Meher Jahan Khan

Romance

3.8  

Meher Jahan Khan

Romance

मेंहदी रंग लाई

मेंहदी रंग लाई

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568


 आज हवेली मे जश्न जैसा माहौल था सब बहुत खुश थे। सब नौकर काम करते इधर-उघर भागते फिर रहे थे। हवेली को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा था। हर तरफ चहल-पहल सी नज़र आ रही थी। बाबा जान, अम्मा जान, समीना बेग़म और मोईन ख़ान सब की खुशी का ठिकाना नही रहा था। बाबा जान का जिगर का टुकड़ा, अम्मा जान का लाडला, समीना की आँखों का तारा, मोईन के दिल का सुकून इस हवेली का वारिस तीन साल बाद अपनी M.B.A. की पढ़ाई पूरी करके U.K. से वापस आ रहा था।

सब बहुत खुश थे। लेकिन जिसका वो सब कुछ था उसे कोई खुशी ना थी। वो सब को देख कर खुश थी वैसे तो वो आफ़ताब की शरीके हयात थी मगर फिर भी कुछ ना थी। उसके दिल मे उसके लिए कोई जज़्बात नही थे कोई चाहत नही थी। उसे इस हवेली मे दुल्हन बना कर तो लाया गया था, मगर बीवी का हक़ उसे नही मिला था। वक्त ने उसके साथ ऐसे-ऐसे खेल खेले कि दिल मे कोई उमंग ना बची थी। अम्मा जान जो उसकी नानी थी बाबा जान जो उसके नाना थे। उसे उनसे शिकायत थी मगर कर नही सकती थी। करती भी कैसे अब उन्होने उसे अपनी ममता और प्यार के साये मे ले लिया था। वो उनकी इकलौती बेटी मरियम की इकलौती औलाद थी। जो अब इस दुनिया मे नही थी। चाँदनी का निकाह आफ़ताब से तीन साल पहले हुआ था। तब वो उन्नीस साल की थी और आफ़ताब बाईस साल का था। उसकी क़िस्मत एकदम ऐसी करवट बदलेगी ये उसने सोचा भी नही था। चुलबुली हँसती खेलती चाँदनी से उसकी ख़ुशियाँ यूँ छिन जाएंगी। ये उसे पता ना था। सब अपने अपने कामों में मसरूफ थे, मगर चाँदनी सब से अलग खिड़की मे खड़ी अपनी यादों के भंवर मे खो गई।


बाबा जान, अम्मा जान गाँव की एक ऐसी शख्सियत थे जिन्हें लोग अपना मसीहा मानते थे। दोनो बड़े रहम दिल इन्सान थे। हर कोई अपने छोटे से छोटे और बड़े से बड़े मसले उनकी मौजूदगी मे ही हल करते थे। औरतों के लिए अम्मा जान एक अहम ख़ातून थी और बाबा जान गाँव के हर शख्स के लिए। और होते भी क्यूँ ना दोनो सबकी मदद के लिए आगे रहते। उनके पास धन-दौलत, ज़मीन-जायदाद, बाग़-बग़ीचे, नौकर-चाकर सब थे। अपनी अच्छाई से उन्हे ये बड़प्पन मिला, बड़प्पन से उन्हें रूतबा हासिल हुआ। हवेली गाँव मे एक महल की तरह थी। अल्लाह की हर रहमत हवेली मे थी। हवेली से कभी कोई खाली हाथ ना जाता। अम्मा जान की दो ही औलाद थी। बड़ी मरियम और मरियम से दो साल छोटे मोईन। दोनो बहुत ख़ूबसूरत और प्यारे बच्चे थे। वक्त गुज़रता रहा दोनो बच्चे देखते-देखते बड़े हो गए। मोईन को पढ़ाई के लिए शहर भेज दिया गया। मरियम की पढ़ाई का वहीं बन्दोबस्त किया गया। दोनो की पढ़ाई पूरी हुई। बाबा जान के एक पुराने दोस्त थे उनका बेटा अली अहमद जो एक खूबसूरत शख्सियत के मालिक थे। अपने बाबा का एक ख़त लेकर आए उसमे लिखा था- “उनका बेटा काम की तलाश मे यहाँ आया है उसे कोई काम दिलाने मे मदद करें।”

अली बहुत पढ़े लिखे खूबसूरत नौजवान थे। बाबा जान ने उन्हे अपने कारोबार की देखभाल के लिए रख लिया। दिन गुज़रते रहे अली ने बहुत जल्द बाबा जान का कारोबार बहुत अच्छे से सँभाल लिया। उनकी इस मेहनत ओर लगन को देखकर बाबा जान बहुत खुश हुए। अली हर लिहाज़ से क़बिले तारीफ थे। उन्होने बाबा जान का दिल जीत लिया था। अली की हर अच्छाई देख कर बाबा जान ने फैसला किया कि वो मरियम की शादी अली से करा देंगे। क्या हुआ अगर अली ग़रीब है तो, दोनो हमारी इसी हवेली मे रहेंगे। यहाँ ख़ुदा का शुक्र है किसी चीज़ की कमी नही। बाबा जान के इस फैसले पर अम्मा जान भी बहुत खुश हुई और दोनो का निकाह हो गया। मोईन भी अपनी पढ़ाई शहर से पूरी करके वापस आ गए थे। एक दौलतमन्द घराने से उनका रिश्ता आया उनकी शादी समीना से हो गई। सब अपनी-अपनी ज़िन्दगी मे बहुत खुश थे। हवेली मे ख़ुशियों की बहारें आ गई। समीना ने एक बहुत खूबसूरत बेटे को जन्म दिया। बहुत सदक़े ख़ैरात किये गए। बाबा जान और अम्मा जान की ख़ुशियों का कोई ठिकाना ना रहा। बाबा जान ने अपने दिल से प्यारे पोते का नाम आफ़ताब रखा। आफ़ताब सब की आँखों का तारा था। बाबा जान, अम्मा जान की सुबह तो आफ़ताब को देख कर ही शुरू होती थी।

     आहिस्ता- आहिस्ता दिन गुज़रते रहें। फिर ख़ुशियों ने दस्तक दी पता चला कि मरियम भी माँ बनने वाली है। मरियम ने चाँद सी बेटी को जन्म दिया। बाबा जान ने उसका नाम चाँदनी रखा। अली भी चाँद सी बेटी पाकर बहुत खुश थे। लेकिन ये ख़ुशियाँ ज़्यादा दिन तक ना रह सकी। उनकी ख़ुशियों को किसी की नज़र लग चुकी थी। वो थी समीना की नौकरानी जो उसके साथ आई थी। वो अली और मरियम से जलती थी, क्योंकि जबसे उसने अली को देखा था वो उनकी दीवानी हो गई थी। उसने अली को बहुत बहकाने की कोशिश की थी मगर अली ने उसे हर बार समझाया कि “वो शादीशुदा है और वो ऐसा ग़लत कदम कभी नही उठाऐंगे। उनके लिए मरियम और चाँदनी ही सब कुछ है। वो दोनो उनकी ज़िन्दगी है और मुझे तुम से कोई लेना देना नही है, अपनी हदों मे रहो।” वो तबसे अली और मरियम की दुश्मन हो गई थी।

 उसने समीना के कान भरने शुरू कर दिए थे। समीना, मरियम से खिंची-खिंची रहने लगी थी। ये सब देख कर उसे तसल्ली होने लगी। फिर उसने कुछ बड़ा करने का सोचा। समीना उस पर बहुत भरोसा करती थी। उसने उसी का फायदा उठाया। एक दिन जब सब हवेली से बाहर गए हुए थे। उसने समीना के सारे ज़ेवरात निकाले, जो हीरे, मोती, सोने के थे। मरियम की अलमारी मे रख दिए। सब थके-हारे देर रात तक लौटे। अपने-अपने कमरों मे जाकर सो गए। सुबह जब समीना ने तैयार होने के लिए अलमारी खोली तो उसके होश गुम हो गए। तभी मोईन वॉशरूम से नहा कर बाहर आए, उन्होने समीना को ऐसे देखा तो वो उनके पास गए और पूछा - “क्या हुआ समीना तुम ऐसे बुत बनी क्यो खड़ी हो?”

समीना ने अलमारी की तरफ इशारा किया। मोईन भी ये मंज़र देखकर हैरान रह गए। उन्होंने समीना को बेड पर बिठाकर पानी पिलाया। बाबा जान और अम्मा जान को भी तब तक खबर हो चुकी थी। वो भी कमरे मे आ गए मरियम और अली भी ये सब देखकर हैरान थे। नौकरानी बड़ी होशियार थी।

बाबा जान ने काफी सोचने के बाद कहा- “जो होना था हो चुका है। हम अपने किसी भी नौकर पर शक नही कर सकते, हमारे नौकर बहुत वफादार हैं। ज़ेवर और आ जाऐंगे घबराओ नही”।

नौकरानी ने आगे बढ़ कर कहा- “ये क्या बाबा जान इतना बड़ा नुकसान हुआ है। ऐसे कैसे जाने दें? हर किसी की तलाशी तो होनी चाहिए।”

तभी हवेली की एक पुरानी नौकरानी रज्जो बी जो बचपन से इसी हवेली मे काम कर रही थी और सभी को अज़ीज़ थी आगे बढ़ कर बोली- “हाय-हाय बीबी! ये तुम क्या कह रही हो? हवेली मे कोई भी नौकर इतना बेग़ैरत नही कि जिस थाली मे खाऐं उसी मे छेद करें। इतनी गई गुज़री हरकत कोई नही करेगा। ये हवेली और इस इस हवेली की एक-एक चीज़ और हवेली के लोग, हमें जान से ज़्यादा अज़ीज़ है। कोई इतनी हिम्मत नही कर सकता।”

समीना ने भी उस नौकरानी का साथ दिया और बाबा जान से कहा- “बाबा जान हमें ज़ेवर की कोई फिक्र नही है। लेकिन ये हिमाकत किसने की है ये जानना चाहते है इसलिए हर किसी के कमरे की तलाशी होनी चाहिए।”

बाबा जान ने कहा- “ठीक है बेटा जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।“ हर किसी के कमरे की तलाशी हुई किसी को कुछ नही मिला। नौकरानी फिर बोली- “एक कमरा रह गया है मरियम बीबी का कमरा।” सबने बेसाख़्ता उसकी तरफ देखा।

मोईन ने आगे बढ़ कर कहा- “ये तुम क्या कह रही हो तुम होश मे तो हो?”

समीना ने आगे बढ़ कर कहा- “वो ठीक कह रही है। तसल्ली के लिए हम ये भी कर लेते है।” एक-दो जगह देखने के बाद जब अलमारी खोली गई तो ज़ेवरात की पोटली अलमारी से मिली। सब हैरान रह गए। मरियम और अली एक-दूसरे की तरफ देखने लगे। समीना ने पोटली उसकी नौकरानी के हाथ से ले ली। नौकरानी ने अली को देखा वो समझ गए कि ये सब किया धरा इसी का है।

समीना फट पड़ी मरियम पर उसे बहुत ज़लील किया “तुम्हें यहाँ किस बात की कमी थी मरियम? तुम्हारी शादी होने के बाद भी तुम्हें इस घर मे रखा, इस हवेली मे रानी की तरह ज़िन्दगी गुज़ार रही हो। क्या नही है तुम्हारे पास और इतनी एहसान फरामोश निकली कि मेरे ही ज़ेवरात चुरा लिए? ऊपर से इतनी भोली बनती हो और सोच और हरकतें इतनी घटिया छी…! लानत है तुम पर।” अम्मा और बाबा जान भी कुछ ना बोल सके एक-एक करके सब कमरे से चले गए।

अली मरियम एक हारे हुए जुआरी की तरह वही बैठ गए । मरियम ज़ार-ज़ार रोए जा रही थी। अली ने मरियम के शाने पर हाथ रखा। मरियम उनके शाने से लग कर बहुत रोईं।

“अली ये क्या हो गया अचानक कैसे हुआ हम कुछ नही जानते। इतना बड़ा इल्ज़ाम हम पर लगा दिया और हम कुछ नही कर सके। अली हमे यहाँ से दूर ले जाओ। अब हम यहाँ नही रह सकते। हम भाभी की नफरत नही बर्दाश्त कर पाऐंगे। उन्होने इतनी आसानी से हमे सब के सामने चोर करार दे दिया।” फिर खुद को सम्भालते हुए बोली- “अली लेकिन ये सब हुआ कैसे? भाभी के ज़ेवर यहाँ हमारे कमरे मे हमारी अलमारी मे कुछ समझ मे नही आ रहा।”

शायद अली जानते थे ये सब किसने किया मगर वो कुछ कह ना सके। सुबह अली और मरियम ने अपने बैग पैक किये बाबा जान अम्मा जान के पास आए, जो मायूस नज़र आ रहे थे। बाबा जान ने उन्हे बैग के साथ इस तरह से देखा।

“बेटा ये सब क्या है आप कही जा रहे हैं?” मरियम और अली चुपचाप खड़े रहे। अम्मा जान ने उनको देखा मरियम से कहने लगी - “बेटा आपके बाबा जान आपसे कुछ पूछ रहे हैं।” मरियम ने हिम्मत से काम लिया और खुद को सम्भालते हुए बोली- “अम्मा जान हम हवेली छोड़ कर जा रहे हैं। अब हम यहाँ नही रहना चाहते हैं।”

बाबा जान ने आगे बढ़ कर अली के शाने पर हाथ रखते हुए बोले- “लेकिन बेटा आप जाओगे कहाँ?”

अली ने कहा- “बाबा जान हम अपने गाँव जाएंगे अपने छोटे से घर में। वो घर हवेली जैसा तो नही है मगर हमारा अपना घर है। आप वहाँ ज़रूर आइयेगा।” बाबा जान ने दुखी होकर कहा- “ठीक है बेटा जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।” अम्मा जान ने मरियम को कुछ रक़म देना चाही - “लो बेटी ये रख लो काम आएगा।” मरियम ने लेने से साफ इनकार कर दिया।

“अम्मा जान मुझे इन सब चीज़ो की कोई ज़रूरत नही। आप हमें दुआओं से नवाज़ें और रूख्सती की इजाज़त दें। बाबा जान और अपना ख्याल रखना।” उन्होने चाँदनी के सिर पर हाथ फेरा, पेशानी को चूमा। मरियम ने रोते हुए अम्मा जान को ख़ुदा हाफ़िज़ कहा और चली गई। अम्मा जान और बाबा जान बहुत दुखी थे। पहली बार उन्होने अपने जिगर के टुकड़े अपनी मरियम को अपने से दूर जाते देखा था। मगर वो कुछ ना कर सके। रज्जो बी ये सब देख रही थी वो भी उनके दुख मे शामिल थी।


अली मरियम को लेकर अपने गाँव वापस आ गए थे और अपने कच्चे छोटे से घर में चाँदनी और मरियम के साथ खुशी-खुशी रहने लगे। वक्त गुज़रता गया चाँदनी दस साल की हो गई थी। पढ़ाई मे बहुत होशियार और अपने मम्मा पापा की प्यारी बेटी उनके दिल का सुकून। मगर मरियम बीमार रहने लगी थी। उसे अपने अम्मा और बाबा जान की जुदाई का ग़म ऐसा लगा कि उसने आहिस्ता-आहिस्ता चारपाई पकड़ ली। मरियम की हालत दिन-बा-दिन गिरती जा रही थी। अली ये देखकर बहुत परेशान थे। बहुत इलाज किए मगर कोई दवाई असर ना करती। अपनी अम्मा जान और बाबा जान की जुदाई का ग़म लिए मरियम इस दुनिया से रूख्सत हो गई। अपने पीछे चाँदनी और अली को बिलखता छोड़ कर। लेकिन अली को जीना था चाँदनी के लिए उन्होने खुद को भी सम्भाला और चाँदनी को भी। मगर कहीं ना कहीं अली को भी मरियम का ग़म खाए जा रहा था। किसी से कुछ ना कहते चुप रहते मगर जब चाँदनी सामने होती खुश रहने का दिखावा करते। इसी तरह दिन गुज़रते रहे। चाँदनी ने मैट्रिक पास की अच्छे नम्बर से अली बहुत खुश हुए। चाँदनी उन्नीस साल की हो चुकी थी। कुछ दिन से अली की तबियत बहुत खराब थी। वो पलंग से ना उठ सके। एक रात खाँसते-खाँसते अली की साँसें उखड़ने लगी। उन्होने चाँदनी को कुछ बताना चाहा मगर वो कुछ समझ ना सकी शायद चाँदनी की फिक्र उन्हे चैन से मरने ना दे रही थी। चाँदनी बहुत हैरान परेशान थी कि ये सब क्या हो रहा है। अली भी चाँदनी को बिल्कुल तन्हा छोड़ कर इस दुनिया से चले गए।


हवेली मे जब ये खबर पहुँची तो अम्मा जान बाबा जान फौरन अली के गाँव जाने को तैयार हो गए। वो निकलने ही वाले थे तभी आफ़ताब आ गया।

“कहाँ जा रहें हैं आप लोग?” बाबा जान ने उसे बताया तो वो भी साथ जाने को तैयार हो गया।

आज अली का दूजा था। दुखों के समन्दर मे डूबी चाँदनी गुमसुम एक तरफ बैठी थी। गाँव की कुछ औरतों और कुछ मर्दों ने सब कुछ सम्भाल रखा था। आज चाँदनी को अपने पापा के साथ मम्मा की भी बहुत याद आ रही थी। उसकी आँखों से ज़ार-ज़ार आँसू बह रहे थे। तभी किसी ने आ कर कहा- “चाँदनी! दूसरे गाँव से तुम्हारे नाना नानी आए हैं।”

चाँदनी को अपने कानों पर यक़ीन नही आया। तब तक बाबा जान और अम्मा जान उसके पास पहुँच चुके थे। उन्होंने चाँदनी को देखा उन्हे मरियम की याद आ गई। हू-ब-हू मरियम की तरह खूबसूरती मे मरियम से आगे सफेद सूट मे आसमान से आई कोई हूर लग रही थी। अम्मा जान चाँदनी से लिपट कर खूब रोई। चाँदनी मिट्टी के बुत की तरह खड़ी रही। उसने पहली बार अपने नाना-नानी को देखा था।

रात को चाँदनी अपनी मम्मा का दुपट्टा और अपने पापा का कुर्ता लिए बैठी उन्हे याद करके बहुत रो रही थी। “पापा आप भी मुझे मम्मा की तरह छोड़ कर चले गए। मैं अकेली तन्हा आप के बिना कैसे रहूँगी?” अम्मा जान की आँख खुली तो उन्होंने ये सब देखा तो उनका कलेजा मुँह को आ गया। उन्होंने बड़ी शफक़त-ओ-मोहब्बत से उसके सिर पर हाथ फेरा। उसे अपने से लगा लिया चाँदनी नानी के गले लग कर खूब रोई।

सुबह हुई तो अम्मा जान ने बाबा जान से चाँदनी को साथ लेकर चलने की बात की। “अब आप ही बताइए कि चाँदनी अकेली तन्हा कैसे रहेगी। क्यों ना हम चाँदनी को अपने साथ हवेली लें चलें? चाँदनी वहीं हमारे साथ रहेगी।“ नाना को भी नानी की बात पसन्द आई उन्होंने फौरन हाँ कर दी। चाँदनी गुमसुम बैठी अपनी मम्मा, पापा के ख्यालो मे खोई हुई थी। जब नाना-नानी उसके पास आए।

“बेटा कब तक यूँ गुमसुम रहोगी? ये ग़म तो सारी उम्र का है। अपने आप को सम्भालो बेटा आज बारह दिन हो गए हैं तुमने ढ़ंग से कुछ खाया-पिया भी नही। बहुत कमज़ोर हो गई हो।” कुछ खालो उन्होंने फलों से भरी थाल उसके आगे की। अम्मा जान ने चाँदनी का हाथ अपने हाथों मे लेते हुए कहा- “बेटा हम चाहते हैं तुम हमारे साथ हवेली चलो वहीं रहना हमारे साथ। हम तुम्हें अकेले नही छोड़ सकते। अब तुम्हारे मम्मा-पापा नही हैं जो तुम्हारा ख्याल रखेंगे। इसलिए अब हमारा फर्ज़ बनता है कि हम तुम्हारा ख्याल रखें, तुम हमारे साथ हवेली चलो बेटा।”

चाँदनी ने कहा- “नही अम्मा जान हम आपके साथ हवेली नही जाऐंगे। यहाँ हमारे मम्मा-पापा की यादें है हम उनकी यादों के साथ जी लेंगे। हम अपना घर छोड़ कर कहीं नहीं जाऐंगे।” वह वहाँ से उठ कर चली गई। नाना-नानी वही बैठे रह गए।


उनके सामने ये बहुत बड़ा मसला था जो उन्ही को हल करना था। चाँदनी उनकी बात मानने को तैयार ना थी। गाँव के जो बड़े-बुज़ुर्ग थे उन्होने भी चाँदनी को समझाने की कोशिश की लेकिन कोई हल ना निकला।

आम के पेड़ के नीचे बैठे नाना और गाँव के बुज़ुर्ग सब सोच रहे थे कि ये मसला कैसे हल किया जाए। तभी नाना को दूर से आता आफ़ताब नज़र आया और उनकी समझ में आ गया कि क्या करना है। “उन्होने सोचा अगर हम चाँदनी का निकाह आफ़ताब से करा दें तो चाँदनी हमारे साथ चलने से इनकार नही कर सकती।” उन्होंने अपनी तनी हुई गर्दन हाँ के इशारे में हिलाई और उनके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई और वो तेज़-तेज़ क़दमों से चले और आफ़ताब को वही रोक लिया।

“कहाँ गए थे बेटा?”

“कहीं नही बाबा जान, यूँ ही घूमने के लिए गया था।”

“अच्छा ठीक है बेटा….हमें आपसे बहुत ज़रूरी बात करनी है। वादा करो इनकार नही करोगे।”

आफ़ताब ने प्यार भरी नज़रों से बाबा जान को देखा और कहा- “ये आप कैसी बातें कर रहे है बाबा जान, आपका हुक्म सिर आँखों पर। आप बताइए क्या बात है?”

“बेटा वो चाँदनी को लेकर बहुत परेशान है हम।” आफ़ताब ने अब तक चाँदनी को एक नज़र भी नही देखा था।

“क्यों बाबा जान क्या हुआ चाँदनी को?” आफ़ताब ने बड़ी हैरत से पूछा।

“कुछ नही बेटा लेकिन………” बाबा जान सोच मे पड़ गए।

“लेकिन क्या बाबा जान?” आफताब ने दोबारा फिक्रमन्दी से पूछा।

“बेटा चाँदनी ने हमारे साथ हवेली चलने से इनकार कर दिया है।”

“लेकिन क्यो बाबा जान।”

“वो यही रहना चाहती है। अपनी माँ बाबा की यादों के सहारे।”

“ये कैसे हो सकता है, वो अकेली कैसे रहेगी?” आफ़ताब ने बाबा जान से पूछा।

“यही सोचकर हम परेशान है बेटा। लेकिन ये परेशानी हल हो सकती है। अगर तुम हमारा साथ दो तो……” आफ़ताब अपने बाबा की परेशानी ख़त्म करने के लिए कुछ भी कर सकता था। मगर जो उम्मीद बाबा जान ने उससे लगाई थी उसके बारे मे वो सोच भी नही सकता था।

बाबा जान ने उसके हाथों को अपने हाथों मे लेते हुए कहा- “बेटा हम चाहते है कि तुम चाँदनी से निकाह कर लो तो फिर वो हमारे साथ चलने से इनकार नही कर सकती। बेटी को रूख्सत हो कर शौहर के घर ही जाना होता है। और चाँदनी ये अच्छी तरह से जानती है वो इनकार नही कर सकेगी। हमारी परेशानी का यही एक हल है।”

आफ़ताब की आंखों मे ज़मीन आसमान घूम गए। वो बहुत कशमकश मे फँस गया था। वो अपने बाबा जान की बात नही टाल सकता था। उसने वादा भी किया था।

उसे गुम देखकर बाबा जान ने कहा- “क्या सोचा तुमने?” उसने अपनी चुप्पी तोड़ी और ज़बरदस्ती की मुस्कुराहट के साथ बोला- “जैसा आप ठीक समझें बाबा जान।” बाब जान ने उसे अपने से लगा लिया। उसकी पेशानी चूमी।

चाँदनी अपनी नानी की गोद मे सिर रखे लेटी थी। नानी बड़े प्यार से उसके बालो को सहला रही थी। नानी ने यही मौका ठीक समझा चाँदनी से बात करने का।

“चाँदनी बेटा हमें तुमसे कुछ बात करनी है।”

“चाँदनी उठती हुई बोली- जी नानी कहिए।”

“बेटा हम चाहते है तुम हमारे पोते आफ़ताब से निकाह कर लो और अपनी खुशहाल ज़िन्दगी गुज़ारो। हम सब ने बहुत सोचा तुम्हारे बारे मे। हमें यही सही लगा।” चाँदनी चुप रही।

नानी उसके शाने पर हाथ रख कर बोली- “बेटा हम सब तुम्हारा भला चाहते हैं। हमें उम्मीद है तुम इनकार नही करोगी।” चाँदनी नानी के गले लग कर खूब रोई। उसने भी आफ़ताब को नही देखा था। हालाँकि उसे यहाँ आए कई दिन हो गए थे।

सबकी रज़ामन्दी से उसका निकाह आफ़ताब से हो गया। चाँदनी अपनी मम्मा-पापा की यादों को समेटे उस घर से रूख्सत हो गई। आँखों मे ढ़ेरों आँसू लिए। उन दोनो को एक गाड़ी मे बिठाया गया। फिर भी दोनो ने एक दूसरे को नज़र भर कर भी नही देखा। दोनो ही खूबसूरत शख्सियत की मिसाल। मगर दोनो एक दूसरे से अनजान। इस तरह चाँदनी का निकाह आफ़ताब से हो गया और वो इस हवेली की दुल्हन बन गई। मगर वो दुल्हन जिसे कभी दुल्हन होने का हक़ ना मिला।


एक के बाद एक गाड़ी हवेली मे रूकी। पहले गाड़ी से अम्मा जान और बाबा जान उतरे। दूसरी गाड़ी से आफ़ताब और दुल्हन बनी चाँदनी। इतनी देर मे समीना वहाँ आ गई। वो उन दोनो को देख कर समझ गई। कुछ नौकर और रज्जो बी भी वहाँ आ गए। अम्मा जान ने सब को बताया- “ये हमारी नातिन चाँदनी है और आफ़ताब की दुल्हन।”

समीना का चेहरा देखने लायक था। वो अम्मा जान के क़रीब आ कर बोली- “ये आप क्या कह रही है अम्मा जान? एक अनपढ़, जाहिल, गँवार लड़की से आपने हमारे बेटे की शादी कर दी और हमसे पूछा तक नही? ये सब क्या है हम इस शादी को नही मानते। हमें आपसे ये उम्मीद नही थी कि आप हमारे बेटे की ज़िन्दगी का इतना बड़ा फैसला कर देंगी और हमे बताना भी गवारा नही करेंगी?”

अम्मा जान ने उन्हें समझाने की कोशिश की, “वहाँ कुछ हालात ही ऐसे थे। हमें यही सही लगा और हाँ चाँदनी इतनी भी जाहिल नही है कि अफ़ताब को ना समझ सके। वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा।”

समीना अपनी ज़िद पर अड़ी रही, “नही अम्मा जान, हम इस शादी को नही मानेंगे। आप इस निकाह को भूल जाइए। और अगर ये लड़की आफ़ताब के पास या उसके कमरे मे नज़र आई तो हमसे बुरा कोई नही होगा। बस यही हमारा आखिरी फैसला है।”

अम्मा जान चुप रहीं। उन्होने अल्लाह के भरोसे वक्त पर सब छोड़ दिया। रज्जो बी से कहा- “रज्जो हमारे साथ वाला मरियम का कमरा आज से चाँदनी का हुआ। आज से चाँदनी मरियम के कमरे मे रहेगी।” सब नौकर अपने कामों मे मसरूफ हो गए। आफ़ताब भी चुप रहा। अपनी मम्मा के सामने कुछ ना कह सका।

रज्जो बी चाँदनी को लेकर मरियम के कमरे मे आई, “लो चाँदनी बीबी! ये मरियम बीबी का कमरा है। आज से तुम्हारा हुआ।” रज्जो बी ने पर्दा हटाया खिड़की खोली। खिड़की से हवा का पहला झोंका जो आया चाँदनी को उस हवा के झोंके मे अपनी माँ की खुशबू महसूस हुई। उसने एक-एक चीज़ को बड़े गौर से देखा फिर बेड पर हाथ फेरा उसकी आँखों से आँसू बह निकले। 

रज्जो ने उसे प्यार से समझाया, “रोओ नही चाँदनी बीबी तुम इस कमरे मे रहोगी। तुम्हें अपनी मम्मा का साथ महसूस होगा और हाँ…तुम समीना की बात को दिल से ना लगाना। वो ज़ुबान की बुरी है, दिल की बहुत ही अच्छी है। सब ठीक हो जाएगा, अल्लाह पर भरोसा रखो। तुम मुँह हाथ धो लो मैं तुम्हारे लिए कुछ खाने को लाती हूँ”। 

चांदनी ने जो थोड़े से गहने पहने थे। वो उतारे फिर वॉशरूम से फ्रेश होकर बाहर आई। शीशे के सामने बैठी उसकी नज़र अपने हाथों पर पड़ी उसकी मेंहदी का रंग बिल्कुल फीका था। उसकी मेंहदी रंग नही लाई थी। वो अभी सोच ही रही थी कि रज्जो बी हाथ मे ट्रे लिए आ गई “क्या सोच रही हो चाँदनी बीबी?”

“जी कुछ नही।”

“ठीक है पहले कुछ खा लो फिर आराम करना।”

“जी।”


अम्मा जान और बाबा जान बहुत परेशान थे। वो चाँदनी को इस हवेली मे दुल्हन बना कर ले तो आए थे, मगर आने के बाद जो कुछ हुआ उससे वो बहुत दुखी थे। समीना ऐसे हालात पैदा करेगी उन्हे इस बात की बिल्कुल उम्मीद नही थी। अम्मा जान ने बाबा जान को यकीन दिलाया सब ठीक हो जाएगा बस वक्त लगेगा।

उधर समीना इस बात को लेकर बेहद नाराज़ थी। वो किसी भी हाल मे इस फैसले पर राज़ी होने को तैयार ना थी। उसने फैसला किया कि वो आफ़ताब को एम.बी.ए. के लिए लंडन भेज देगी। वहाँ उसकी कज़िन रहती थी।


समीना आफ़ताब के कमरे मे आई। वो आँखें बन्द किए लेटा था।

“सो रहे हो बेटा? वो आफ़ताब के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली।”

“मम्मा आप……आइए ना बैठें।” वो अदब से उठते हुए बोला।

समीना ने बात शुरू की उसके लहजे मे नाराज़गी साफ झलक रही थी - “देखो बेटा जो हुआ उसे भूल जाओ। तुम बिल्कुल फिक्र मत करो मैं सब ठीक कर दूँगी, और हाँ मैं ये सोच रही थी कि तुम अपनी एम.बी.ए. की स्टडीज़ के लिए लंडन चले जाओ। ये जो कुछ भी खेल खेला गया है, उसे अपने ज़हन से निकाल दो। मै तुम्हारी ज़िन्दगी उस जाहिल गँवार लड़की के साथ बर्बाद नही होने दूँगी। मैं अपने बेटे के लिए एक पढ़ी लिखी खूबसूरत लड़की ढ़ूँढ़ कर लाउँगी। जो तुम्हारे साथ क़दम से क़दम मिला कर चल सकेगी।”

आफ़ताब ने कुछ कहना चाहा लेकिन समीना ने उसे चुप करवा दिया “बस बेटा! तुम कुछ नही बोलोगे और ना ही मैं कुछ सुनूँगी। तुम अपने जाने की तैयारी करो। फिक्र करने का कोई ज़रूरत नही है।”

आफ़ताब के जाने की तैयारियाँ शुरू हो गई थी। अम्मा जान और बाबा जान को जब ये बात मालूम हुई तो उन्होंने समीना से बात करने की कोशिश की - “ये आप क्या कर रही हैं बेटा! आप आफ़ताब को पढ़ाई के लिए विदेश क्यो भेज रही हैं। शहर मे रह कर भी तो पढ़ाई हो सकती है। आप अपना इरादा बदल दीजिए। घर मे नई बहू आई है। इन दोनो के बीच इतनी दूरियाँ है। ये ठीक नही है, आप आफ़ताब को इतनी दूर मत भेजिए।”

लेकिन समीना किसी की बात सुनने को तैयार ना थी। उसने साफ कह दिया - “माफ कीजिएगा बाबा जान आफ़ताब पढ़ाई के लिए लंडन ज़रूर जाएगा और रही बात उस नई दुल्हन की तो मैं उस जाहिल गँवार लड़की के लिए अपने बेटे की ज़िन्दगी तबाह नही होने दूँगी।”

मोईन जो दो हफ्तो से बिज़नेस के सिलसिले मे बाहर गए हुए थे। उन्हें यहाँ जो कुछ भी हुआ उसके बारे मे बिल्कुल इल्म ना था। उन्होने समीना को बाबा जान से इस तरह बात करते सुना तो उन्हे बुरा लगा।

“समीना ये तुम बाबा जान से किस लहजे मे बात कर रही हो?”

सबने दरवाज़े की तरफ देखा। मोईन को देखकर समीना के चेहरे का रंग उड़ गया। मोईन ने आगे बढ़ कर बाबा जान और अम्मा जान को सलाम किया। दोनो ने बेटे की पेशानी का बोसा लिया।

बाबा जान ने पूछा “बेटा!....आप कब आए?”

“बस बाबा जान अभी। लेकिन ये बताइए यहाँ सब ख़ैरियत है ना?”

“बस कुछ हालात ऐसे हो गए बेटा जिन्हे हम सम्भालने की कोशिश कर रहे है। आप जाइए आराम कीजिए थक गए होंगे। दूर से सफर करके आए है। हम कल बात करते है।”

सुबह नाश्ते के लिए डाइनिंग टेबल पर समीना मोईन से पहले ही आ चुकी थी। उन्होने रज्जो बी से कह कर आफ़ताब का नाश्ता उसके कमरे मे ही भेज दिया। अम्मा जान और बाबा जान डाइनिंग रूम मे चाँदनी के साथ पहुँचे।

सलाम दुआ के बाद मोईन की नज़र चाँदनी पर पड़ी तो उन्हे अपनी बहन की याद आ गई। उसकी शक्ल मरियम से बहुत मिलती थी।

“बेटा! ये तुम्हारे मामू है मोईन।” चाँदनी ने उन्हे सलाम किया।

मोईन ने बड़े प्यार से जवाब दिया। चाँदनी के सिर पर हाथ फेरा।

“बेटा! ये चाँदनी है मरियम की बेटी और आफ़ताब की दुल्हन” अम्मा जान ने उसका तार्रूफ कराया।

“ये आप क्या कह रही है अम्मा जान?” मोईन बहुत खुश हुए।

“हाँ बेटा! ये सच है। हालात ऐसे हो गए थे कि हमें ये क़दम उठाना पड़ा। मगर समीना बेटी इस रिश्ते से खुश नही।” बाबा जान ने सारा किस्सा मोईन को बड़े अफसोस से बताया।

मोईन को तमाम बातें जान कर बहुत ज़्यादा दुख हुआ। मगर उससे ज़्यादा खुशी चाँदनी को आफ़ताब की दुल्हन के रूप मे देख कर हुई। समीना के नेचर को मोईन बाखूबी जानते थे। समीना वहाँ से जा चुकी थी।

“आप फिक्र ना करें बाबा जान! सब ठीक हो जाएगा। आफ़ताब को पढ़ाई के लिए लंडन जाने दें। चाँदनी के साथ हम सब हैं, हमें सब्र और समझदारी से काम लेना होगा। अल्लाह का शुक्र है कि चाँदनी अब हमारे साथ है। रही बात समीना की उन्हे हम समझाऐंगे।” मोईन ने सोच भरे लहजे मे कहा।आफ़ताब लंडन चला गया।


धीरे-धीरे चाँदनी सब की चहेती बन गई। बस एक समीना थी जिसे वो एक आँख ना भाती थी। रज्जो बी की एक बेटी थी आयमा जिससे चाँदनी की दोस्ती हो गई थी। दोनो में बहुत गहरी दोस्ती थी। दोनो एक साथ रहती, खेतो और बाग़ों मे घूमने जाती। वक्त गुज़रता रहा चाँदनी भी अपनी ज़िन्दगी मे मसरूफ हो गई। गुमसुम दुखो के समन्दर मे डूबी चाँदनी ज़िन्दगी की ओर लोट रही थी। अब वो एक चंचल और चुलबुली ज़िन्दगी से भरपूर लड़की मे तब्दील हो चुकी थी। अम्मा जान उसे यूँ ज़िन्दगी से भरपूर देखकर दिल ही दिल मे उसे ढेरों दुआऐं देती उसकी खूब बलाऐं लेती।


ईद आई अम्मा जान ने चाँदनी को दुल्हन की तरह सजाने का हुक्म दिया। चाँदनी को अपना गुज़रा वक्त याद आ गया। आयमा ने उसके हाथों पर मेंहदी लगाई। इस बार भी उसकी मेंहदी रंग ना लाई। वो बिल्कुल फीकी थी उसे उदासी ने घेर लिया वो मन ही मन सोच रही थी कि इस मेंहदी के रंग की तरह उसकी अपनी ज़िन्दगी भी बिल्कुल फीकी थी।

“देखा आयमा! मैने तुमसे कहा था ना मेरे हाथों पर मेंहदी रंग नही लाती, मत लगाओ मेरे हाथों पर मेंहदी।” वो अपने हाथों को देखते हुए बहुत मायूसी से बोली।

“नही चाँदना बीबी! ये आप क्या कह रही है मेंहदी तो रंग लाती है। ये मेंहदी अच्छी नही है अगली बार मेंहदी लगाउँगी तो देखना ज़रूर रंग लाएगी।”

आयमा मे चाँदनी को दुल्हन की तरह सजाया। अम्मा जान ने उसकी नज़र उतारी, सदक़े ख़ैरात किए। जो चाँदनी को देखता नज़र हटाना ही भूल जाता। हवेली मे पूरा दिन आर-जार लगी रही। चाँदनी पूरे दिन बैठे-बैठे थक चुकी थी।

“जाओ बेटा अब तुम आराम करो। थक गई होंगी।” नानी ने उसे प्यार से मुख़ातिब किया।

वो अपने कमरे मे आकर फ्रेश हुई। उसने टेबल पर रखी अपनी मम्मा-पापा की तस्वीर उठाई। उसने तस्वीर को चूमा और अपने सीने से लगा लिया। बेइख़्तियार ही उसकी आँखों से आँसू बह निकले। तभी आयमा उसके लिए दूध का ग्लास लिए आ गई।

“अरे……बीबी आप रो रही हैं क्या हुआ?”

“कुछ नही आयमा मम्मा पापा की बहुत याद आ रही है।” वो आँसू साफ करते हुए बोली।

“ये लें दूध पियें और सो जाऐं बहुत थक गई होंगी आप। मुझे बहुत काम है सुबह कुछ मेहमान आने वाले हैं।” वह चाँदनी की ओर दूध का ग्लास बढ़ाते हुए बोली।

“कौन मेहमान आने वाले हैं?”

“ये तो मुझे भी मालूम नही बीबी।” आयमा ने कन्धे उचकाते हुए कहा।


सुबह नाश्ते की टेबल पर चाँदनी ने सबको सलाम किया। सबने बड़ी मोहब्बत से जवाब दिया सिवाय समीना के वो उसके सलाम तक का जवाब देना भी गँवारा ना करती थी।

“आज अमीना आपा और उनकी बेटी रायबा आ रही हैं। वह कुछ दिन यहाँ ठहरेंगी। मैने उन्हे यहाँ बुलाया है। मुझे रायबा बहुत पसन्द है। मैं सोच रही हूँ कि आफ़ताब भी आने वाला है दोनो एक दूसरे से मिल लेंगे तो अच्छा रहेगा। मैं अपने बेटे की शादी रायबा से कराना चाहती हूँ।”

चाँदनी ने फौरन समीना की ओर देखा। मोईन ने पहले चाँदनी फिर समीना को देखा। समीना ने अपनी बात खत्म की और वहाँ से उठ कर चली गई। अम्मा और बाबा जान ने मोईन की ओर देखा। मोईन समझ चुके थे वो क्या कहना चाहते हैं।

“समीना हमे तुमसे कुछ बात करनी है।” मोईन ने कमरे मे आकर समीना से कहा।

“अगर आप अपनी भांजी और आफ़ताब के बारे मे हमसे बात करना चाहते है तो मैं इस सिलसिले मे कुछ भी सुनना नही चाहती हूँ।” वो फुन्कारती हुई बेड पर बैठ गई।

मोईन ने समीना के हाथों को हाथ मे लेते हुए प्यार से समझाया- “देखो समीना!......तुम जो कुछ भी सोच रही हो बहुत गलत सोच रही हो। आफ़ताब का निकाह चाँदनी से हो चुका है। तुम आफ़ताब की दूसरी शादी नही करा सकती और फिर ऐसी क्या कमी है चाँदनी में खूबसूरत है, पढ़ी लिखी है, अख़लाक अच्छे है, तहज़ीब सलीक़ा सब कुछ तो है। आफ़ताब के लिए वो परफेक्ट है। अम्मा जान और बाबा जान ने जो फैसला किया था आफ़ताब के लिए सोच समझ कर ही किया होगा। आखिर तुम पसन्द क्यो नही करती चाँदनी को क्या वजह है?”

“क्योंकि वो एक चोर की बेटी है।” समीना ने अक्खड़ लहजे मे जवाब दिया। मोईन का चेहरा गुस्से से सुर्ख हो गया

“खामोश हो जाओ समीना तुम्हे अन्दाज़ा भी है तुम क्या कह रही हो। ये गलत है। उस वक्त चोर कौन था। वो भी तुम जानती थी। तुमने अली और मरियम पर जो इल्ज़ाम लगाए वो सब झूठे थे। हम सब जानते है कि चोरी किसने की थी और सज़ा किसे मिली। हम इसीलिए चुप रहे क्योंकि हम घर मे किसी भी किस्म का बवाल नही चाहते थे। उन्हे समझाने की भी बहुत कोशिश की मगर वो भी ना माने और हमने सब वक्त पर छोड़ दिया। वक्त गुज़रता रहा अली और मरियम ने कभी हवेली की तरफ मुड़ कर ना देखा। मरियम के साथ अली थे लेकिन चाँदनी के साथ हम सब है। उसे अकेला मत समझना। हम चाँदनी के साथ कुछ गलत नही होने देंगे। चाँदनी इस हवेली की बहू है और रहेगी।"

“कैसे रहेगी इस हवेली की बहू? आफ़ताब भी उसे पसन्द नही करता।” समीना तन्ज़िया लहजे मे बोली।

“तुमने आफ़ताब को मौका ही नही दिया। उनकी शादी होते ही तुमने आफ़ताब को लंडन भेज दिया। एक दूसरे को मिलने भी नही दिया कोई रिश्ता भी कायम नही हो सका। यहाँ तक की वो एक दूसरे को देख भी ना सके। एक दूसरे की शक्लो से भी अनजान है वो। हमने सोचा था जब आफ़ताब वापस आएगा सब ठीक हो जाएगा। अमीना आपा और रायबा यहाँ आ रही है बहुत अच्छी बात है लेकिन तुम ऐसा कोई भी कदम नही उठाओगी जिससे आफ़ताब और चाँदनी के रिश्ते पर कोई आँच आए। हम आगे कोई गुस्ताखी माफ नही करेंगे। हमें दोनो ही बच्चे बहुत अज़ीज़ है।” मोईन समीना से कहकर बाहर चले गए। समीना गुस्से से तिलमिलाती वहीं सोफे पर बैठ गई।


ना जाने क्यो आज पहली बार आफ़ताब के नाम पर उसका दिल बहुत ज़ोर से धड़का। शायद कोई एहसास था जो उसके दिल मे जन्म ले रहा था। मगर उसने उस एहसास को वही दफ़न कर दिया। वो अपने दिल मे किसी ऐसे जज़्बे को जगह नही देना चाहती थी जो उसके दिली सुकून को तबाह करने का बाइस बने। वो अपने आप को किसी ऐसे जज़्बात के घेरे मे नही लाना चाहती थी जहाँ से वापसी नामुमकिन हो। इस रिश्ते मे वो अपनी ओर से कोई पहल नही करना चाहती थी। वो इन्ही सोचो मे गुम थी, आयमा उसके पास बैठी किसी काम मे मसरूफ थी। तभी रज्जो बी वहाँ आ गई।

“चाँदनी बीबी आपको अम्मा जान बुला रही है और आयमा तुम मेरे साथ आओ”

“अम्मा जान आपने हमे बुलाया?”

अम्मा जान ने बड़े प्यार से उसे अपने पास बैठने का इशारा किया

“हाँ बेटा!......बहुत देर से तुम्हें देखा नही था।” चाँदनी ने अपना सिर उनकी गोद मे रख लिया। अम्मा जान चाँदनी के बाल सहलाते हुए बोली

“बेटा हम जानते है तुम्हें समीना की बातों से बहुत दुख पहुँचा है। बेटा तुम उनकी बातों को दिल से मत लगाया करो। उनकी आदत ही ऐसी है। परसों आफ़ताब आ रहा है। उसके आने के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा।”

“अमीना बेगम और उनकी बेटी रायबा आई है।” आयमा ने आ कर बताया।

“तुम चलो हम आते है।” अम्मा जान ने आयमा से कहा।


समीना उन दोनो को देखकर फूले नही समाती। वो उनसे बहुत मोहब्बत से मिली। अम्मा जान से भी सलाम दुआ हुई। तभी अमीना की नज़र चाँदनी पर पड़ी।

“ये कौन है समीना?”

“ये चाँदनी है। मरियम की बेटी।” समीना ने बनावटी लहजे मे कहा।

“और आफ़ताब की दुल्हन भी।” मोईन ने शफकत भरे लहजे मे बताया। अमीना और रायबा एक दूसरे की ओर देखने लगी।

“कैसी लगी हमारे आफ़ताब की दुल्हन?” मोईन ने उनकी हालत से लुत्फ़ लेते हुए पूछा।

“बहुत खूबसूरत है।” अमीना ने बनावटी मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया।

“अरे आपा!...आप आए बैठे तो सही। सफर मे कोई परेशानी तो नही हुई आप लोगो को।” समीना ने बात बदल दी।

“नही…..सफर तो ठीक ही रहा।”

“ठीक है आप लोग फ्रेश हो जाए हम नाश्ता लगवाते है।” समीना ने उनको उनका कमरा दिखाया और खुद बाकी इन्तिज़ामात देखने लगी।


अमीना को आए अभी दूसरा ही दिन गुज़रा था कि उसने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था। इस वक्त भी वो दोनो समीना के कमरे मे मौजूद थी।

“समीना!....ये हम क्या सुन रहे है आफ़ताब की शादी हो गई और हमें पता तक नही। और अब तुम आफ़ताब की शादी रायबा मे कराना चाहती हो। ऐसा क्यो?”

“अरे आपा!.....शादी हुई है लेकिन इस शादी का कोई मतलब नही है। सिर्फ नाम की शादी है।” समीना उन्हे समझाते हुए बोली।

“नाम की शादी……क्या मतलब है तुम्हारा?”

“जी आपा!…..हम आपको सब बताते है। चाँदनी अली और मरियम की बेटी है जो अब नही रहे। चाँदनी की ज़िम्मेदारी अम्मा जान और बाबा जान पर आ गई और उन्होने चाँदनी का निकाह आफ़ताब से करा दिया। लेकिन दोनो एक दूसरे से बिल्कुल अनजान है। एक दूसरे की शक्ल तक नही देखी।”

“ये तुम क्या कह रही हो समीना?” अमीना को बड़ी हैरानी हुई सब बातें जान कर।

“जी आपा!.....मैने भी ऐसी चाल चली कि दोनो को क़रीब आने से पहले ही इतना दूर कर दिया कि दोनो के बीच कोई नज़्दीकियाँ ही नही हुई। मैने आफ़ताब को लंडन भेज दिया।”

“लेकिन समीना! अब आफ़ताब कल वापस आ रहा है। अब दोनो का दूर रहना नामुमकिन है। वो आफ़ताब की बीवी है और वो अब उससे दूर कैसे रहेगा?”

“आपा! आफ़ताब चाँदनी से दूर रहेगा और इस काम मे हमारी मदद रायबा करेगी। रायबा आफ़ताब के इतने करीब रहेगी कि वो चाँदनी के करीब जाना तो दूर उसके बारे मे सोच भी ना सके।” समीना ने बड़ी मक्कारी से कहा।

“ठीक है समीना!...लेकिन एक बात तुम भी सुन लो अगर तुम्हारे इस खेल मे मेरी बेटी का दिल टूटा तो अच्छा नही होगा। वैसे समीना मुझे एक बात बताओ तुम चाँदनी और आफ़ताब की शादी से खुश क्यो नही हो?” समीना ने मश्कूक अन्दाज़ मे पूछा।

“वो मै आपको वक्त आने पर बता दूँगी। अब आप आराम करें मै चलती हूँ।”

“मम्मा!.....आखिर खाला ये सब क्यो कर रही हैं? मेरी शादी आफ़ताब से क्यो कराना चाहती है जबकि उसकी शादी हो चुकी है। मम्मा मुझे ये सब ठीक नही लग रहा है।” समीना के जाने के बाद रायबा अपनी माँ से बोली।

“बेटा! हमे क्या अगर समीना आफ़ताब की शादी तुमसे कराना चाहती है तो ये तो तुम्हारे लिए ही अच्छा होगा। इतनी बड़ी हवेली की मालकिन बन जाओगी। ऐशो आराम, शानो शौकत, दौलत, इज़्ज़त, शोहरत सब है यहाँ और फिर आफ़ताब जैसा लड़का तो नसीब वालो को मिलता है।”

“लेकिन मम्मा वो शादीशुदा है।”

“चुप हो जाओ रायबा! तुमने सुना नही? रायबा ने बताया चाँदनी से उसका कोई रिश्ता नही है। देखा जाए तो जो समीना चाहती है उसमे कुछ गलत भी नही है। तुम घबराओ नही सब ठीक हो जाएगा।”


चाँदनी अपने कमरे मे गुमसुम बैठी ज़िन्दगी की तल्ख़ यादों के हिसार मे इस क़दर खोई हुई थी कि उसे आयमा के आने का ज़रा भी अन्दाज़ा नही हुआ।

“चाँदनी बीबी……..चाँदनी बीबी!” उसने चाँदनी के कन्धे पर हाथ रखा। चाँदनी ने बेसाख्ता आयमा को चौंक कर देखा।

“आयमा तुम!…….तुम कब आई?”

“मैं तो कब से आई हुई हूँ। आप जाने कहाँ खोई हुई है। सब ठीक तो है ना?”

“हाँ सब ठीक है।”

“चलो ख़ुदा का शुक्र है वर्ना मैं तो डर ही गई थी। अरे मैं भी बातों मे लग गई। मैं तो आपको बुलाने आई थी। अम्मा जान आपको बुला रही है।”

“ठीक है तुम चलो हम आते है।”


“अम्मा जान आपने बुलाया?”

“हाँ बेटा! हमे तुमसे बात करनी है, बैठो।” वो अम्मा जान के पास ही सोफे पर बैठ गई। अम्मा जान उसकी ओर देखती हुई बोली।

“क्या आप जानती है आज इतनी तैयारियाँ क्यो हो रही है? ये जश्न जैसा माहौल क्यो है कौन आ रहा है?” उसने आहिस्ता से सिर को ना मे हिलाते हुए जवाब दिया।

“नही अम्मा जान।” अम्मा जान उसका हाथ अपने हाथो मे लेते हुए बोली।

“अरे पगली आज आफ़ताब लंडन से वापस आ रहा है। हम चाहते हैं कि तुम आज अच्छे से तैयार हों और उसका अच्छे से इस्तक़बाल करो। अपने होने का एहसास दिलाओ। तुम उसकी बीवी हो। जब वो यहाँ से गया था तब हालात ओर थे मगर अब उस वक्त और इस वक्त मे तीन साल का फासला है। अब वक्त बदल गया है। समझ रही हो ना हम क्या कह रहे है?”

वो अपने सिर को झुकाते हुए बोली- “जी अम्मा जान!...” और खिड़की के पास जा खड़ी हुई

“अम्मा जान जब हमारा निकाह आफ़ताब से हुआ उस वक्त हालात हमारे बस में नही थे। ऐसे मे जो आप सब को सही लगा आपने वही किया। हमारा निकाह आफ़ताब से करा दिया। हम आफ़ताब की दुल्हन तो बन गए, इस हवेली मे भी आ गए। आफ़ताब ने भी आपके फैसले के आगे सिर झुका लिया। लेकिन आफ़ताब ने हमें अपनी दुल्हन माना ही कहाँ है? शादी के दो रोज़ बाद ही वो लंडन चले गए। ये निकाह शायद उनकी नज़र मे एक खेल था। मामी इस रिश्ते के खिलाफ थी और आज भी है। इन तीन सालों मे आफ़ताब ने हमारी कोई खबर ना ली। वो तो हमे भुला भी चुके होंगे। हम अपनी तरफ से कोई पहल नही करना चाहते। हम देखना चाहते हैं जिनके साथ हमारा ज़िन्दगी भर का पाक मुक़द्दस रिश्ता जुड़ा है। उनके दिल के किसी कोने मे हम है भी या नही? उन्हे याद है कि कोई है जो तीन साल से उनका इंतज़ार कर रहा है हमें भी अपनी इज़्ज़ते नफ़्स और वक़ार बहुत प्यारा है अम्मा जान।”

वो उनके पहलू मे आकर बैठी और उनकी गोद मे सिर रखे रोने लगी। अम्मा जान बहुत मोहब्बत से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली।

“ठीक है बेटा! अल्लाह तुम्हारे हक़ मे बेहतर करे।” आमीन


सब ही उसका गेट पर इंतज़ार कर रहे थे। और उसी लम्हे ब्लैक ऑडी हवेली मे दाखिल हुई। उसमे से शानदार पर्सनैलिटी का मालिक ब्लैक जीन्ज़ पर वाइट टी-शर्ट और ब्लैक जैकिट पहने लम्बा चौड़ा कसरती जिस्म उस पर इस क़दर खूबसूरती। वो बारी बारी सब से मिला। सभी ने बड़े जोश और मोहब्बत से उसका इस्तक़बाल किया। अम्मा जान और समीना उसके वारी सदक़े जा रही थी।

चाँदनी दूर खड़ी ये सब देख रही थी। उसने आज पहली बार आफ़ताब को देखा था। वो सोच रही थी कितनी खूबसूरत शख्सियत है। ये हर किसी के नसीब मे नही होती। मेरा ऐसा नसीब कहाँ जो ये मेरा हमसफर बने शायद इसीलिए ये दूरियाँ है।


रात को डाइनिंग टेबल पर चाँदनी अम्मा जान की बराबर वाली कुर्सी पर नज़रें झुकाए बैठी थी। आफताब के आने के बाद से उसकी दिली क़ैफियत बहुत अजीब हो रही थी।

आफ़ताब उसके सामने वाली कुर्सी पर ही बैठा था। जैसे ही उसकी नज़र चाँदनी पर पड़ी कुछ पल को तो वो पलकें झपकाना ही भूल गया।

“आफ़ताब बेटा खाना खाओ ठंडा हो रहा है।” समीना ने उसकी निगाहों को महसूस करते हुए कहा।

“जी मम्मा!” वो इतना ही कह सका। उसका ज़हन तो अपने सामने बैठी उस लड़की मे ही उलझा हुआ था।

खाने से फ़ारिग़ होकर सब अपने अपने रूम मे चले गए। आफ़ताब के ज़हन मे एक ही बात थी जो उसे परेशान कर रही थी। आखिर वो लड़की थी कौन जो अम्मा जान के बराबर मे बैठी थी इतनी खूबसूरत, इस क़दर मासूम हुस्न। वो अपने रूम मे टहलते हुए इन्ही सोचो में उलझा हुआ था कि समीना और रायबा आ गई।

“क्या बात है आफ़ताब! ज़्यादा खाना खा लिया है क्या? जो ऐसे टहल रहे हो”

“नही मम्मा! ऐसी बात नही है। बस यूँ ही।” उसने रायबा को मुखातिब किया।

“अरे रायबा! आओ बैठो। कहो कैसा लगा यहाँ आ कर। दिल तो लग गया ना तुम्हारा?”

समीना ने रायबा की ओर इशारा किया जिसका मतलब वो समझ चुकी थी।

“कहाँ दिल लग रहा है। मैं तो दो दिन मे ही बोर हो गई हूँ। लेकिन अब तुम आ गए हो तो अच्छा लग रहा है। सुबह हम घूमने चलेंगे गाँव मे। ले जाओगे ना घुमाने? मुझे बहुत अच्छे लगते है लहलहाते खेत, बाग, फूलों से भरे बगीचे।”

आफ़ताब को गुम देखकर उसने उसकी आँखो के आगे हाथ लहराया।

“कहाँ खो गए? ले चलोगे ना?” उसने सवाल किया।

“हाँ……हाँ क्यो नही? आफ़ताब को कौनसे काम करने है। फिर तुम दोनो एक दूसरे को जान लो समझ लो यही अच्छा है क्योकि तुम दोनो की बहुत जल्द शादी होने वाली है।”

“लेकिन मम्मा! ये कैसे हो सकता है मैं शादी नही….नही ऐसा नही हो सकता। मैं शादी नही करूँगा।” उसने फौरन कहा।

रायबा ने जल्दी से बात बदली।

“अरे खाला! आप भी क्या शादी की बात लेकर बैठ गई। हम तो सुबह घूमने जाने का प्लैन बना रहे थे।” वो उसकी तरफ मुखातिब होते हुए बोली।

“तो आफ़ताब सुबह घूमने जाना पक्का रहा। अब प्रोग्राम नही बदलेगा ओके?”

“ओके डन।” उसने मुरव्वत से जवाब दिया।

“चलो बेटा! अब तुम आराम करो।” वो दोनो कमरे से चली गई।

लेकिन आफ़ताब के ज़हन से उस लड़की का चेहरा ओझल ही नही हो रहा था। सुबह अम्मा जान से ही पूछूँगा कि आखिर वो खूबसूरत लड़की है कौन? सोचते हुए वो मुस्कुराया और सोने की कोशिश करने लगा।


उसे सुबह जल्दी उठने की आदत थी। वो उठ कर खिड़की के क़रीब आ गया पर्दा हटाया। खिड़की से बाहर का नज़ारा बहुत खूबसूरत था। उगते सूरज की किरणे मंजर को बहुत खूबसूरत बना रही थी। दीवार पर मनी प्लांट की बेल फैली हुई थी। राहदारी मे लाल ईंटो का साफ सुथरा फर्श उसके दोनो ओर नर्म घास। तरतीब से सैट किए गए पौधे। एक ओर कुछ कुर्सियाँ और मेज़ पड़ी हुई थी। ये सब कुछ उसे बहुत भला लग रहा था। वो इस नज़ारे को अपनी आँखों मे क़ैद कर रहा था।

उसकी नज़र सहन मे दूसरी ओर बने हिस्से की ओर पड़ी। जहाँ चाँदनी बकरी के बच्चे को गोद मे लिए उसे अपने हाथो से घास खिला रही थी। वो उसे प्यार से पुचकारते हुए उससे बातें भी कर रही थी। पता नही क्या दूर होने की वजह से वो सुन नही पाया।

उसके लबों पर बेसाख़ता मुस्कुराहट आ गई- “ये तो वही लड़की है।”

वो अभी उसके बारे मे सोच ही रहा था कि रज्जो बी आ गई।

“आफ़ताब! बेटा चाय”

“जी रज्जो बी!”

“रज्जो बी! ये लड़की कौन है?” उसने बाहर की ओर इशारा किया।

“कहाँ बेटा? यहाँ तो कोई लड़की नही है।”

आफ़ताब ने बाहर की ओर झांक कर देखा। वो वहाँ नही थी। वो अभी उसकी तलाश मे निगाह दौड़ा ही रहा था कि रायबा आ गई।

“अरे आफ़ताब! तुम अभी तक तैयार नही हुए? तुमने कहा था ना सुबह घुमाने ले जाओगे।”

आफ़ताब चाय पीते हुए बोला- “हाँ….वो मैं अभी तैयार हो जाता हूँ।”


पूरा दिन दोनो खूब घूमे फिरे। अमीना और समीना ने रायबा को बहुत सख़्त ताक़ीद की थी कि वो आफ़ताब को बहुत मसरूफ रखे। उसने भी यही किया। शाम गए जब वो लोग वापस लौटे तो दोनो ही बहुत थके हुए थे। आफ़ताब अपने रूम मे जाते ही सो गया। समीना ने सबको ताक़ीद करदी थी कि आफ़ताब को कोई डिस्टर्ब ना करे।


सुबह बरामदे मे मोईन अपने ऑफिस वर्क मे मसरूफ थे। उनके इर्द गिर्द फाइल्स फैली हुई थी। चाँदनी भी उनकी मदद कर रही थी। वो ज़्यादा तो नही लेकिन काफी हद तक जानती थी।

आफ़ताब भी उधर ही आ गया। चाँदनी को देखकर उसकी आँखों मे चमक दौड़ गई। वो खड़ा उसे ही देख रहा था कि मोईन की नज़र उस पर पड़ी।

“अरे आफ़ताब! बेटा तुम कब आए? आओ इधर बैठो।” चाँदनी ने चौक कर उसे देखा। वो उसकी ओर ही देख रहा था।

“अच्छा मामू जान! हम चलते है।” उसने घबरा कर फाइल टेबल पर रख दी। वो उससे सामना नही करना चाहती थी। वो अपने दिल को बेचैनियों के समन्दर मे नही डुबोना चाहती थी।

मोईन ने फाइल्स समेटते हुए कहा- “आओ बेटा कुछ देर हमारे साथ भी बैठो।”

चाँदनी वहाँ से जा चुकी थी। उसका यूँ चले जाना आफ़ताब को अच्छा नही लगा।

वो मोईन के साथ बातों मे लग गया। लेकिन कही ना कही ज़हन अभी भी उसी मे उलझा हुआ था।


रात को चाँदनी अम्मा जान के पाँव दबा रही थी उनके कमरे मे। उसे अपने पीछे किसी के आने की आहट महसूस हुई। उसकी पीठ दरवाज़े की ओर थी। उसने पीछे मुड़ कर देखा आफ़ताब खड़ा था। उसे देखकर वो नर्वस हो गई।

अम्मा जान ने आफ़ताब से कहा- “अरे आफ़ताब! आओ बेटा बैठो।”

“अम्मा जान! अब हम चलते हैं।” आफ़ताब दरवाज़े की ओर देखे गया जहाँ से निकल कर वो अभी गई थी।

“बैठो बेटा! क्या सोच रहे हो?” आफ़ताब अम्मा जान की ओर देखकर मुस्कुराया और उनके पास ही बैड पर बैठ गया।

“अम्मा जान! मै आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ”। उसने उनकी गोद मे सिर रखते हुए सवाल किया।

“हाँ पूछो बेटा क्या पूछना चाहते हो?” अम्मा जान ने उसके बाल सहलाते हुए कहा।

“अम्मा जान! ये लड़की कौन है? आपके इतने क़रीब रहती है। हमने पहले तो कभी नही देखा उसे।”

अम्मा जान ने एक लम्बा सांस लिया। “तो तुम उसे नही जानते……जिसे अपनी शरीके हयात बना कर लाए थे? यहाँ रोता बिलकता छोड़ कर लंडन चले गए थे। एक लड़की के कितने ख़्वाब कितने अरमान होते हैं अपनी शादी के लिए। मगर तुमने उन ख़वाबों को अपने पैरों तले रौंद डाला। तुमने उसे अनपढ़ जाहिल कहकर ठुकरा दिया। वो तुम्हारी दुल्हन बन कर इस हवेली मे आई ज़रूर थी लेकिन तुमने कभी उसे अपनी बीवी का दर्जा ना दिया। हत्ताकि तुम्हे ये भी याद नही कि वो तुम्हारी बीवी है। उस पर समीना की नफ़रत जिसे हर वक्त वो बर्दाश्त करती रही है और अब तुम्हारे आने पर तुम्हारी रायबा से शादी की बात। इतना सब कुछ उसके साथ हो रहा है मगर वो उफ तक नही करती। बड़ी ही सब्र शुक्र वाली बच्ची है।

आफ़ताब बेटा मुझे तुम दोनो ही बहुत अज़ीज़ हो। तुम दोनो के साथ कभी बुरा हो ये हम बर्दाश्त नही कर सकेंगे।”

उन्होने उसका हाथ अपने हाथों मे लेते हुए कहा। उसने भी अपना दूसरा हाथ उनके हाथ पर रखा और उठ कर अपने रूम मे आ गया।


आफ़ताब बेड पर लेटा करवटें बदल रहा था। नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। उसे अम्मा जान की कही एक-एक बात याद आ रही थी। वो अपने निकाह की बात बिल्कुल भूल चुका था।

समीना ने उसे कुछ भी याद रहने ही ना दिया। शुरू शुरू मे लंडन जाने के बाद एक दो बार समीना से ज़िक़्र करना चाहा समीना फौरन बात बदल दिया करती। उसने पूरी कामयाबी से उसके ज़हन से ये बात निकाल दी थी। फिर आफ़ताब भी अपनी ज़िन्दगी मे इतना मसरूफ हो गया कि उसे खुद भी याद ना रहा। यही सब सोचते सोचते ना जाने कब उसकी आँख लग गई।


सुबह नाश्ते की मेज़ पर समीना की नज़र आफ़ताब पर पड़ी।

“आफ़ताब! क्या तुम रात भर सोए नही? आँखें भी भारी हो रही है। कुछ परेशान लग रहे हो?”

आफ़ताब और अम्मा जान एक दूसरे की ओर देखने लगे।

“सब ख़ैरियत तो है ना?” उसने सवालिया अन्दाज़ मे पूछा।

“जी मम्मा! सब ठीक है। ऐसी कोई बात नही है।” उसने संभलते हुए जवाब दिया।

“तो ठीक है आफ़ताब आज तुम हमें आमों के बाग़ मे घुमाने लेकर चलोगे। आमों से लदे पेड़ हमें बहुत अच्छे लगते है।” रायबा चहकते हुए बोली। समीना भी उसकी हाँ मे हाँ मिलाते हुए बोली।

मोईन भी कहने लगे- “हाँ ठीक है चाँदनी को भी साथ ले जाना। इन्हे भी अच्छा महसूस होगा”।

चाँदनी जो सिर झुकाए बेदिली से नाश्ता कर रही थी। अचानक घबराकर नही मे गर्दन हिलाने लगी।

“हाँ बेटा! ये ठीक रहेगा। चाँदनी भी कभी हवेली से बाहर नही जाती। इनका भी दिल बहल जाएगा”। अम्मा जान ने कहा।

“नही हमारा दिल नही है घूमने का। हम यही ठीक है।” चाँदनी ने फौरन इन्कार कर दिया।

आफ़ताब ने चाँदनी की घबराहट महसूस की। वो खुद भी चाँदनी से बात करना चाहता था लेकिन वो उसे मौका ही नही देती थी। जहाँ वो जाता वहाँ से फौरन चली जाती थी। वो अपनी ग़लती सुधारना चाहता था।

“जाओ बेटा! आप दोनो तैयार हो जाए”। मोईन ने चाँदनी और रायबा से कहा।


अम्मा जान चाँदनी को समझाने उसके कमरे मे आई- “देखो बेटा! आफ़ताब को अपने किए का एहसास है। वो मानता है उसने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया है। जब वो खुद पहल करना चाहता है तो तुम पीछे क्यो हट रही हो वो तुमसे बहुत शर्मिन्दा है। उसे माफ कर दो बेटा।”

चान्दनी सिर झुकाए बैठी अम्मा जान की बाते सुन रही थी। उसकी समझ मे नही आ रहा था कि वो इन सब मुआमलात मे क्या रद्दे अमल दे। वो समझ नही पा रही थी कि ज़िन्दगी उसे किस मोड़ पर ले जा रही थी। उसने सब कुछ वक्त पर छोड़ दिया था।

“चाँदनी बीबी! वो लोग आपको बुला रहे है। गाड़ी तैयार है।” आयमा उसे बुलाने आई। चाँदनी अपनी सोचो को झटक कर अम्मा जान से इजाज़त तलब की। अम्मा जान ने उसे ढेरों दुआओं तले रूख्सत किया। वो मरे मरे क़दमों से बाहर की ओर चल दी।


गाड़ी मे रायबा ने आफ़ताब के बराबर वाली संभाल ली। चाँदनी पीछे बैठ गई। आफ़ताब बैक व्यू मिरर से उस पर नज़रें जमाए हुए था। उसने उसकी नज़रों की तपिश महसूस कर ली थी लेकिन उसने पूरे रास्ते एक दफा भी उसकी ओर ना देखा।

बाग़ से कुछ दूर ही आफ़ताब ने गाड़ी रोक दी थी। रायबा उसके हाथों मे हाथ डाले आगे बातों मे मगन चल रही थी। चाँदनी उनके पीछे। कुछ ही फ़ासले पर उसे एक दरख़्त के नीचे चारपाई बिछी नज़र आई। वो वही बैठ गई।

वो एक दरख़त पर बैठे तोते मैना के जोड़े को बहुत गौर से देख रही थी। आसपास से बिल्कुल बेनियाज़। आफ़ताब ये सब नोटिस कर रहा था। वो उसे अपनी निगाहों के हिसार मे लिए हुए था।

वो जानता था कि वो उससे खुद दूरियाँ बनाए हुए है। वो इन फासलों को खत्म करना चाहता था। वो उसकी क़ैफ़ियत समझ सकता था। उसने बहुत दुख झेले है और इन सब का ज़िम्मेदार मैं खुद हूँ। वो दूर खड़ा सोच रहा था।

रायबा आम खाने मे मसरूफ थी। वो सही मौक़ा जान कर चाँदनी के पास चला आया। वो उससे थोड़ी फासले पर ही चारपाई पर बैठ गया। वो उसे इतने क़रीब देख कर थोड़ा घबरा गई।

“इतने प्यार से क्या देख रही हो?” उसने खुद ही बात शुरू की।

वो खामोश ही रही। उसने उसके सवाल को नज़रअन्दाज़ किया और दोबारा उस खूबसूरत पंछी के जोड़े को देखने लगी। जो अब चोंचे लड़ा रहे थे। वो वहाँ से उठ कर जाने लगी तो वो फौरन उसके सामने आ खड़ा हुआ।

“चाँदनी! मैने तुम्हें बहुत दुख दिए है। आई एम सोरी।” वो आगे बोलने के लिए अल्फ़ाज़ तोल ही रहा था कि रायबा वहाँ आ गई।

“तुमने आम नही खाए चाँदनी? आम बहुत मीठे थे। बहुत मज़ा आया आम खाने मे। चलो आफ़ताब नहर किनारे चलते है।” वो आफ़ताब का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ ले जाने लगी।

चाँदनी ने ये सब देख कर अपनी नज़रें घूमा ली। आफ़ताब जानता था ये सब उसे अच्छा नही लग रहा है। रायबा उसे ज़बरदस्ती खींचते हुए अपने साथ ले गई। आफ़ताब भी मजबूरन उसके साथ हो लिया।

वो वही चारपाई पर बैठ गई। तभी एक बूढ़ा मुलाज़िम उसके लिए थाली मे कुछ आम ले कर आया।

“लो बिटिया! आम खालो।”

“नही चाचा! हमे आम नही खाने। हमारा मन नही कर रहा है।”

“बिटिया! क्या तुम मरियम बीबी और अली साहब की बेटी हो?” मुलाज़िम ने उससे तस्दीक़ चाही।

“जी चाचा! क्या आप मेरे मम्मा-पापा को जानते थे?” उसने उस बूढ़े मुलाज़िम से सवाल किया।

“हाँ बिटिया! दोनो बहुत अच्छे इन्सान थे। तुम बिल्कुल अपनी माँ जैसी हो।”

“जी चाचा! सब यही कहते है।” वो दोनो काफी देर तक बातें करते रहें। बूढ़े मुलाज़िम के साथ बातें करते उसे दोपहर से शाम हो चुकी थी। उसे वक्त गुज़रने का एहसास ही ना हुआ। उस बूढ़े मुलाज़िम से अपने मम्मा बाबा की बाते सुनना उसे बहुत अच्छा लग रहा था।

“अरे बिटिया! अब तो रात होने को आई है।” तभी आफ़ताब और रायबा वहाँ आ गए।

“चले चाँदनी! रात होने वाली है। सब इंतज़ार कर रहे होंगे।” आफ़ताब ने कहा.

“जी” वो उन्हे देख कर बोली।

“अच्छा चाचा! अब हम चलते है।” उसने बूढ़े मुलाज़िम से कहा।

“अच्छा बिटिया! ख़ुदा तुम्हे खुश रखे।”


सुबह समीना और अमीना दोनो बहने लॉन मे बैठी थी।

समीना! हमे यहाँ आए काफी दिन हो गए है और तुमने अब तक आफ़ताब और रायबा की शादी की बात नही की। आख़िर तुम इन लोगो से शादी की बात कब करोगी?” अमीना फिक्रमन्दी से बोली।

“अरे आपा! आप क्या फिक्र करती है? शादी की बात भी हो जाएगी। अभी बच्चों को थोड़ा इन्जॉए करने दे। हमे जैसे ही मौका मिलेगा हम सब से बात करेंगे। हम सोच रहे है शादी ईद के मौके पर करेंगे। डेढ़ महीना रह गया है ईद मे। आप इतने सालों बाद आई है। आराम से रहिए। हम आपको इतनी जल्दी नही जाने देंगे।”

अमीना को तलाशती रायबा भी उधर ही आ गई।

“अरे आओ रायबा बैठो। बताओ कल का दिन कैसा गुज़रा। घूमने मे मज़ा आया या नही?” समीना ने मोहब्बत से पूछा।

रायबा चेहरे पर मुस्कुराहट सजाए बोली- “जी खाला! बहुत मज़ा आया। हमने वहाँ आम भी खाए। कल आफ़ताब पूरे दिन हमारे साथ ही रहा। हम बहुत खुश थे।”

“अरे! चाँदनी भी तो थी तुम्हारे साथ। उसके बारे मे बताओ।” समीना ने जाँचते अन्दाज़ मे पूछा।

“अरे खाला! छोड़े। बहुत बोर लड़की है। बस अपने मे ही रहती है। मैने और आफ़ताब ने खूब इन्जॉए किया।” वो लापरवाही से बोली।

“ठीक है बेटा तुम आफ़ताब के दिल मे इसी तरह अपनी जगह बनालो। फिर सब ठीक हो जाएगा।” वो फख़्रिया मुस्कुराहट के साथ बोली।


चाँदनी पिछले हिस्से मे लॉन की तरफ सीढ़ियों पर बैठी ना जाने किन सोचों मे गुम थी कि आयमा वहाँ चली आई। उसे यूँ गुमसुम बैठे देखकर आयमा को शरारत सूझी।

“चुप चुप बैठी हो ज़रूर कोई बात है

पहली मुलाकात है, जी पहली मुलाकात है।”

चाँदनी उसकी शरारत पर खुल कर मुस्कुराई – “आयमा तुम कब आई औऱ……और ये क्या ज़्यादा मस्ती सूझ रही है तुम्हें ठहरो अभी बताती हूँ।” कहते हुए उसने आयमा का कान पकड़ लिया।

“अरे! मैं तो ऐसे ही आपको यादों मे गुम देखा तो हमे लगा आप आफ़ताब साहब की यादों मे खोई हुई है। कल उनके साथ घूमने गई थी ना इसीलिए। वैसे कल आपकी पहली मुलाकात थी ना क्या क्या बातें हुई ? अच्छा ना बाबा कान तो छोड़ें।”

चाँदनी के चेहरे से मुस्कुराहट गायब हो गई। उसका कान छोड़ते हुए बोली- “कोई बात नही हुई।” वो मायूसी से बोली।

“ऐसा कैसे हो सकता है ? कल आप पूरा दिन उनके साथ रही और फिर भी कोई बात नही हुई। कमाल है।” वो बड़े अफसोस से बोली।

उनके अलावा वहाँ कोई और भी मौजूद था। जो इस सूरते हाल को बड़े गौर से देख रहा था।

“आयमा शायद चाँदनी हमे पसन्द नही करती। इसीलिए हमसे दूर रहती है। बात भी करना नही चाहती।”

चाँदनी ने तेज़ी से रूख़ मोड़कर अपने बाईं ओर खड़े आफताब को देखा। वो पहले ही उसे देख रहा था। वो ना जाने कब से वहाँ था और उनकी बातें सुन रहा था। उसके लहजे मे शिकवा था और आँखों मे नाराज़गी की लहर। आयमा वहाँ से जा चुकी थी। आफ़ताब भी अपनी बात पूरी करके उस पर एक गहरी और जताती हुई निगाह डालकर जा चुका था।

उसकी आँखें बहुत खूबसूरत थी। चाँदनी ने पहली बार उन शहद रंग आँखों मे झाँका था।


हॉल मे चाँदनी बाबा जान के साथ बातों मे मसरूफ थी। आफताब भी वही चला आया। “आफ़ताब! इधर आओ बेटे।” बाबा जान ने उसे अपने पास बैठने का इशारा किया। वो उनके पास आ बैठा।

“बेटा जबसे हम उमरा करके लौटे है हम देख रहे है कि आप कुछ परेशान नज़र आ रहे है। क्या बात है सब ख़ैरियत तो है?”

आफ़ताब चेहरे पर झूठी मुस्कान सजाकर चाँदनी की ओर देखता हुआ बोला- “बाबा जान! ऐसी कोई बात नही है। सब ठीक है।”

चाँदनी वहाँ से उठ कर चली गई। आफ़ताब उसे जाते देखता रहा। बाबा जान ने उसकी निगाहों का पीछा किया और अब वो उसकी इस बदलती क़ैफियत का मतलब समझ चुके थे।

“बेटा! हमे बताइए क्या बात है? ना आप पहले जैसे खुश रहते है ना कारोबार मे कोई दिलचस्पी ले रहे है। सब मोईन देख रहे है। ऐसी कौन सी बात है जो तुम्हें इस क़दर परेशान किए हुए है?”

“बाबा जान! वो………”

वो बोलने के लिए अल्फ़ाज़ तलाश कर ही रहा था कि बाबा जान उसके शाने पर हाथ रखते हुए बोले- “देखो बेटा! तुम हमसे कुछ छिपा नही सकते। हम उम्र के उस दौर मे है कि चेहरे पढ़ सकते है। और फिर हम तुम्हारे बाबा जान होने के साथ साथ अच्छे दोस्त भी तो है। हमे बताओ क्या बात है?”

“बाबा जान” आफ़ताब ने उन्हे मोहब्बत से चूर टूटे हुए लहजे मे कहा। बाबा जान ने पलक झपकते उसे तसल्ली का इशारा किया।

“बाबा जान! आप सब कुछ जानते है कि हमारी शादी किन हालात मे हुई थी। उसके बाद हम लंडन चले गए मास्टर्स के लिए। और वहाँ जाकर हम इस क़दर बिज़ी हो गए कि हमे इस मुआमले मे कुछ याद नही रहा। उसने धीरे धीरे बाबा जान को सारी बातें बता दी कि समीना ने उसे कभी चाँदनी का नाम भी ना लेने दिया। और किस तरह वो उसके ज़हन से चाँदनी को निकालने मे कामयाब रहीं।”

“हम्म……तो ये बात है।” बाबा जान ने हुन्कारा भरा।

“अब आप सब कुछ हम पर छोड़ दें। और बेफिक्र हो जाए। खुश रहो देखो अब हम क्या करते हैं। जाओ शाबाश तुम परेशान मत हों।”


आयमा पिछले लॉन मे बैठी चाँदनी के हाथों पर मेंहदी लगा रही थी। “आयमा! तुम्हें क्या सूझी जो आज मेरे हाथों पर मेंहदी लगा रही हो…….ना ईद है ना बक़रा ईद फिर तुमने मुझे इस मेंहदी मे क्या बाँध कर बिठा दिया। वैसे भी तुम्हें तो पता है ना मेरे हाथों पर मेंहदी का रंग नही चढ़ता।” वो उदासी से बोली।

“देखना चाँदनी बीबी इस बार ऐसा रंग चढ़ेगा कि सब देखते रह जाऐँगे। अब आप कुछ देर यही बैठे हम अभी आते हैं।” आयमा मुस्कुराते हुए उसकी मेंहदी को फाइनल टच देते हुए बोली।

आयमा जा चुकी थी। चाँदनी को प्यास लग रही थी। “ये आयमा भी ना अभी तक नही आई। हमे इतनी तेज़ प्यास लग रही है। पता नही कहाँ गायब है। ऊपर से ये मेंहदी।” उसने उलझन मे आस पास निगाहें दौड़ाई और खुद से ही बोली।

वो अपना दुपट्टा संभालने की कोशिश कर रही थी। मगर हवा इतनी तेज़ थी कि उसका दुपट्टा उड़ कर दूर जा गिरा।

आफ़ताब जो पिछले लॉन मे अम्मा जान की तलाश मे उधर आया था। उसकी सख़्त उलझन को खड़ा देख रहा था। उसका दुपट्टा लिए उसके पास आया।

चाँदनी उसे देखकर खुद मे सिमट गई। आफ़ताब ने उसकी झिझक समझते हुए उसके शानो पर दुपट्टा फैलाया। उसने पास रखे जग से पानी लिया और उसके लबों से लगाया। ये सब इतना अचानक था कि चाँदनी साकित बैठी उसे देख रही थी।

“लो….पानी पियो। तुम्हें प्यास लगी है ना?”

चाँदनी इस सब मुआमले मे बहुत नर्वस हो रही थी। उसने आफ़ताब को इतने क़रीब देखकर बहुत झिझक रही थी।

“पानी पियो चाँदनी।” आफ़ताब ने प्यार से कहा।

चाँदनी ने दो घूँट पानी पिया और शर्म से निगाहें झुकाली।

आफ़ताब ने ग्लास साइड मे रखा और उसे गोद मे उठाकर उसके कमरे मे ले आया। चाँदनी को आफ़ताब की सांसों की गर्माहट इतने क़रीब महसूस हो रही थी कि उसने आँखें बन्द कर ली। उसने चाँदनी को बैड पर लिटाया। चाँदनी ने घबराकर आँखें खोल दी।

आफ़ताब उसकी घबराहट महसूस करते हुए मोहब्बत से बोला – “घबराओ नही चाँदनी मैं तुमसे वादा करता हूँ जब तक तुम मेरी मोहब्बत मे मजबूर होकर अपने आप को मेरे हवाले नही करोगी। मैं तुम्हें हाथ नही लगाऊँगा।”

उसकी तो जैसे साँसे ही रूक गई थी। वो आफ़ताब को जाता देखती रही। उसके लफ़्ज़ो पर गौर करती रह गई।


सुबह चाँदनी उठी तो उसकी नज़र अपने हाथों पर पड़ी। उसकी खुशी का ठिकाने ना रहा। मेंहदी का ऐसा रंग चढ़ा था कि उसे यक़ीन नही हो रहा था। वो कभी मेंहदी की महक सूँघती और कभी अपने हाथ पाँव को देखती। तभी आयमा ट्रे थामे चली आई।

“क्या बात है चाँदनी बीबी? बड़ी खुश नज़र आ रही हो।”

“हाँ आयमा! आज हम बहुत खुश है। देखो आज पहली बार हमारी मेंहदी कितना गहरा रंग लाई है। पहले कभी हमारे हाथों पर मेंहदी नही रची। पता है आयमा हम जब भी कभी मेंहदी लगाते थे बहुत मायूस होते थे। सब सहेलियो की मेंहदी रचती थी पर हमारी मेंहदी नही रचती थी। हमें बहुत दुख होता था। लेकिन आज हम बहुत खुश है। आज हमारी मेंहदी रंग लाई है।” वो खुशी से बोली।

आयमा शरारत से बोली – “चान्द बीबी! ये तो किसी की मोहब्बत का असर है। अम्मा कहती है जब किसी की मेंहदी का गहरा रंग चढ़ता है तो समझो उसका शौहर उससे बहुत मोहब्बत करता है। ये भी किसी की मोहब्बत का असर है। आफ़ताब साहब आपसे बहुत मोहब्बत करते है। चाँदनी बीबी आफ़ताब साहब बहुत अच्छे इन्सान है। आप उन्हे माफ़ कर दीजिए।”

चाँदनी उसकी बातें सिर झुकाए सुन रही थी। उसे कल का वाक़्या याद आ गया। तभी रज्जो बी आ गई।

“चाँदनी बीबी नाश्ते पर सब आपका इंतज़ार कर रहे है।”


नाश्ते की मेज़ पर चाँदनी ने सबको सलाम किया। सब ने उसे दुआओ से नवाज़ा। बाबा जान ने उसे अपने पास बुलाया। उसकी पेशानी चूमी। उन्होंने एक लिफाफा उसके हाथों मे थमाया।

“ये क्या है बाबा जान?” 

“बेटा! ये हवाई जहाज़ के टिकट है। तुम और आफ़ताब घूमने के लिए कश्मीर जा रहे हो। जबसे तुम्हारी शादी हुई है। तुम लोग कही बाहर नही गए। हालात ही ऐसे हो गए थे हम चाहते है तुम खूब घूमो फिरो इन्जॉए करो।”

हॉल मे मौजूद सब लोगो ने बाबा जान को देखा। आफ़ताब ने बाबा जान को देखा। बाबा जान ने उसे आँखों ही आँखों मे इशारा किया। अम्मा जान भी मुस्कुराई। समीना, अमीना और रायबा के तो इस अचानक फैसले से होश ही उड़ गए थे।

“लेकिन बाबा जान इसकी क्या ज़रूरत है? हम यहाँ बहुत खुश है।” चाँदनी थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली।

“बेटा! ये हम चाहते है कि तुम और आफ़ताब कही घूमने जाओ। ये हमारी खुशी है। क्या आप हमारी खुशी नही देख सकती?”

अम्मा जान बोली – “क्यो नही? चाँदनी बेटी और आफ़ताब घूमने ज़रूर जाऐंगे।”

“तो ठीक है तुम लोग जाने की तैयारी करो। तुम्हे जल्दी ही निकलना है।” बाबा जान ने अपना फैसला सुनाया।


चाँदनी अपने कमरे मे पैकिंग कर रही थी। तभी अम्मा जान उसके कमरे मे आई।

“अम्मा जान! आप आइए बैठै।” उसने बेड पर बिखरे कपड़े एक तरफ किए। अम्मा जान के बैठने के लिए जगह बनाई। अम्मा जान को वो कुछ उलझी हुई महसूस हुई।

अम्मा जान उसके नर्म और नाज़ुक हाथों को अपने बूढ़े हाथों मे लेते हुए बोली – “बेटा! क्या तुम खुश नही हो? हम बहुत खुश है। तुम दोनो पहली बार एक साथ कही बाहर घूमने जा रहे हो। तुम्हारे बाबा जान ने जो तुम्हारे लिए सोचा है किया है इस बात से हम बेहद खुश है और मुतमईन भी।”

वो उसके हाथो की ओर देखते हुए बोली – “बेटा! तुम्हे पता है ये जो मेंहदी तुम्हारे हाथो पर महक रही है। अपनी खुशबू और रंग से तुम्हें भी महका रही है। ये किसी की मोहब्बत का असर है। हमें उम्मीद है तुम उसे नाखुश नही करोगी। तुम आफ़ताब को माफ कर दोगी और उसे अपने दिल और अपनी ज़िन्दगी मे जगह दोगी।” 

चाँदनी ने अम्मा जान को देखा और हौले से मुस्कुराई। अम्मा जान ने उसकी पेशानी चूमी और उसे अच्छे मुस्तक़बिल की ढ़ेरों दुआऐं दी।


कई घण्टों का सफर करके दोनो कश्मीर पहुँचे। होटल के रूम मे ऐंटर होकर चाँदनी ने रूम का जायज़ा लिया। उसकी नज़र बैड पर पड़ी। वो कुछ सोच मे पड़ गई। आफ़ताब ने बैग रखते हुए उसे देखा। वो उसकी उलझन समझ गया था। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आई। उसने चाँदनी से कहा – “चाँदनी! तुम फ्रेश हो जाओ। खाना ऑर्डर कर दिया है। वेटर खाना लेकर आता ही होगा।”

वो उसे बिना कोई जवाब दिए वॉशरूम मे चली गई। खाने से फारिग़ होकर वो रूम मे मौजूद ग्लास विंडो के करीब आ गई। उसने बाहर का नज़ारा देखा। ऊँचे पहाड़, पहाड़ों पर गिरती बर्फ और सर्द हवाऐं। ये नज़ारा इतना दिलकश था कि वो ना जाने कितनी ही देर खड़े बाहर देखे गई और आफ़ताब उसे।

आफ़ताब उसके क़रीब आया और बोला – “चाँदनी! रात काफी हो गई है और हम सफर के भी थके हुए है। चलो सो जाते है। सुबह उठ कर घूमने चलेंगे।”

लेकिन उसने तो जैसे ना बोलने की क़सम खाई हुई थी। वो सोफे पर आकर बैठ गई। आफ़ताब ने उससे कहा – “तुम बेड पर सो जाओ। मैं सोफे पर सो जाता हूँ।”

चाँदनी ने कोई जवाब ना दिया। आफ़ताब दूसरे सोफे पर बैठ गया। दोनो बहुत थके हुए थे। चाँदनी जल्दी ही सो गई। कम्बल एक ही था जो उसने चाँदनी को उढ़ा दिया और खुद ऐसे ही सो गया।


सुबह उसका आँख आफ़ताब से पहले ही खुल गई थी। उसने अपने ऊपर पड़ा कम्बल देखा और फिर आफ़ताब को। उसने बेड पर निगाह दौड़ाई जो खाली पड़ा था। वो बिना कम्बल के सोफे पर बेआरामी से सो रहा था। उसे बहुत हैरानी हुई। वो उसके क़रीब आई और बड़े ग़ौर से उसे देखने लगी। उसकी मोहब्बत मे तो वो खुद भी गिरफ्तार थी। मगर इक़रार नही कर पा रही थी। तभी दरवाज़े पर बेल बजी और आफ़ताब की आँख खुल गई। वो चाँदनी को अपने इतने क़रीब देख कर हैरान रह गया। दूसरी बार बेल बजी तो चाँदनी बड़ी तेज़ी से पीछे हटी। आफ़ताब ने दरवाज़ा खोला। वेटर चाय की ट्रे और न्यूज़ पेपर लिए खड़ा था।

“साहब! चाय।” वेटर ट्रे रखकर जा चुका था।

चाँदनी ने दो कप चाय बनाई। एक आफ़ताब को दी जिसे उसने शुक्रिया के साथ थाम लिया।  


चारों ओर बर्फ से ढ़की वादियाँ और दरख़्त देखकर ऐसा लगता था मानो ख़ुदा ने अपने नूर की चादर बिछा दी हो। बहुत से सैलानी इधर उधर घूम रहे थे। बर्फ के गोले बनाकर एक दूसरे पर फेक रहे थे। इस ठण्डे मौसम का लुत्फ उठा रहे थे। वो दोनो भी ये सब नज़ारे देखकर बहुत खुश थे। चाँदनी ने पहली बार ऐसे मदहोश करने वाले नज़ारे देखे थे। वो बहुत खुश थी। ये सब देखकर उसके खूबसूरत चेहरे की मुस्कुराहट देखकर। आफ़ताब के लिए तो मौसम और भी खुशगवार हो गया था। वो चाँदनी पर नज़र जमाए उसकी मुस्कुराहट देखे जा रहा था। दोनो एक साथ थे फिर भी एक दूसरे से कितने दूर थे।

चाँदनी ने उसकी ओर देखा जो पहले ही उसमे खोया हुआ था। उसे शर्म महसूस हुई। वो पीछे हटी तो उसका पाँव फिसल गया। आफ़ताब ने उसका हाथ पकड़ा और दोनो संभल ना सके। दोनो एक दूसरे की बाँहों मे लुढ़कते हुए नीचे आ गिरे। चाँदनी ने डर के मारे आफ़ताब को अपनी बाँहों मे जकड़ लिया था। उसका सिर आफ़ताब के सीने पर रखा था। आफ़ताब ने उसके चेहरे को हाथों के प्यालो मे लिया और आहिस्ता से उसका नाम पुकारा।

उसने आँखें खोली वो दोनो पूरी तरह एक दूसरे की आँखों मे डूबे हुए थे। दो बच्चे पास खड़े उन्हे देख कर हँस रहे थे। उनमें से एक बच्चे ने बर्फ का गोला बनाकर उन पर फेका। दोनो ने बेसाख़्ता उन बच्चों को देखा। चाँदनी आफ़ताब पर से अपनी गिरफ्त ढीली छोड़ते हुए जल्दी से संभल कर दूर खड़ी हुई।

शर्म से उसका चेहरा सुर्ख़ हो रहा था। आफ़ताब ने खड़े हाते हुए उससे पूछा – “तुम ठीक हो ना चोट तो नही लगी?”

उसने नही मे सिर हिला दिया।


उन दोनो को वहाँ आए दो दिन हो गए थे। दोनो एक साथ एक छत के नीचे थे मगर फिर भी चाँदनी उससे बात नही करती थी। हाँ जो बात आफ़ताब करता उसका जवाब ज़रूर दे देती थी।

आज मौसम बहुत खराब था। सभी सैलानियों को आगाह कर दिया गया था कि कोई बाहर घूमने ना जाए। चाँदनी बैठी मैग्ज़ीन पढ़ रही थी। आफ़ताब कमरे मे बेहद बोर हो रहा था। वो सोच रहा था कि - “चाँदनी उसके साथ ऐसा क्यो कर रही है? ऐसी क्या गलती हो गई कि वो मुझे माफ करने को तौयार नही? जो कुछ भी हुआ वो सब हालात की मार थी। जो दोनो ने झेली। वो दोनो एक दूसरे की ज़िन्दगी मे जब आए जब दोनो ही ज़हनी तौर पर तैयार नही थे। उसने चाँदनी की आँखों मे अपने लिए मोहब्बत देखी थी। मगर फिर भी वो उससे इतनी दूर क्यो है…….क्या वो सिर्फ बाबा जान और अम्मा जान की खुशी के लिए ही यहाँ आई है? मेरे या अपने लिए नही….हमारी मोहब्बत के लिए नही? वो उसकी इस बात से बहुत खफ़ा था कि चाँदनी उससे खुश नही उससे बात नही करती। उसने भी फैसला किया कि अगर उसे मुझसे बात नही करनी तो मै भी अब कोई बात नही करूँगा।”

उसने पास रखी दराज़ से पेपर और पैन निकाला उस पर कुछ लिखकर चाँदनी के सामने टेबल पर रख दिया और वॉशरूम मे चला गया।

चाँदनी ने उसकी इस हरकत को हैरानी से देखा और सामने रखा कागज़ उठा कर पढ़ा

“हमे खाना खाने नीचे जाना है।” उसे समझ नही आया ये क्या है।   

कुछ देर बाद दोनो नीचे डाइनिंग हॉल मे मौजूद थे। वेटर मैन्यू लेकर आया आफ़ताब ने अपना ऑर्डर बताने के बाद वेटर से कहा – “अब मैडम से पूछ लीजिए उन्हे क्या पसन्द है।” चाँदनी उसकी इस बदलती क़ैफियत को समझ नही पा रही थी।


चाँदनी अब बेड पर सोती थी। आफ़ताब सोफे पर सोता था। ठीक से ना सोने की वजह से उसका पूरा जिस्म अकड़ा हुआ था। ठंड ज़्यादा होने की वजह से बुखार भी बहुत था। उसे उठे बहुत देर हो चुकी थी लेकिन आफ़ताब अब तक सो रहा था। उसने उसके शाने पर हाथ रखकर उठाया “आफ़ताब उठो।”

उसकी पेशानी पर हाथ रखा तो वो घबरा गई। इनको तो बहुत तेज़ बुखार है। “आफ़ताब उठिए।” उसने उसे उठाने की कोशिश की।

उसने बड़ी हिम्मत से सहारा देकर आफ़ताब को बेड पर लिटाया। इस काम मे वो धान पान सी लड़की बुरी तरह हाँफ गई थी। वो तेज़ बुखार की वजह से बेहोश था। उसने रिसेप्शन पर कॉल करके डॉक्टर को बुलाया।

डॉक्टर ने उसका चैकअप किया इंजेक्शन लगाया और चाँदनी से कहा “घबराने की कोई बात नही है। फिर भी आप बहुत एहतियात करे।”

वो बहुत फिक्रमन्द थी। उसने आफ़ताब को एक मिनट के लिए भी अकेले नही छोड़ा। परेशानी और फिक्र उसके चेहरे से साफ झलक रही थी। उसने पूरी रात आफ़ताब के पास बैठे ठँडे पानी की पट्टियाँ रखते गुज़ार दी।

आफ़ताब की आँख खुली तो चाँदनी का हाथ उसकी पेशानी पर रखा था। उसे लगा कि सारे ज़माने की खुशियाँ उसके पहलू मे है। लेकिन एक ही पल मे चाँदनी उससे दूर हो गई।

“आप ठीक है?” चाँदनी ने फिक्रमन्दी से पूछा।

आफ़ताब ने कोई जवाब ना दिया और वॉशरूम मे चला गया। बुखार की वजह से कमज़ोरी बहुत आ चुकी थी। वो वॉशरूम से बाहर आया तो चाँदनी उसकी तरफ बढ़ी सहारा देने के लिए। लेकिन आफ़ताब ने उसका हाथ झटक दिया।

तभी फोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ बाबा जान थे। “कैसे हो मेरी जान?” बाबा जान ने मोहब्बत और खुशी से पूछा। आफताब ने बहुत संभलकर बात की। “और कैसी कट रही है दोनो की……कुछ बात बनी या नही?” बाबा जान ने जाँचते लहजे मे पूछा। आफ़ताब चाँदनी की ओर देखते हुए बोला – “आप बताइये बाबा जान वहाँ सब ठीक है ना?” उसने उनके सवाल को गोल कर दिया। हाँ बेटा अल्लाह का करम है। ज़रा चाँदनी से बात कराओ। सलाम दुआ और रस्मी बातचीत के बाद बाबा जान ने दोनो का ख्याल रखने की ताक़ीद की और ढ़ेरों दुआऐं देते हुए फोन काट दिया।


रायबा को चुप चुप देखकर अमीना बेगम बोली – “क्या बात है बेटा तुम चुप क्यो हो कुछ परेशान लग रही हो?”

“मम्मा! परेशान नही हूँ तो क्या करूँ? आपको पता है ना आफ़ताब उस चाँदनी के साथ कश्मीर की वादियों मे घूम रहा होगा। एक दूसरे की बाँहों मे बाँहें डाले मुस्कुरा रहे होंगे। प्यार की बातें कर रहे होंगे। वो चाँदनी उसने तो पूरी तरह आफ़ताब को अपनी खूबसूरती के जाल मे फँसा लिया होगा। अब आफताब मुझसे शादी नही करेगा मम्मा।” उसके लहजे मे सख्त उलझन, हसद, गुस्सा था।

अमीना बेगम उसकी हालत देखते हुए तसल्लियाँ देने लगी। “ऐसा कुछ नही होगा बेटा तुम बेफिक्र रहो वो लोग जैसे गए है वैसे ही वापस आ जाऐंगे। आफ़ताब चाँदनी को पसन्द नही करता। उसे मॉडर्न ज़माने की मॉडर्न लड़की चाहिए वो तुम हो। ये तो बाबा जान का हुक्म था तो उसे जाना पड़ा। ये सब बातें अपने ज़हन से निकाल दो। बस तुम ये सोचो कि तुम एक शहज़ादी की तरह जियोगी। इतनी बड़ी जायदाद की मालकिन बनोगी। अपनी मर्ज़ी से सबको अपने इशारों पर नचाओगी। आफ़ताब तो तुम्हारा होगा ही। मोईन की कुछ चलती नही है। बाबा जान और अम्मा जान कब तक जिऐंगे चाँदनी पड़ी रहेगी एक कोने मे। रही समीना उसे तो तुम अपनी चालों मे ऐसे फँसाना कि जब तक जिए तुम्हारी ही मोहताज रहे। आहिस्ता-आहिस्ता सब अपने कब्ज़े मे कर लेना। बस अब आफ़ताब आ जाए तो मै जल्दी से जल्दी तुम्हारे निकाह की बात करती हूँ समीना से। जो हम सोच कर यहाँ आए थे वो सब होने ही वाला है। बस तुम अपने गुस्से पर काबू रखो और एक फ़रमाँबरदार बेटी बहु की तरह रहो। सब कुछ जल्द होगा।”

समीना उन्हे खाने के लिए बुलाने आई थी। लेकिन उनके मन्सूबे जान गई थी। उसे यकीन नही हो रहा था अमीना आपा, उनकी सगी बहन ऐसा सोच सकती है। उनकी अस्लियत उसके सामने खुल चुकी थी। उसने आगे बढ कर कहा – “ऐसा कुछ नही होगा।”

दोनो माँ बेटी के चेहरे का रंग उड़ गया। दोनो ने घबरा कर दरवाज़े पर खड़ी समीना को देखा। अमीना बेगम ने बात संभालने की कोशिश की – “स……समीना वो..”

समीना ने उन्हे हाथ उठा कर कुछ भी कहने से रोक दिया “बस आपा! बहुत बेवकूफ बना लिया आपने मुझे और नही। गलती आपकी नही मेरी है। मैं आपकी बातों मे आ गई और अपने बेटे की ज़िन्दगी बर्बाद करने चली थी। शुक्र है अल्लाह का जिसने सही वक्त पर मेरी आँखें खोल दी और आप लोगो की अस्लियत मेरे सामने खुल गई। अब आप लोग यहाँ से जाने की तैयारी कीजिए।” समीना ये कहकर गुस्से मे कमरे से चली गई। अमीना और रायबा उसे देखती रह गई। वो अपने रब का बेहद शुक्र गुज़ार थी जिसने उन्हे बहुत बड़े नुकसान से बचाया था। वो खुद भी अपने आपसे बहुत शर्मिन्दा थी। आज उन्हे चाँदनी की एहमियत का उसके साथ किए ज़ुल्मों का अहसास हो रहा था। वो उसकी गुनहगार थी।


“उठिए आफ़ताब! खाना खा लीजिए। ठंडा हो जाएगा।” आफ़ताब सोफ पर लेटा था चाँदनी ने उसके पास आकर कहा। लेकिन आफ़ताब ने जैसे सुना ही नही।

उसने फिर कहा – “आफ़ताब! उठिए खाना खा लीजिए। ठंडा हो जाएगा।” उसने आहिस्ता से आफ़ताब के हाथ पर हाथ रखा।

आफ़ताब अपना हाथ खींचते हुए बोला – “मुझे भूख नही है। तुम खा लो।”

“भूख कैसे नही है आपको कल से आपने कुछ नही खाया। आपकी तबियत भी ठीक नही है। बहुत कमज़ोर हो गए है। अब नाराज़गी छोड़ दीजिए और खाना खा लीजिए।” आफ़ताब उठ कर ग्लास विंडो के करीब आ खड़ा हुआ। चाँदनी उसके करीब आई। उसकी आँखें भीगने लगी थी।

“आप ऐसा नही कर सकते आफ़ताब! क्या आप मुझे यहाँ इसीलिए लाए थे? कितने ख़फ़ा है आप मुझसे आपको इस तरह देखकर मुझे कितनी तकलीफ़ हो रही है आप नही जानते। आपने मुझसे मुखातिब होना भी छोड़ दिया है। काग़ज़ पर लिखकर अपनी बात मुझ तक पहुँचाते है। कितना दुख होता है मुझे। मैं वापस जाना चाहती हूँ।” उसने रोते हुए कहा।

आफ़ताब को उसके आँसू सख़्त तकलीफ दे रहे थे। फिर भी वो संभल कर बोला – “ये तुम अच्छी तरह जानती हो चाँदनी मैने तुमसे बात करना क्यो छोड़ा। तुम खुद मुझसे बात नही करना चाहती। मैं जो बात तुमसे करता हूँ तुम उसका जवाब नही देती। मेरा साथ तुम्हें अच्छा नही लगता। तुम मजबूरी मे यहाँ मेरे साथ आई हो। एक छत के नीचे एक कमरे मे रह रही हो। मै तुमसे पागलो की तरह मोहब्बत करता हूँ और तुम मुझसे इतनी नफरत करती हो। मै जितना इन फासलो को समेटने की कोशिश करता हूँ तुम उतना ही मुझसे दूर रहती हो। यहाँ आकर भी मुझे तन्हाई ही मिली। मेरा दम घुटता है यहाँ।” वो कमरे से बाहर जाने लगा। चाँदनी ने उसका रास्ता रोक लिया।

“कहाँ जा रहे है आप? मौसम बहुत खराब है। आपकी तबियत भी ठीक नही है। मैं आपको बाहर जाने नही दूँगी।”

“तुम क्यो रोकोगी मुझे किस हक़ से रोकोगी?” आफ़ताब ने गुस्से मे तेज़ आवाज़ मे कहा।

“बीवी हूँ आपकी इस हक़ से रोकूँगी।”

“अच्छा! तुम्हें ये भी पता है कि बीवी हो तुम मेरी। बीवी के और भी फर्ज़ होते है।”

“जानती हूँ इसीलिए आपके साथ यहाँ आई हूँ। शौहर है आप मेरे और बीवी हूँ मैं आपकी। आपने तो कुछ ही दिनों से मुझे अपनी बीवी माना है और मुझसे मोहब्बत की है। मैंने तो आपको देखा भी नही था…. तबसे आपसे मोहब्बत करती हूँ। आपके लिए जीना मरना चाहती हूँ। पापा के इन्तेक़ाल के बाद हालात आपके सामने थे…..आपने बाबा जान और अम्मा जान के कहने पर मुझसे निकाह तो कर लिया लेकिन..अपनी बीवी कभी नही माना। दुल्हन बनाकर हवेली मे तो ले आए एक पाकीज़ा रिश्ते की जंजीर मे मुझे क़ैद तो कर लिया। मुझे तन्हाइयों और उदासियों के भँवर मे धकेल दिया। उस वक्त मुझे… आपकी बहुत ज़रूरत थी। अपने पापा की मौत के ग़म मे डूबी थी मैं…..मैने अपने वाहिद बचे रिश्ते को भी खो दिया था। बिल्कुल अकेली हो गई थी मै। आपको इन सब हालात से कोई मतलब ना था। आपके लिए तो मै एक अनपढ़, जाहिल और गँवार लड़की थी ना। जिससे निकाह करना आपकी मजबूरी थी क्योंकि आप अपने दादा दादी का हुक्म नही टाल सकते थे। उनकी बात मानना आपका फर्ज़ था। निकाह के तीसरे दिन आप लंडन चले गए। मेरे लिए आपका कोई फर्ज़ ना था। जाने से पहले इतना भी ना सोचा जिसे आपने अपना हमसफर बनाया है……उससे एक बार मिल ही लें। मुझसे रिश्ता जोड़ कर मुझे तन्हाइयों और उदासियों के भँवर मे छोड़ कर मुझसे इतनी दूर चले गए। मेरे पास तो आपकी यादें भी नही थी जिनके सहारे मै अपना वक्त गुज़ारती। आपका फोन आता आप सबसे बात करते सबकी ख़ैरियत पूछते। आपने कभी मेरे बारे मे ना पूछा….ना जानने की कोशिश की…….पहले पहल मुझे लगा सब ठीक हो जाएगा लेकिन वक्त गुज़रता गया। आहिस्ता आहिस्ता मुझे एहसास होने लगा कि आपकी नज़रों मे मेरी कोई अहमियत नही कोई क़द्र नही। जब अम्मा जान मुझे दुल्हन की तरह तैयार कराती...आफ़ताब की दुल्हन कह कर मेरी बलाएँ लेती मेरी नज़र उतारती। मैं रात भर आफ़ताब नाम के सहारे ख्वाबों मे गुज़ारती। आपकी बेरूख़ी और मामी की नफ़रत देखकर मुझे यक़ीन होने लगा कि आपकी नज़रों मे मेरी ज़रा भी अहमियत नही है। इसीलिए मैने फैसला किया मै अपनी मोहब्बत का गला घोंट दूँगी। मै आपकी खुशियों के बीच दीवार नही बनूँगी। इसके लिए मुझे जितनी भी कुर्बानी देनी पड़े मै दूँगी….मुझे अपनी इज़्ज़ते नफ़्स बहुत अज़ीज़ है। मेरे पास तो आपके नाम से जुड़ी एक ही खुशी थी कि आपने मुझसे निकाह किया। इसी के सहारे मैं अपनी सारी ज़िन्दगी गुज़ार दूँगी। यही सोचकर मैं आपसे दूर रहती। आपके क़रीब होते हुए भी मैने आपसे दूरियाँ बनाए रखी। मुझे आपकी हर खुशी अज़ीज़ है मगर अपनी अना और वक़ार भी उतना ही अज़ीज़ है। अगर मेरी वजह से आपको तकलीफ़ हुई है तो मुझे माफ़ कर दीजिए। मुझे वापस ले चलिए। मुझे माफ़ कर दीजिए आफ़ताब।”

वो ज़ारो क़तार रोते हुए ज़मीन पर बैठ गई। उसने अपने हाथ आफ़ताब के आगे जोड़ दिए। अब वो थक चुकी थी। उसने अपने दिल का सारा गुबार निकाल दिया। वो रो रही थी।

आफ़ताब अपनी ग़लती पर नादिम था। वो चाँदनी से नज़रें नही मिला पा रहा था। उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था। उसने उसके मेंहदी रचे हाथों को अपने हाथों का बोसा लिया। उसकी पेशानी चूमी और उसके रूख़्सारों पर बहते मोतियों को साफ करते हुए बोला – “नही चाँदनी तुम्हें माफ़ी माँगने की कोई ज़रूरत नही है। मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ, मैने तुम्हें बहुत दुख दिये बहुत तकलीफ़ पहुँचाई है। मुझे माफ़ कर दो चाँदनी।”

चाँदनी ने उसके दोनो हाथों को अपने हाथों मे लिया और बोली – “ये आप क्या कर रहे है आफ़ताब मुझे शर्मिन्दा ना कीजिए।” आफ़ताब ने उसे सीने से लगा लिया। 


चाँदनी ड्रेसिंग टेबल के आगे बैठी तैयार हो रही थी। उसकी नज़र अपने मेंहदी से रचे हाथों पर पड़ी फिर आफ़ताब पर जो पुरसुकून सोता हुआ कोई फ़रिश्ता लग रहा था। फिर मुस्कुराते हुए अपने आप से बोली – “वाकई मेरी मेंहदी रंग लाई।”


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