Monika Garg

Inspirational

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Monika Garg

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इज्जत या आरती

इज्जत या आरती

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रविवार से बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी, मानो पूरा मुंबई लोकल ट्रेन की तरह पटरी से उतर कर थम गया हो, पर ये बारिश अजय के इरादों को कहाँ तोड़ पायी थी, उल्टा आज वो दो घंटे पहले ही बोरीवली स्टेशन आके बैठ गया था, उसे पता था कि आज बारिश के बहाने लोकल ट्रेन भी सुस्ता जाएँगी, पर वो कहाँ रुकने वाला था, आंधी आये तूफ़ान आये, बारिश आये हर मंगलवार की तरह आज भी उसे, सिद्धिविनायक मंदिर जाना था इसीलिए वो बोरीवली स्टेशन पर ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था, अजय और सिद्धिविनायक का ये सिलसिला पिछले पांच सालों से चला आ रहा था. मंगलवार की आरती के बाद ही अजय का दिन पूरा होता था, पर आज उसे लगा कि, शायद पहली बार आरती छूट जायेगी, पिछले डेढ़ घंटे में सात लोकल ट्रेन रद्द हो चुकी थी और प्लेटफार्म पर सन्नाटा पसरा था. पूरा शहर बारिश में खो सा गया था, स्कूल, ऑफिस, दुकाने सब बंद थे. पर अजय को कौन समझाए गणपति बाप्पा से उसका रिश्ता ही कुछ ऐसा था, एक बार तो बहुत तेज़ बुखार होने के बाद भी, वो बाप्पा की आरती के लिए गया, उसे अपनी भक्ति और बाप्पा की कृपा पर पूरा भरोसा था लेकिन आज भरोसा टूटता नज़र आ रहा था.


अजय ने इस बार जब ट्रेन इंडीकेटर्स की तरफ देखा तो मायूसी से लटके चेहरे पर उम्मीद झलकने लगी, क्यूंकि 6:15 की फ़ास्ट लोकल आने वाली थी, अजय ने मन ही मन हिसाब लगाना शुरू कर दिया कि सात, सवा सात तक वो दादर पहुच जायेगा और अगर टैक्सी नहीं भी मिली तो दस-पंद्रह मिनट चलना ही तो है, कुछ देर में ट्रेन के आने का अनाउंसमेंट भी शुरू हो गया. उसने बाप्पा का शुक्रिया अदा किया, उसका नियम टूटने से बच गया था.


ट्रेन आई, पर पूरी खाली, बस हर डब्बे में इक्का-दुक्का यात्री ही थे, वो ट्रेन में चढ़ा, थकान की वजह से उसकी नींद लग गयी, अगला स्टेशन दादर सुनते ही, वो जल्दी से उठा, घडी में time देखा, और दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया, ट्रेन दादर में आके रुक गयी.


दादर, जिस स्टेशन पर कभी पैर रखने की जगह भी नहीं मिलती, आज यहाँ सुनसान था, वो जल्दी जल्दी बाहर निकलने लगा, उसे मंदिर पहुचने की जल्दी थी लेकिन तभी उसे एक चीख सुनाई दी, एक लड़की की चीख... उसने इस आवाज़ की तरफ जाने का मन बनाया ही था कि तभी उसकी नज़र घडी पर गयी ,साढे सात बज गए थे, आरती न छूट जाए ऐसा सोचकर वो बाहर की तरफ बढ़ने लगा, एक बार फिर वही चीख उसके कानो को भेद गयी, इस बार चीख के साथ कुछ लडको के हंसने की आवाज़ें भी उसे सुनाई दी, वो समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे? अब अगर और देरी हुई तो यहाँ तक आने की मेहनत बेकार, आरती छूट जाएगी, पर ऐसे किसी लड़की को मुसीबत में भी नहीं छोड़ सकता था, वैसे भी आज बहुत कम लोग ही बाहर नज़र आ रहे थे? ये लड़के पता नहीं क्या करेंगे उसके साथ? कुछ ऐसा वैसा कर दिया तो, कल न्यूज़ पेपर में पढके, हो सकता है न्यूज़ पेपर में न भी आये पर अजय खुद को कैसे माफ़ कर पायेगा, इंसानियत के धर्म का क्या? उसके मन में बहुत से सवाल-जवाब चलने लगे. एक बार और लड़की की आवाज़ उसके कानों में पड़ी.


इस बार अजय चीख की तरफ भागा, और अपने आप से ऐसे बातें करने लगा, जैसे चार-पांच लोगो को साथ लाया हो “हाँ सर उधर से आवाज़ आई है, मैंने कुछ लड़के देखे है वहां जाते हुए” अजय की आवाज़ सुन के लड़के भाग गए, थोड़ी देर में एक डरी सहमी सी लड़की, अजय की तरफ बड रही थी.


“आप ठीक तो है न?” अजय ने पूछा


लड़की ने हाँ में, नहीं शायद न में सिर हिला दिया, अजय ने अगला सवाल पूछा


“कहाँ रहती है आप?”


लड़की की तरफ से कोई जवाब न पाकर अजय ने फिर पूछा


“कहाँ रहती है आप?”


“यही दादर में” लड़की डरते हुए बोली


“चलिए मैं आपको घर छोड़ देता हूँ”


“ठीक है” लड़की डरी हुई आवाज़ में बोली, अभी तक वो सदमे से उबरी नहीं थी

अजय बार-बार घडी की तरफ और फिर रास्ते को देख रहा था. लड़की आगे आगे अजय पीछे-पीछे, और साथ में तेज़ बारिश.


“बस यहाँ से मैं चली जाउंगी, अगली गली में मेरा घर है, लड़की की हिम्मत वापस आ चुकी थी, उसके साथ बहुत बड़ा हादसा होते होते टल गया था. घर के पास पहुच के लड़की ने अजय की तरफ देखा और कहा, थैंक यू।


अजय ने मुस्कुरा के उसके थैंक यू का जवाब दे दिया.


“वैसे नाम क्या है आपका?” लड़की ने अजय की तरफ देखते हुए पूछा


“अजय”


“और मैं आरती” इतना कह के आरती गली में मुड़ गयी


अजय सोच में पड़ गया कि आज बाप्पा की आरती के लिए भले ही लेट हो गया पर इस आरती को सही समय पर पहुच कर बचा लिया. उसे ख़ुशी थी कि उसका नियम नहीं टूटा था.



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