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Monika Garg

Inspirational

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Monika Garg

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धर्म की मां

धर्म की मां

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घर मे नयी नयी बहू आयी थी ।उषा जी आज थोड़ा ज्यादा ही व्यस्त थी । नौकरानी को बार बार हिदायत दे रही थी ,"देखो कोई चीज की कमी नही रहनी चाहिए।आज मुहल्ले की औरते मुंह दिखाई के लिए आ रही है और जो मेहमान शादी मे नही आ पाये वो भी आज ही आ रहे है ।तुम सब की खातिरदारी का ख्याल रखना किसी चीज की कमी नही होनी चाहिए।"

ऊषा जी साथ ही साथ बहू को भी समझा रही थी ,"बेटा एक दिन का देखा सौ दिन का व्याख्यान वाली बात हो जाएगी आज बहुत बढ़िया साड़ी और गहनों से लद कर बैठना कोई ये ना कहे सेठ सूरजमल के बेटे की बहू कुछ नही है।"

सरिता अंदर से ही होले से बोली ,"जी मम्मी जी।"

सब और बहू की मुंह दिखाई की तैयारी चल रही थी।तभी सेठ सूरजमल अंदर आंगन मे आये और उषा जी से बोले,"सुनो जी हम गरीब को भी कोई पूछ लो ।माना ठीक है नयी नयी सास बनी हो लेकिन हमारा भी कुछ सोचो हमे कुछ खाने को दे दो ताकि हम अपनी शूगर की दवाई ले सकें।"

तभी उषा जी झेंपते हुए बोली ,"माफ करना जी मै जो काम मे इतनी व्यस्त हो गयी थी कि मुझे आप को नाश्ता देना याद ही नही रहा।"

"कोई बात नही जी ।अब दे दो और हां आज मैने कुछ खास मेहमान बुलाएं है उनकी खातिर दारी मे कमी नही होनी चाहिए।"

उषा जी ने सोचा हो सकता है कोई दोस्त वगैरह होंगे इस लिए "जी अच्छा" कह कर वो अपने काम मे लग गयी।

अपने पति को नाश्ता देकर उषा जी तैयारियों का जायजा ले ही रही थी कि औरतों का आना शुरू हो गया।

नयी बहू सरिता भी चांद का टुकड़ा लग रही थी।सभी औरतों ने जी भर कर आशीर्वाद दिया।इतने मे जोर जोर से तालियों की आवाजें आने लगी।तभी उषा जी की बहन बोली,"लो जिज्जी जिस की कमी थी वो लोग भी आ गये।"

आंगन मे पांच छह किन्नर अपनू साजो समान के साथ दाखिल हुए। किन्नर परम्परा के अनुसार जोर जोर से ताली बजाने लगे और उनमे से एक बोली,"क्यूं सेठानी क्या सोचा था अकेले अकेले ही बेटे की शादी कर लो गी ।हमे तो हमारा नेग चाहिए ही।"

उषा जी की बहन तपाक से बोली,"कुछ नाच गा कर दिखाओगी तभी तो नेग मिलेगा।"

तभी सूरजमल सेठ जिन्होंने उनकी आवाज को सुन लिया था वो जोर से गरज़ते हुए आये और बोले,"कोई नाच गाना नही करेंगे ये ।उषा जी जिन मेहमानों का जिक्र मैने किया था वो ये ही है मैने ही इन्हें बुलाया है ।"

उन किन्नरों मे जो सबसे बड़ी थी उनके चरण छूकर सूरजमल ने कहा,"ये मेरी धर्म की मां है।"

इतना सुनना था कि उषा जी ने सिर पर पल्लू किया और अंदर से आरती का थाल ले आयी।और दोनों पति पत्नी ने मिल कर बडी किन्नर की आरती उतारी फिर वही काम बेटा बहू दोनों को करने को कहा। दोनों ने उन बड़ी किन्नर का आशीर्वाद लिया जिस के फल स्वरूप बड़ी किन्नर ने अपने हाथ की सोने के कंगन उतार कर बहू को पहना दिए।

सूरज मल ने भी उन सब को दस दस हजार रुपए और भेट के रूप एक एक साड़ी देकर अच्छे से मेहमान नवाजी करके विदा किया।

जब विदा करके सेठ सूरजमल वापस आंगन मे आये तो उषा जी ने कहा,"आप ने पहले तो कभी नही बताया इस विषय मे।"

सूरजमल बोले,"किसी का किया हुआ उपकार गाने से विफल हो जाता है बस मन मे आदर भाव रखकर उसे स्मरण रखना चाहिए।

बात तब की है जब मै स्कूल मे पढ़ता था एक दिन घर के लिए मैंने दूसरा रास्ता चुन लिया क्यों कि मेरे दोस्त सब वही से जा रहे थे ।वो लोग एक एक करके अपने घरों को चले गये मै अकेला रह गया मै जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुए घर की ओर जा रहा था कि तभी सामने से आती हुई कार ने टक्कर मार दी मैं बेहोश हो गया चोट बहुत गहरी थी मेरा बहुत खून बह गया था।बस मुझे बेहोश होते वक्त इतना दिखा कि वहां से एक किन्नरों की टोली जा रही थी ।जब मै होश मे आया तो मैंने देखा मेरी मां और एक किन्नर मेरे सिरहाने खड़े बड़े प्यार से मुझे देख रहे थे।मेरी मां ने ही मेरा परिचय किन्नर मां से करवाया था।वो बोली,"बेटा अगर आज ये ना होती तो तू जिंदा नही रहता । इन्होने ही अपना खून देकर तुम्हें बचाया है आज से मैं तेरी जन्म की मां और ये तेरी धर्म की मां है ।"मै उठा और उनके चरणों मे गिर पड़ा।आज उन दोनों मांओं का आशीर्वाद है जो मै यहां इस मुकाम पर खड़ा हूं।"

सेठ सूरजमल की बातें सुनकर सब के सिर उन किन्नरों के लिए नतमस्तक हो गये।


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