मदद की खुशी
मदद की खुशी
"मैडम जी मैं कल से ट्यूशन नहीं आऊंगी!" सारिका के ट्यूशन क्लासेज में पढ़ने वाली दूसरी कक्षा की छात्रा सिया बोली।
" पर बेटा ऐसा क्यों आपके पापा ने तो बताया था कि आपको घर में पढ़ाने वाला कोई नहीं इसलिए आप ट्यूशन पढ़ने आए थे फिर अब क्यों छोड़ रहे!" सारिका ने सिया से प्यार से पूछा।
" वो मैडम ....! सिया कुछ बोलने की जगह रोने लगी।
" क्या हुआ बेटा कुछ बताओ तो!" सारिका ने उससे प्यार से पूछा।
" मैडम जी मेरे पापा की नौकरी छूट गई है तो वो अब मेरी फीस नहीं भर पाएंगे इसलिए उन्होंने कहा है ट्यूशन छोड़ दो!" सिया रोते हुए बोली।
" पर बेटा तुम बिना ट्यूशन कैसे समझोगी माना तुम होशियार बच्ची हो पर बिना ट्यूशन तुम्हे कौन गाइड करेगा!" सारिका बोली।
" कोई बात नहीं मैडमजी मैं खुद से पढ़ लूंगी पर मेरी पढ़ाई के लिए मम्मी पापा परेशान हो ये मुझे अच्छा नहीं लगेगा!" सिया बोली।
नन्ही सी बच्ची के मुंह से ऐसी समझदारी की बातें सुन सारिका हैरान रह गई। सिया को उसके पापा तीन साल पहले ट्यूशन लगवाने लाए थे क्योंकि वो और उनकी पत्नी ज्यादा पढ़ी लिखे नही थे तो सिया क्लास में पिछड़ रही थी। उन्होंने सिया का एडमिशन एक अच्छे इंगलिश स्कूल में करवाया था क्योंकि वो चाहते थे उनकी बेटी पढ़लिख कर एक मुकाम हासिल करे। सिया को ट्यूशन पढ़ाते में सारिका ने ये जाना कि सिया एक होनहार बच्ची है जो बहुत जल्दी सब समझ जाती साथ ही बड़ी प्यारी भी सारिका को एक लगाव सा हो गया था उससे।
"बेटा कल आप अपने पापा को लेकर आना मुझे उनसे बात करनी है!" सारिका ट्यूशन ख़तम होने बाद सिया से बोली।
" पर मैडमजी पापा आपकी फीस कुछ दिनों में दे देंगे कहीं से इंतजाम कर उन्होंने कहा है!" सिया एकदम से बोली नन्ही बच्ची को लगा कि सरिका उसके पापा को फीस के कारण बुला रही हूं।
" नहीं बेटा फीस की बात नहीं है कुछ बात करनी है मुझे तो तुम ट्यूशन के टाइम से थोड़ा पहले आना पापा को ले!" सरिका हंसते हुए बोली।
अगले दिन...
" जी मैडम आपने बुलाया था!" सिया के पापा मुकुल जी आकर बोले।
" मुकुल जी मैने सुना है आप सिया का ट्यूशन हटवा रहे हैं पर क्यों वो कैसे पढ़ेगी कैसे आपके सपने पूरे करेगी!" सारिका बोली।
" मैडम मजबूरी है अभी मेरी उनका पेट ही मुश्किल से भर पाऊंगा अपनी सेविंग्स से !" मुकुल जी बोले।
" देखिए मुकुल जी सिया एक बहुत होशियार और समझदार बच्ची है मै नहीं चाहती उसका भविष्य खराब हो तो आप उसे ट्यूशन भेजते रहें फीस की फिक्र ना करें आप!" सारिका बोली।
" पर मैडम ऐसे कैसे बिना फीस हमे कोई एहसान नहीं चाहिए!" मुकुल जी निगाह झुका कर बोले।
" मैं कोई एहसान नहीं कर रही मुकुल जी इतने बच्चे पढ़ाए हैं जीवन में खूब कमाया भी है एक बच्ची को ऐसे ही पढ़ा भी दूंगी तो ये एहसान तो नहीं!" सारिका बोली।
" पर फिर भी!" मुकुल जी अभी भी झिझक रहे थे।
" तो ठीक है मुकुल जी आप सोचिएगा सिया को उसकी बुआ पढ़ा रही बस ... अब तो कोई एहसान नहीं है ना !" सारिका हंसते हुए बोली।
" मैडम आपका ये एहसान नहीं भूलूंगा मैं!" मुकुल जी बोले।
" अब आप शर्मिंदा कर रहे हैं मुझे इसमें मेरा खुद का स्वार्थ है क्योंकि सिया से मुझे लगाव हो गया है और फिर इतनी होशियार स्टूडेंट को कौन टीचर छोड़ना चाहेगी!" सारिका बोली।
मुकुल जी सिया को छोड़ वहां से हाथ जोड़ के चले गए। सारिका सिया को दुगनी मेहनत से पढ़ाने लगी कुछ महीनों बाद मुकुल जी की नौकरी लगी भी पर पहले से बहुत कम आय पर फिर भी उन्होंने सारिका की फीस देना चाही!
पर सारिका ने कहा "अब जो रिश्ता बनाया है सिया से बुआ भतीजी का वो मुझे इजाज़त नहीं देता की मैं बच्ची के पैसे लूं।"
सिया सारिका के पास दो साल और पढ़ी पर उस ने एक पैसा नहीं लिया फिर वो लोग अपने पुश्तैनी शहर चले गए। सिया उससे फोन पर बात करती रही कोई परेशानी होती तो भी सारिका उसे समझा देती ।
" मैडम जी मैं इंटर में अपने स्कूल में फर्स्ट आई हूं!" आज सिया ने फोन कर कहा।
" बहुत बहुत बधाई मेरी बच्ची अब आगे क्या सोचा है!" सारिका खुश होते हुए बोली।
" मैडम जी मैं अब बीकॉम करूंगी उसके बाद बीएड फिर आपके जैसे टीचर बनूंगी और आपकी तरह गरीब बच्चों कि मदद करूंगी!" सिया बोली।
आज अपने एक फैसले पर गर्व हो रहा था सारिका को भले उसने छोटी सी मदद की सिया की पर उस बच्ची के मन पर को असर हुआ वो बड़ा था सारिका को खुशी थी एक सिया जाने कितनी सारिका खड़ी कर सकती जो गरीबों की ऐसे मदद करें वैसे भी किसी को शिक्षित करना तो पुण्य का काम है।