चलने का निर्देश दिया।        सृष्टि के चेहरे पर संतोष के भाव उभर आये, जबकि उसके पति अपने मन मंदिर में ईश्वर के समक्ष नतमस्तक हो रहे थे। सुधीर श्रीवास्तव  


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