Monika Garg

Tragedy

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Monika Garg

Tragedy

मैं औरत हूं ... इसलिए

मैं औरत हूं ... इसलिए

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"झरना तुम्हें पता है ना एक औरत ही घर बनाती है और एक औरत ही घर का सर्वनाश भी कर देती है । क्यों मै ठीक कह रहा हूं ना।"अमित झरना की ओर मुखातिब होता हुआ बोला।

तभी सुरेश बोल पड़ा,"भाभी इसकी बातों पर ध्यान मत दो ये पल मे तोला और पल मे माशा हो जाता है।"

झरना हंसते हुए बोली,"जी मुझे पता है ये ऐसे ही है।"


झरना और अमित अभी अभी इस शहर मे ट्रांसफर होकर आये थे। यहां दोनों की एक उच्च कम्पनी मे नौकरी लगी थी अपनी सेविंग से दोनों ने पैसे इकट्ठा किए और एक फ्लैट खरीदा था।

आज सुबह उठकर जब अमित किचेन में आया तो आते ही बोला,"सुनो आज मैने अपने कम्पनी के कुछ दोस्तों को बुलाया है तुम अच्छा सा कुछ बना देना।"

झरना खीझ उठी एक तो रविवार का दिन सारे सप्ताह के काम बाकी थे करने के लिए ऊपर से महाशय कभी भी किसी को बुलाये गे तो पहले नही बताएं गे।ताकि वो पहले से कुछ तैयारी करके रखती।और नही तो छोले भटूरे ही बना देती पर नही कभी भी नही बताएंगे कि कोई आने वाला है।

उसने फटाफट आलू उबाले।एक तरफ खीर चढ़ा दी और पूरी का आटा गूंथ दिया।बाकि पुलाव के लिए सब्जी काटने को वो काम वाली बाई को बोल गयीऔर स्वयं नहाने चली गयी।जब नहा कर बाहर निकली तो क्या देखती है अमित काम मे हाथ बंटाने की तो छोड़ो अखबार मे ही मुंह डाले बैठे है ।उसने फटाफट अमित को धक्के से उठाया और नहाने भेजा और स्वयं वाशिंग मशीन मे कपडे डालकर किचेन मे आ गयी । नौकरानी के भरोसे नही छोड़ सकती थी सब कुछ।वो पुलाव बनाते समय सोच रही थी कि वो किस बात मे अमित से कम है उससे अच्छे पद पर कार्यरत हैं और तनख्वाह भी उसकी ज्यादा है अमित से।पर काम की सारी जिम्मेदारी उसकी।

इतने मे डोर बैल बजी शायद मेहमान आ गये थे। झरना ने सब की आवभगत की पहले ठंडा और फिर खाना लगा दिया।खाना बड़ा ही स्वादिष्ट बना था अमित के दोस्त तारीफ करते नही थक रहे थे पर अमित के मुंह से दो शब्द भी नही निकले तारीफ के ।वो तो बस सारा समय मेरा घर,मैने खरीदा,मेरे कारण सिर पर छत हुई है बस यही सब करता रहा।

झरना अंदर से कट कर रह गयी। फ्लैट मे उसकी अमित से ज्यादा सेविंग लगी थी पर अमित के मुंह से बस यही निकल रहा था मेरा फ्लैट ,मैने लिया।

जब सब दोस्त खा पी कर चले गये तब झरना ने अमित से पूछा ,"सुनो ये फ्लैट हम दोनों के प्रयास से लिया गया है तो तुम अपने दोस्तों के सामने मेरा फ्लैट,मैने लिया ये सब क्यों बोल रहे थे।"

इस पर अमित एकदम तुनक कर बोला,"तो क्या गलत कह रहा हूं।मै पति हूं तुम्हारा, तुम्हारी सब चीजों पर मेरा हक है और मै घर का मुखिया हूं। फ्लैट भी मेरे ही नाम है।"

झरना ये सुनकर चुप हो गयी वो कुछ नही बोलना चाहती थी क्योंकि अमित से बहस मे वो कभी नही जीत पाती थी।बस मनमे यही सोचती रही कि औरत के क्या केवल कर्तव्य ही होते है अधिकार कुछ नही होता।सारा जीवन जिस घर को दे देती है उसमे उसके नाम की नेमप्लेट भी नही लगती वो तो बस उस घर का काम करने के लिए , मेहमानों को अटैंड करने के लिए और बच्चे पैदा करने के लिए ही है ये अंतर क्यों है आखिर क्यों?क्यों कि वो एक औरत है इसलिए।


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