मैं सब से अलग हूं।

मैं सब से अलग हूं।

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तीसरी कक्षा में लखन का एडमिशन जब मेरी क्लास में हुआ तो मुझे देखने में वह कुछ असामान्य से लगा। कक्षा के सभी बच्चों से कद काठी में वह काफी छोटा था लेकिन उम्र में उनसे 2 साल बड़ा था। पैरों में भी उसके कुछ अंतर था। जिसकी वजह से वो ठीक से चल नहीं पाता था और उसके आगे के तीन चार दांत भी नहीं थे।

उसके पेरेंट्स से पूछने पर पता चला कि दूध के दांत टूटने के बाद उसकी जगह नए दांत आए ही नहीं। इस वजह से वह सही से नहीं बोल पाता था। इससे पहले वह कहीं पढ़ा भी नहीं था। हां, घर पर अपनी बड़ी बहन से कुछ अक्षर ज्ञान उसने सीखा था।

खैर मैंने सब बच्चों से उसका परिचय करवाया और उसे दोस्त बनाने के लिए कहा। मैंने उसे सिलेबस ना करवा अक्षर ज्ञान से शुरुआत करवाई। मैं नहीं चाहती थी कि उस पर अधिक बोझ पड़े। मेरा उद्देश्य था पहले वह कक्षा में एडजस्ट हो जाए। जो काम भी उसे देती वह झट से कर लेता ।अक्षर भी वह बहुत सुंदर बड़े-बड़े लिखता था। जब भी मैं उसे शाबाशी देती, उसकी आंखों में एक चमक सी आ जाती ।

एक दिन लंच मे वह बाहर नहीं गया और कक्षा में ही उदास बैठा रहा‌। कारण पूछने पर बोला "कोई भी मेले साथ नहीं खेलता।" और रोने लगा। किसी तरह मैंने उसे चुप करवाया तो वह फिर बोला "मैम जी मेले को पता है, मैं सब से अलग हूं ना इसलिए कोई मेला दोस्त नहीं बनता।" मुझे कारण जान थोड़ा दुख हुआ । फिर मैंने हंसते हुए कहा "हां तुम तो सबसे अलग हो।"

"आप भी मेला मजाक उड़ा लही हो।"

"अरे नहीं बेटा मजाक नहीं कर रही हूं। देखो ना तुम सारी क्लास में सबसे सुंदर वह जल्दी लिखते हो। हर बात तुरंत याद कर लेते हो और आवाज कितनी तेज है तुम्हारी और हां दौड़ते कितना तेज हो।"

"पल मैं दौड़ते हुए गिल जाता हूं ना! मैम जी।"

"पर फिर संभल कर दौड़ने भी तो लगते हो।"

मेरी बातें सुन उसकी आंखों में चमक व चेहरे पर मुस्कान तैर गई।

"तुम ऐसे ही मेहनत करते रहो। देखना एक दिन यह दुनिया तुम्हारी मुट्ठी में होगी और सब तुमसे दोस्ती करने के लिए खुद आगे आएंगे और हां लोगों की हंसी से कभी मत घबराना बल्कि इसे अपनी ताकत बनाना।" क्योंकि "मैं सब से अलग हूं। यह कह वह मुझसे लिपट गया।"

इसके बाद तो उसमें जैसे कुछ कर गुजरने की ललक जग गई। कक्षा में पढ़ाई के साथ-साथ विद्यालय के स्पेशल टीचर की क्लास में भी वह जाता । जिससे उसका आत्मविश्वास काफी बढ़ गया। कुछ ही महीनों में उसने क्लास का सिलेबस कवर कर लिया ।तीसरी कक्षा में उसका रिजल्ट भी काफी अच्छा आया।

चौथी कक्षा में एक बार औचक निरीक्षण के लिए स्कूल इंस्पेक्टर आए। जहां दूसरे बच्चे कुछ हिचक के साथ जवाब दे रहे थे। लखन का हर जवाब आत्मविश्वास से भरा था। जाते हुए उन्होंने उसकी पीठ थपथपा कर शाबाशी दी।

दिव्यांग बच्चों की अंतर क्षेत्रीय दौड़ प्रतियोगिता में भी उसे प्रथम स्थान मिला। अपनी प्रतिभा के दम पर उसने भाषण प्रतियोगिता में भी कई पुरस्कार जीते।

पांचवी कक्षा के विदाई समारोह के समय हम दोनों ही काफी भावुक हो गए थे ।मैंने जाते हुए उसे यही कहा "लखन अपनी मंजिल पर नजर रखना और कभी अपना हौसला टूटने मत देना। मेहनत ही तुम्हारा वह हथियार है, जिससे तुम अपनी तकदीर बदल दुनिया अपनी मुट्ठी में कर सकते हो।" " क्योंकि मैं सब से अलग हूं और यह मेरी ताकत है। मैम जी देखना मैं कभी आपका विश्वास टूटने नहीं दूंगा और 1 दिन कुछ बनकर दिखाऊंगा।"


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