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Monika Garg

Tragedy

4  

Monika Garg

Tragedy

जिंदगी का सफ़र

जिंदगी का सफ़र

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"देख देख बुड्ढे को चैन नही है इतनी बारिश हो री है पर मजाल है ये चैन से बैठ जाए।जब तक गिर नही जाएगा इसे चैन नही आने का।"

इमरती देवी अपनी दस साल की नातिन चीनू से उसके नाना जी के विषय मे कह रही थी। इमरती देवी और बृजमोहन लाल की ये नोंक झोंक हर रोज का काम था ।चीनू की मामियां जब अपने सास ससुर को इस तरह लड़ते झगड़ते देखती तो मुंह पर पल्लू ठूंस ठूस कर हंसती।खुलकर हंसती तो इमरती देवी के गुस्से को वो लोग जानती थी।चीनू ने जब देखा नानी नानाजी के लिए ऐसे बोल रही है तो उसे नानाजी पर बड़ा तरस आया वह भाग कर बैंत देने चली गयी नानाजी को।जाकर बोली,"नानू ये बैंत ले लो नही तो आप गिर जाओगे।"

बृजमोहन लाल जी नातिन से बैंत लेकर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले,"जीती रह बिटिया। मुझे पता है ये बुढ़िया मेरा ख्याल बहुत रखती है उपर उपर से लड़ती रहेगी लेकिन अंदर से बड़ा ध्यान रखती है बुढ़िया।"

सारा दिन पति पत्नी एक दूसरे की टांग खींचते रहते थे।कभी बृजमोहन लाल का पलड़ा भारी होता तो कभी इमरती देवी का। उम्र के अस्सी बसंत पार कर चुके थे । लेकिन जिंदगी से हार नही मानी थी ।इमरती देवी इस उम्र मे भी अगर बहू कही मायके गयी होती तो बेटों को खाना बना कर खिला देती थी।पर ऐसा चांस कम ही होता था। बृजमोहन लाल जी बेटों से पहले ही दुकान पर पहुंच जाते थे नौकरों से दुकान खुलवाकर झाड़ पोंछ करवा देते थे जब तक बेटे दुकान पर आते ।उन दोनों पति पत्नी के जीवन का सफर यू ही चल रहा था

एक दिन ऐसे ही बरसात का मौसम था बृजमोहन लाल दुकान पर जा रहे थे *तय उनका पैर फिसल गया अऔर वो आंगन मे गिर पड़े।तब इमरती देवी पूजा कर रही थी गिरने की जोर से आवाज हुई तो इमरती देवी का जी जोर से घबराया वो वही बैठे बैठे ही चीखने लगी ,"कितनी बार कहा है बुड्ढे को चैन से घर बैठो पर ये है के टिकते ही नही। बड़ी मुश्किल से उठकर जब इमरती देवी आंगन मे आयी तो पता नही कैसे इमरती देवी का भी पैर फिसल गया।अब बारी बृजमोहन लाल की थी वो बोले,"ले बुढ़िया मुझे लैक्चर दे रही थी इतनी देर से अब भगवान ने तुझ से भी मेरा बदला ले लिया।"यह कहकर बृजमोहन लाल अपनी चोट भूलकर इमरती देवी को उठाने मे लग गये।तभी इमरती देवी बोली,"थेह रहने दो अभी अभी तो गिरे हो मै तो उठ जाऊगी आपका के हाल है चोट तो नही लगी।"

इस तरह इमरती देवी को सोच होती थी बृजमोहन लाल की। बृजमोहन को पैर मे गुम चोट लगी थी ।शाम से ही करहाना चालू हो गया था उनका ।अंदर कमरे मे पड़ी इमरती देवी को पति के करहाने की आवाज आ रही थी बेटों ने खूब मालिश वगैरह कर दी थी पर अभी तक बृजमोहन के पास उनकी पत्नी नही आयी थी क्योंकि कि उसे भी चोट लगी थी।शायद इसलिए ज्यादा जोर से करहा रहे थे बृजमोहन जी।जब इमरती देवी से उनका करहाना बर्दाश्त नही हो रहा था बेटे बहू सोने जा चुके थे।अब बहूओ को बुलाते अच्छा नही लगा उन्हें तो स्वयं ही उठकर पति के कमरे मे जाने लगी धीरे धीरे करके पति के पलंग के पास पहुंची और सिर पर हाथ रख कर बोली,"के ज्ञान है इब तहारा(आपका) ।"बृजमोहन लाल जैसे उनकी ही बांट जोह रहे थे आते ही बोले,"मैं तो ठीक हो जाऊं गा।तू बता तुझे तो चोट नही लगी ज्यादा।बहू बता रही थी पैर छिल गया तेरा।"

दोनों पास बैठ कर एक दूसरे का हाल पूछ रहे थे कि तभी जैसे ही इमरती देवी उठी उन्हें चक्कर आया ओर धड़ाम से फर्श पर गिर गयी । बृजमोहन लाल जी के तो होशोहवास गुम हो गये बेटों को आवाज दी ।बेटे आये तो पता चला इमरती देवी तो परलोक सिधार गई है। बृजमोहन लाल जी का तो जैसे जी ही निकल गया ।अब बेटे बहूओ के सामने दहाड़े मार कर कैसे रोये।बस अंदर ही अंदर आंसू पीते रहे ।उनकी आंखों के सामने अर्थी बांधी जा रही थी उनकी धर्मपत्नी की ।मन कर रहा था दहाड़े मारकर रोने का पर बेटे क्या कहते।जब तक पत्नी का शव घर पर था तब तक तो किसी तरह सम्हाला अपने आप को जैसे ही अर्थी उठने लगी बृजमोहन लाल जी को जैसे कुछ होने लगा। दर्द और दुःख का अतिरेक हो गया था और वो इमरती देवी के कफन को पकड़ कर जोर जोर से रोने लगे। दर्द इतना था कि सहन ही नही कर पाये एक हिचकी आयी और उनका भी परलोक गमन हो गया।आज बृजमोहन लाल जी के घर से दो अर्थी जा रही थी।पति पत्नी जीवन के सफर को समाप्त करके एक लम्बे सफर पर निकल चुके थे।पीछे लोगों को ये कहता छोड़कर "प्यार हो तो ऐसा हो जो जिन्दगी के सफर मे साथ रहे तो मौत भी साथ ही साथ पायी ।ये है सच्चा प्यार।


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