पुश्तैनी मकान
पुश्तैनी मकान
भतीजे की शादी में दस साल बाद गाँव लौटे रमन को अपना गाँव घर पहचान में ही नहीं आ रहा था। अधिसंख्य कच्चे मकान पक्के हो चुके थे, पक्की सड़कें, नालियां, हर घर में बिजली आदि को देख उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि यही उसका वो गाँव है, जिसे छोड़कर वो गया था। उसके पिता ही नहीं कई सारे लोग दुनिया छोड़ गए, जिनकी गोद में खेल-कूद कर वह बड़ा हुआ था। बड़े भाई की जिद थी कि वह गांव छोड़कर कहीं नहीं जायेगा। अपने श्रम से उसने पुश्तैनी घर को पक्का कराया, अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाई। पिताजी की मान मर्यादा को बनाकर रखा। यही नहीं उसने छोटे भाई के हिस्से को भी जिम्मेदारी समझकर संभाला। रमन बड़ेभाई से लिपटकर रो रहा था, उसने जो खोया, उसके भरपाई तो संभव नहीं थी। फिर भी उसे अपने पुश्तैनी घर के साथ पिता जैसे बड़े भाई की बाँहें उसे हौसला दे रही थीं। उसे ऐसा महसूस हो रहा कि बहुत कुछ खोकर भी अभी भी उसके पास बहुत कुछ है। जिसे अब वहकिसी भी हाल में नहीं खोयेगा। उसने दृढ़ संकल्प के साथ अपने आँसू पोंछे और भाई से क्षमा माँगी। बड़े भाई जब ने उसे आश्वस्त किया, तब उसे लगा कि पिता जी ऊपर से उसे अपना आशीर्वाद दे रहे हैं। सुधीर श्रीवास्तव
