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Monika Garg

Romance

4  

Monika Garg

Romance

मेहंदी मेरे नाम की

मेहंदी मेरे नाम की

5 mins
305

सलमा बला की खूबसूरत थी नाक नक्श भगवान ने फुर्सत मे गढ़े थे उसके ।तीखी नाक मे हीरे की नथनी कमाल लगती थी ऊपर से रंग या अल्लाह! ऐसा था जैसे किसी ने दूध मे केसर घोल दी हो ।कटीला बदन और ऊपर से जब कमर को बल खा के चलती थी कसम से बिजलियां गिराती थी।काला रंग तो उस पर ऐसा खिलता था के पूछो मत।अकसर उसकी अम्मी अपनी बेटी के हुस्न को देख कर बोलती,"मरजानिये ।ये काला रंग मत पहना कर कोई जोगी फकीर उठा के ले जाएगा तुझे।"अम्मी के इतना कहने पर सलमा इठला जाती थी। कालेज जाते वक्त अम्मी बार बार कहती बुरखा सही से पहनो पर सलमा को तो जैसे रुप का नशा चढ़ा था।घर से तो अम्मीजान के डर से पहन जाती पर थोड़ी दूर जाकर उसे उतार कर बैग मे रख लेती थी।सलमा के दीवानों की एक लम्बी चौडी फौज थी।जब भी उनके आगे से निकलती वे आहें भरने लगते।ऐसे ही एक बार शहर के एक रहीसजादे परवेज की नजर उसपर पड़ गयी बस फिर क्या था उस बिगड़ैल लड़के ने उनके घरके चक्कर लगाने शुरू कर दिये। बड़े ही रौब से उनके घरके सामने गाड़ी मे आता और सलमा को जोर जोर से पुकारता।"सलमा तू मेरी है मेरी तुझे मुझसे कोई जुदा नही कर सकता।" सलमा के घर मे अम्मी और उसके अलावा कोई नही था इकलौती जो थी और पिछले साल अब्बू का इंतकाल भी हो गया था सलमा की अम्मी बाहर आकर बोलती,"बेटा ऐसे जोर से नही बोलते आप अंदर आओ बैठकर बातें करेंगे।" सलमा का चचेरा भाई सलीम जो उसी के साथ खेल कूद कर बड़ा हुआ था वो मन ही मन सलमा को चाहने लगा था ।ये बात सलमा को पता थी पर उसे तो कोई रईस जादा चाहिए था जो उसकी सारी इच्छाएं पूरी कर सकें जब परवेज़ ने शादी का प्रस्ताव भेजा तो सलमा के पैर तो जमीन पर नही पड़ रहे थे।उस ने निकाह के लिए झट से हां भर दी।उसने सलीम के विषय मे एक बार भी नही सोचा।सलमा निकाह करके ससुराल चली गयी ।निराश होकर सलीम भी अपनी आगे की पढ़ाई करने विदेश चला गया।उसने सलमा से कोई मतलब ना रखने का फैसला कर लिया था।धीरे धीरे दोनों अपनी जिंदगी मे आगे बढ़ रहे थे।सलमा को परवेज ने जब तक सही से रखा जब तक उसे कोई और तितली ना मिली।नया शिकार फंसते ही सलमा उसके आंखों की किरकिरी बन गयी अब तो वह उसे जानवरों की तरह पीटने लगा ।बार बार सलमा मार खाकर मायके आ बैठती तंग आकर उसकी अम्मी ने उस वहशी से अपनी बेटी का पिंड छुडाने के लिए तलाक की अर्जी दे दी। परवेज तो चाहता यही था। कोर्ट मे तो समय लगता बड़े बूढ़ों के सामने तीन बार तलाक तलाक तलाक बोल कर सलमा ने परवेज से जान छुड़ाई।

कहते है शादी शुदा औरत को जब गृहस्थ का चस्का लग जाता है तो उसे वे दिन याद आते है ।सलमा परवेज के साथ बिताए सुख के दिन याद करती और रोती थी।इधर सलीम भी पढ़ाई करके विदेश से लौट आया था।आते ही उसकी नौकरी बड़ी कम्पनी में लग गयी।अब अच्छे अच्छे घर से रिश्ते आने लगे थे सलीम के लिए।पर सलीम को कोई लड़की ही पसंद नही आती थी ।उसका मन सलमा की हालत को देखकर जारों जार रोता था ।कयी ऐसे निशान थे सलमा के चेहरे पर जो परवेज ने मार मार कर स्थाई रूप से स्थापित कर दिये थे ।सलीम उन निशानों को देखता और रोता मन ही मन सलमा को कहता,"क्या कमी रह गयी थी मेरे प्यार मे जो तुम्हें मेरा प्यार दिखाई नही दिया तुमने परवेज के पैसे को ज्यादा अहमियत दी।अब तुम ही मुझ से आकर कहोगी की मुझे प्यार है तुमसे सलीम।"

सलीम जब शादी के लिए तैयार नही हो रहा था तो उसकी अम्मी ने उसकी सगाई तय कर दी। बड़े घराने मे रिश्ता तय हुआ था लड़की देखने मे भी ठीक ठाक थी।पर सलीम की आंखों मे तो सलमा की सूरत बसी हुई थी बस इंतजार था तो उसके कबूलनामें का।इधर सलमा को पता चला कि सलीम की सगाई हो गयी है तो वह अंदर ही अंदर घुटने लगी ।उसे भी उसके प्यार का अहसास था पर परवेज के साथ निकाह करना उसके बचपने मे शामिल था।अब उसे सलीम के सच्चे प्यार की पहचान हो गयी थी।

शादी के दिन नजदीक आते जा रहे थे दोनों की तड़प बढती जा रही थी।सलीम उससे कबूल करवाना चाहता था और सलमा झिझक और शर्मींदगी के मारे कदम नही बढ़ा रही थी।शादी की रस्में शुरू हो गयी थी।आज मेहंदी की रस्म थी सुबह से ही सलमा और सलीम बैचेनी से घुम रहे थे।सलमि और उसकी अम्मी सुबह से ही शादी वाले घर मे काम मे हाथ बंटाने आ गयी थी। सलीम ऊपर कमरे मे बैठा था तभी सलीम की अम्मी ने सलमा को आवाज लगाकर कहा,"सममू ।जा ऊपर सलीम बैठा है जा कर चाय दे आ उसे।और हां उसे कहना जल्दी तैयार हो जाएं मेहंदी के लिए औरतें आती होंगी।उसे नेग की मेंहदी लगाकर हमें भी मेहंदी लगानी है।" 

"जी चचीजान ।हम अभी जाते है सिर पर से पल्लू सम्हालते हुए वह सलीम के कमरे की ओर चाय लेकर चल दी।ये उसका सलीम के विदेश से आने के बाद पहला आमना सामना हो रहा था।आज सलमा ने सितारों जड़ा काला सूट पहन रखा था।बला की खूबसूरत लग रही थी।जब वह सलीम के कमरें मे पहुंची तो सलीम कोई किताब पढ रहा था।उसने आदाब कह कर चाय मेज पर रख दी।जब सलीम ने चेहरे के आगे से किताब हटायी तो उसका चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था।सलमा ने जब सलीम को रोते देखा तो वह समझ गयी ।उसकी सारी झिझक एक पल मे पानी पानी हो गयी।उसने भागकर उसे गले लगा लिया ,"ओ मेरे सलीम इतना चाहते हो मुझे मै भी कितनी पागल थी जन्नत को छोड़कर जहन्नुम को चुना मैंने ।मै तुम्हारी हूं तुम्हारी ।यह सुनते ही सलीम ने उसे अपनी बाहों मे जकड़ लिया और एक ही जुमला बार बार बोल रहा था ",मेरे नाम की मेंहदी तुम्हारे ही हाथों पर लगेगी सममू और किसी के नही।"


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