मौन व्यथा
मौन व्यथा
विशाखा इस कमरे में बैठे आँखों में आंसू लिये सोच रही थी। ये मां का कमरा कितना गुलजार रहता था। सब मोहल्ले के बच्चे मां से हिले हुये थे। मां हमेशा हंसती रहती थी। तीन भाई बहनों में सबसे बड़ी थी बिशाखा। मोहल्ले की लड़कियां मां के पास आती थी कोई सूट कटवाने ,कोई कढाई पूछने किसी को पढाई में परेशानी आ रही हो महिलाएं भी आती रहती थी।अपनी अपनी समस्याओं के साथ मां सबका सहयोग करती।
मां घर का प्रबन्धन भी सुघड़ता से करती। विशाखा बड़ी हो रही थी। मां उसका आदर्श थी। वह पापा को भी बहुत प्यार करती थी। पापा भी बच्चों पर जान छिड़कते थे ,पर मां को हमेशा कुछ तीखा बोलना उनका स्वभाव था कभी कभी मां लड़ जाती थी पर कभी कभी रात को अंधेरे में उनको रोते देखा था। वह जब छोटी थी तो समझ नहीं पाती थी। जैसे जैसे बड़ी होती गयी सब समझ आने लगा मां बहुत सुन्दर थी। शादी के बाद पापा के परिवार में उनकी सुन्दरता ही उनके लिये अभिशाप हो गयी थी। मां के लिये काफी चारित्रिक लांछन लगाये गये थे। मां वह टीस जिन्दगी में भूल नहीं पाई और पापा से भी पत्नी धर्म निभाते हुये भी एक दूरी थी।
हम तीनों भाई बहन अपनी गृहस्थी में रम गये थे मां ने अपने को बिलकुल शान्त कर लिया था। अब भी वह पापा का पूरा ख्याल रखती। कभी पापा अपने भाई बहनों की बात किसी के सामने करते पता नहीं मम्मी वहाँ से उठ कर चुपचाप काम में लग जाती। विशाखा डा. थी उसने बहुत कोशिश की कि मां को इस चुप्पी से निकाले। पापा शायद अब भी मम्मी को नहीं समझ पाये और एक दिन जिसका डर था वही हुआ। पापा का कोई रिश्तेदार आया पता नहीं किसी बात पर पापा मां से बहुत तेजी से बोल गये। उनके जाने के बाद मां बोली अब बहुत होगया शायद आज के बाद आप पछताओगे।
मेरी फोन पर मां से रात को बात हुई कुछ दिन से मां की तबियत सही नहीं थी वह मानसिक रूप से टूट गयी थी मेरे पूछने पर बोली में सही हूँ जल्दी ही तुम तीनों मुझसे बच्चो को लेकर मिलने आओगे और रात में दर्द उठा पापा को तो बताती ही नहीं थी और हमेशा के लिये विदा हो गयी।
इतनी ही देर में उसकी बहन और भाई उसके पास आगये वह तीनों आपस में लिपट कर रोने लगे पापा भी खड़े थे आंखो में आंसू लिये तीनों पापा को चुप करने लगे विशाखा आप मां को समझ ही नहीं पाये। कोई बात उनको जिन्दगी भर व्यथित करती रही। चलो अब सब शान्त हो गया।