Rupa Bhattacharya

Drama

2.8  

Rupa Bhattacharya

Drama

मधु मालती के फुल

मधु मालती के फुल

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हर बार की तरह इस बार भी मेरे पतिदेव को प्रोमोशन मिला और उनका तबादला हो गया। इस बार उनकी पोस्टिंग किसी छोटे शहर में न होकर महानगर में हुई थी। मैं बहुत उत्साहित थी क्योंकि मुझे महानगर में कभी रहने का मौका नहीं मिला था। हम लोग अपना सारा सामान लेकर एक बहुमंजिला अपार्टमेंट में शिफ्ट हो गये। कुछ दिन तो घर के सामान सजाने में निकल गये। मैं यहाँ की चकाचौंध से हतप्रभ थी जिधर देखो गगनचुंबी इमारतें, सैकड़ों भागती हुई चमचमाती गाड़ियाँ, फुटपाथ पर दौड़ते भागते लोग, चारों ओर भागम भाग।

भीड़, शोर ऽ ऽ, कोलाहल इन सब से कुछ ही दिनों में मैं उकता गई। रह- रह कर पुरानी जगह याद आती। जहां सब्जी वाली सब्जी देने आती और कुछ अपना दुखड़ा सुना कर मन का बोझ हल्का करती। दूध वाला गाय के साथ बछड़ा भी ले आता, सुबह बछड़े के गले में बँधी घ॔टी के टुन- टुन से नींद खुलती।

प्रायः सुधा मेरी पड़ोसन दोपहर में आकर कुछ चीनी "जरूर लौटा दूँगी "कहकर उधार ले जाती। जिसे वह कभी न लौटाती। इन सबकी मुझे आदत पड़ चुकी थी। यहाँ तो अपार्टमेंट में कौन कहाँ रहता है कुछ पता ही नहीं चलता ! एक दिन सुबह मैं कुछ खोई सी बाॅलकनी में खड़ी थी। अनायास मेरी नजर हमारे मुख्य द्वार पर फूलों से लदी हुई मधु मालती के बेलों पर पड़ी। बहुत ही खूबसूरत और दिलकश नज़ारा था। सफेद, लाल, गुलाबी छोटे- छोटे पुष्पों से लदी हुई मधु मालती की लताये लहरा रही थी, मानो कई अल्हड़ नवयौवना आपस में हँसी ठिठोली कर रही हो।

रितेश मेरे पीछे आकर खड़े हो गये और गले में बाँहें डालते हुए पूछा- क्या देख रही हो ? मैंने मुस्कराते हुए जवाब दिया- उधर देखो मधु मालती कैसे लहरा रही है ! रितेश सड़क पर जाती हुई दो युवतियों की ओर देखने लगे। मैंने झल्र्लाकर कहा- उन्हें क्यों घूर रहे हो ? रितेश झेंप गये। सकपकाते हुए पूछा- क्या वे दोनों 'मधु' और 'मालती 'नहीं है ? मैंने जलभुन कर कहा- मैं नीचे गेट के पास मधु मालती के फुलो को देखने के लिए कहा था ! ओह साॅरी ! कहते हुए रितेश अन्दर चले गए। पूछा, क्या तुम्हें यहाँ मन नहीं लग रहा है ? मैंने अपना भड़ास निकालते हुए कहा- क्या करूँ दिन भर,, न कोई यार दोस्त न कहीं आना जाना, मैं तो बिल्कुल बोर हो जाती हूँ।

सुनो, तुम रोज सुबह पार्क चली जाया करो। ऐसे भी तुम्हारा बी. पी. बढ़ा हुआ है, डॉक्टर ने रोज टहलने को कहा है, पार्क में जाकर मन भी बहल जाएगा। कहकर रितेश नहाने चले गये। मुझे लगा रितेश ठीक ही कह रहे हैं।

हमारे अपार्टमेंट से कुछ ही दूरी पर एक खुबसुरत पार्क है, ऐसा मैंने सुना था। सुबह घड़ी के अलार्मसे नींद खुली मगर बिस्तर छोड़कर उठने का मन नहीं था, रितेश ने जबरदसिती उठाया और मैं तैयार होकर पार्क जा पहुँची।

बहुत ही खूबसूरत पार्क था। हरी-भरी मखमली घास, करीने से सजाये गये गमलों में रंग बिरंगे फूल, एक छोटा सा सरोवर और सरोवर के चारों ओर ढेर सारे नारियल के पेड़। ठंडी -हवाओं का झोंका मेरे चेहरे को चुमती हुई बह रही थी। कुछ लोग टहल रहे थे। मैं कुछ दूर चलकर ही थक गई और एक बेंच पर जाकर बैठ गई। हाथों में हाथ डाले उन जोड़ों को निहारती रही जो एक दूसरे में खोए सरोवर के किनारे बैठे थे। सोच रही थी----अगर एक कप गर्म चाय मिल जाती तो यहाँ बैठे- बैठे पी लेती।

तभी एक महिला मेरे बगल में आकर बैठ गई। मध्यम उम्र की बहुत ही खूबसूरत महिला थी। मुस्कराते हुए उसने कहा "कामिनी"तुम्हारा टहलना हो गया ? अरे ! आप मुझे कैसे जानती है ? वह हँस कर बोली- मैं भी "राधिका अपार्टमेंट" में रहती हूँ, दसवीं मंजिल पर।

तुम तो यहाँ नई आयी हो, मैं यहाँ बीस साल से रहती हूँ। तुम्हें मैंने बहुत बार बाॅलकनी में खड़े देखा है, नीचे गेट के पास गार्ड ने बताया तुम लोग नये शिफ्ट हुए हो।

अच्छा ऽऽऽ आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई मैंने मुस्कराते हुए कहा। तुम मुझे "मिसेज थापड़ " कह सकती हो कहकर वह हँस पड़ी। उनके सफेद मोती जैसे दाँत और गुलाबी गालों को मैं देखती रह गई।

मेरे चेहरे पर मत जाओ मैं पचास से ऊपर हूँ । मगर आप तो पैंतीस साल से ज्यादा नहीं लगती, मैंने आश्चर्य से कहा। वह हँसते हुए बोली- मेरे साथ तेजी से चलो ऐसे बैठने से नहीं चलेगा।

मैं उठकर उनके साथ चलने लगी। मैंने देखा वह मुझसे दुगुनी तेजी से दौड़ते हुए आगे बढ़ गई। हम लोग साथ ही लौटे। उन्होंने कहा रोज आना धीरे- धीरे दौड़ने लगोगी।

गेट के पास आकर मधु मालती की खुशबू मेरी साँसो में अन्दर तक समा गई। ' मिसेज थापर' बोली पता है दस साल पहले इन बेलों को मैंने ही लगाया था।

कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। मैं उनके साथ काफी घुल मिल गई थी। वह अपने बारे में कभी कुछ नहीं बताती थी। एक दिन मैंने ही उनसे पूछा मिसेज थापर आपके परिवार में कौन- कौन है ?

सुनकर उनके चेहरे का रंग उड़ गया, बिल्कुल उदास होकर बोली अकेली रहती हूँ। सबने मुझे छोड़ दिया, पति पहले ही चल बसे थे और बेटा विदेश में जाकर बस गया है। बेटा पास किया हुआ कम्प्यूटर इंजीनियर है। विदेश में शादी कर अपना घर वहीं बसा लिया है, एक ही साँस में सारी बातें कहकर वे चुप हो गई। मैं सुनकर अचंभित रह गई।

आपका बेटा आपको अकेला छोड़कर चला गया आपने रोका नहीं ? क्यों रोकती, उसकी तरक्की में मैं क्यों बाधा बनती ? उसने आपको वहाँ बुलाया ? मैंने पूछा ! हाँ, इस घर को बेचकर वहाँ रहने के लिए बुलाया था। मैंने मना कर दिया, इस उम्र में अपनी मिट्टी छोड़कर मैं विदेश रहने नहीं जा सकती !

कहते हुए तेजी से मिसेज थापर अपने घर की ओर जाने लगी।

दिन भर मैं मिसेज थापर के बारे में सोचती रही। शाम को मैंने सोचा उनके फ्लैट में जाकर उनसे कुछ गप शप करूँ। मैं लिफ्ट से दसवीं मंजिल पर गई, देखा "रमेश थापर" "गीता थापर" का नेम प्लेट लगा हुआ है और दरवाजे पर एक बड़ा सा ताला लटक रहा है। कहाँ गई होगी ? सोचते हुए मैं नीचे गेट के पास चली गई। देखा 'धनु' फूलों में पानी डाल रहा था। मैंने उससे पूछा क्या तुम्हें पता है मिसेज थापर कहाँ गई है ? क्या तुम्हें कुछ बोल के गई है ? धनु कुछ अजीब सी नजरों से मुझे देखने लगा- ----। मैंने झल्र्लाकर कहा अरे वो दसवीं मंजिल वाली ! वह आपको कहाँ से मिलेगी ? वह तो पिछले साल चल बसी !

मैंने जोर से चिल्लाकर कहा ! क्या तुम पागल हो गये हो ? वह मेरे साथ रोज सुबह पार्क में सैर करती हैं ---'कहकर धम से मैं ' धनु' की कुर्सी पर बैठ गई।

मेमसाहब लगता है आपकी तबियत ठीक नही है।

मेरे सामने वह खत्म हुई थी। बहुत ही दर्दनाक मौत था। बहुत बीमार रहती थी, बेटे का आसरा देखती रही पर वह न आया। बहुत ही संगदिल बेटा है। एक आया थी वही खाना पकाती थी।

आया कुछ दिनों के लिए गांव गयी थी, जब लौटी तब दरवाजा नहीं खुला। पुलिस बुलाकर दरवाजा तोड़ा गया, अन्दर गीता मेमसाहब की सड़ी गली लाश पड़ी थी। बहुत ही वीभत्स दृश्य था। तब से फ्लैट में ताला बंद है.....

आगे मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया, सर चकराने लगा, मैं कुर्सी से नीचे गिर गई।

होश आया तो खुद को अपने बिस्तर पर पाया रितेश मेरे सामने डाक्टर के साथ खड़े थे। उसने कहा तुम ठीक हो न ? तुम्हारा बी.पी. बढ़ा हुआ है डॉक्टर साहब ने दवा दी है , खा के आराम करो।

अगले सुबह मैं रितेश के साथ पार्क पहुँचीं।

हमने सारा पार्क छान मारा, मिसेज थापर का कहीं नामो निशान नहीं था।

अचानक मेरी नजर उस बेंच पर पड़ी जहाँ हमलोग बैठते थे। बेंच के नीचे हरी घास पर एक मधु मालती का ताजा फूल पड़ा हुआ था।

मैंने जोर से चिल्लाकर कहा ! रितेश उधर देखो मधु मालती का ताजा फुल ! रितेश भी अवाक थे। मैंने पूछा अब क्या कहते हो ?

रितेश बोले- आई एम क्न्फयूजड।

अगले सुबह बिना अलार्म के मैं उठकर पार्क गयी। उस दिन पहली बार मैं पार्क में दौड़ी थी।

लौटते समय मेरी नजर लहराते हुए मधु मालती के फूलों पर पड़ी। ऐसा लगा मानो मिसेज थापर मुस्कराती हुई कह रही हो

वेल डन-----------।।







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