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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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अधूरे सपने

अधूरे सपने

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सुबह जब उसने फेसबुक खोला तो सामने आई पोस्ट देखकर हतप्रभ हो गया। ऐसा कैसे हो गया?      अभी कल ही तो उससे बात हुई थी और उसने उसे अपने आने का भरोसा भी दिया था। कितना खुश थी वो। लेकिन अब जैसे एक झटके से सब कुछ बिखर और उसके सपने परवान चढ़ने से पहले ही दम तोड़ गये।      आभासी दुनिया से एक दूसरे से पहचान को दोनों  ही रिश्तों के सूत्र में बांधने के उत्सुक थे। दोनों के परिवार वाले भी सहमत थे।       दो दिन बाद ही रक्षाबंधन पर दोनों पहली बार मिलने वाले थे। माँ की सहमति से वह खुद उसके घर जाने को लेकर उत्सुक था। माँ ने उसके लिए खूबसूरत सी साड़ी मंगा रखी थी। पहली बार अपनी कलाई पर बँधने वाले धागों लेकर वह बच्चों की तरह उतावला हो रहा था।        पोस्ट देखकर कुछ देर तो वह कुछ सोच ही नहीं पाया, फिर हिम्मत करके उसके नंबर पर फोन किया। फोन किया, तो उसके पापा ने फोन रिसीव किया और रुँधे गले से बताया - सारी बेटा! तेरी बहन तेरा सपना अधूरा छोड़ गई। आगे वह कुछ बोल न सके।       उसके मुँह से बोल तक न निकला। उसने अपनी कलाई को गौर से देखा और अपने दुर्भाग्य पर रो पड़ा। माँ ने ढांँढस बँधाया और कारण पूछा तो उसने पूरी बात बताई। फिर माँ ने उसे उसके घर चलने को कहा।        हिम्मत करके अपने अधूरे सपनों को समेटते हुए उठा और माँ को लेकर उसके घर की ओर चल पड़ा, जिससे वह कभी मिला तक नहीं था।        पर ईश्वर को उनको सपनों को पूरा होते देखना शायद पसंद नहीं था, तभी तो एक सड़क दुर्घटना में उसको मुँहबोली बहन को छीनकर अधूरे सपने पर अपने निर्णय को थोप दिया। सुधीर श्रीवास्तव 


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