मेरा धर्म
मेरा धर्म
अपना सनातन धर्म सबसे प्राचीन और उत्तम रहा है।
हिन्दू होने पर मुझे बहुत ही गर्व महसूस होता है।
लेकिन कभी कभी मैं बहुत सोच में पड़ जाती हूँ कि इतना अच्छा धर्म होने के बाद भी लोग इसमें कम विश्वास करते है।
जबकि दूसरे धर्म के लोग अपने धर्म के प्रति बहुत ही समर्पित और कट्टर रवैया अपनाते है। और अपने साथ साथ अपने बच्चो को भी अपने धर्म ग्रन्थ पढ़ने की सलाह देते है, अपने भगवान में अटूट विस्वास रखने की सलाह देते है।
ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि मैं अब तक इतने ऐसे हिन्दुओं से मिल चुकी हूँ जो अपने सनातन धर्म को खोखला मानते है और मुझसे भी यही उम्मीद करते है कि मैं भी उनके जैसी बेवकूफी भरी जिंदगी जीना पसन्द करूँ।
कितने ही लोग ऐसे भी थे जिन्होंने कहा भगवान में यकीन करना बेवकूफी है पागलपन है। असल मे यही वो लोग है जिनकी वजह से अपना हिन्दू धर्म सनातन धर्म खोता चला जा रहा है और दूसरे धर्म इस पर हावी हो रहे।
किसी दूसरी जाति और धर्म के लोगो ने कभी मुझसे ये नही कहा कि अपने हिन्दू धर्म ग्रन्थ मत पढ़ो। लेकिन मेरे ही धर्म के कितने लोगों ने मुझसे कहा कि ये सब धर्म ग्रन्थ बेकार है इन्हें मत पढ़ो।
पता नही आज का पढा लिखा समझदार हिन्दू क्या चाहता है। ना ठीक से हिन्दू ही बन पा रहा है और न ही दूसरे धर्म को अपना पा रहा है। असल मे इसी सब का फायदा ही दूसरे धर्म के लोग उठा के हिन्दुओ को आपस मे लड़ाते है और राज करते है । क्योकि सबको पता चल चुका है कि काफी हद तक हिन्दू बेवकूफ है और अपने ही भगवान और धर्म ग्रन्थों पर सवाल उठाता है।
मुझे खुशी इस बात की है कि मैं उन हिन्दुओ जैसी नहीं हूँ। जो अपने ही भगवान के होने का सबूत मांगते है। और न ही मैं उन जैसी हूँ जो अपने ही धर्म ग्रन्थों को खोखला और झूठ समझते है।
ये जो बात हर जगह सुनते, देखते, लिखते ,पढ़ते है ना कि
"हिन्दू कब जागेगा"
असल मे ये यही जगाने की बात है जो मैंने ऊपर बताई। लेकिन अब कौन समझाए लोगो को। भगवान ही मालिक है। कहते भी है कि जब कोई पतन के रास्ते पर चलता है तो सबसे पहले उसकी बुद्धि हर ली जाती है।
