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Madhu Vashishta

Tragedy

4  

Madhu Vashishta

Tragedy

मैं भला इसका क्या करूंगी?

मैं भला इसका क्या करूंगी?

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"उफ्फ नहाने जाओ नहीं, बेल पहले बज जाती है, वैसे ही कितनी कड़कड़ाती ठंड है", बड़बड़ाते हुए राधिका जी ने शाल उठाया और बाथरूम से बाहर दरवाजा खोलने आ गईं। कुरियर वाला था, उन्होंने तो कुरियर से कुछ मंगवाया नहीं हालांकि कुछ साइट्स पर उन्होंने लेडीज सूट और साड़ियां देखे तो थे पर यह सोच कर कि अभी तो पूरी अलमारी भरी रखी है। मुझे कौन सा कहीं आना जाना है, हद से हद पार्क या मंदिर तक ही तो जाती हूं उसके लिए नए सूट या साड़ी की क्या आवश्यकता? गर्मियों में देखेंगे, ऐसा सोचते हुए उन्होंने कुछ भी ऑर्डर नहीं किया था।

वाणी और गौरव (राधिका जी के बेटे बहू) जो कि दोनों ही सुबह ऑफिस जाते हैं और शाम तक ही आ पाते हैं। क्योंकि दोनों ही एमएनसी में काम करते हैं इसलिए खाना भी अक्सर वहां ही खा लेते हैं। राधिका जी भी इंग्लिश की प्रोफेसर के पद से रिटायर हो चुकी हैं। पति की मृत्यु और रिटायरमेंट के बाद हालांकि वह काफी अकेली हो गई थी लेकिन उन्होंने अपना ध्यान मंदिर और घर में ही लगा लिया था। वैसे भी घर बैठकर वह कुछ बच्चों को तो इंग्लिश फ्री पढ़ाती थीं। इससे उनका भी मन लग जाता था। कभी पार्क या कीर्तन में भी चली जाती थी।

घर में मोबाइल कंप्यूटर और टीवी का भी पूरे दिन का अकेलापन दूर करने के लिए बहुत बड़ा सहारा था। उन्हें मोबाइल एप्स का पूरा पता था जरूरी चीजें वह अक्सर मोबाइल एप्स के द्वारा ही मंगवा लेती थी। उनके पास उनकी और उनके पति की दोनों की पेंशन भी आती थी और दूसरे घर का किराया भी आता था इसलिए उन्हें पैसों की भी कोई किल्लत नहीं थी। बाहर उन्होंने देखा कि कुरियर वाला एक बहुत बड़ा कुरियर लेकर खड़ा है। उन्होंने रिसीव करा। पेमेंट गौरव कर चुका था। राधिका जी उसे अंदर लाई और देखा वह एक बहुत बढ़िया वाला रूम हीटर था।

वाणी जी को अपने बेटे गौरव पर बहुत प्यार आया , कल ही जब वह ऑफिस से आए थे तो राधिकाजी गौरव को कह रही थी कि कितनी कड़क ठंड है आजकल तो दोपहर को धूप में भी नहीं बैठा जा सकता ।सूरज तो निकल ही नहीं रहा। बेटे ने उनकी इस बात को सुनने के बाद में शायद उनके लिए रूम हीटर का आर्डर कर दिया। वैसे भी लोग अपने बेटा बहू के लिए कुछ भी बोले लेकिन गौरव और वाणी उसका कितना ख्याल रखते हैं। लेकिन गौरव को पता नहीं क्या कि राधिका जी ने कभी भी जिंदगी में रूम हीटर का इस्तेमाल नहीं करा। ना कभी ऑफिस में ना घर में। ऐ.सी की तो भले ही उन्हें आदत पड़ गई हो लेकिन रूम हीटर से उसको लगता है कि कमरा बंद करते ही दम सा घुटने लगता है और हीटर के कमरे से बाहर निकलते ही जुकाम हो जाता है। इसलिए उन्होंने कभी भी जिंदगी में रूम हीटर खरीदा ही नहीं।

लेकिन कोई बात नहीं इतनी ठंड में जब कंपकपी आ जाती है तब थोड़ी देर चला कर बंद कर लूंगी, दोपहर को थोड़ी देर तो हीटर में बैठा ही जाएगा। आखिर गौरव ने मेरे लिए हीटर मंगवाया है कितने पैसे खर्च करे होंगे। मैं पे.टी.एम से उसके पैसे जरूर वापस कर दूंगी। बेचारा बच्चा, वह तो यूं ही पैसे खर्च करता रहता है, लेकिन कोई बात नहीं अपने लिए अभी क्यों मैं उससे पैसे खर्च करवाऊं, एक समय आएगा तो उसका खर्चा ही बढ़ेगा और तब तक के लिए अपने पैसे संभाल के रख ले वही अच्छा।इन छोटी-छोटी बातों से गौरव अपना प्यार दिखाता है तो कितना अच्छा लगता है।

इन्हीं खुशनुमा ख्यालों में बैठे-बैठे उसने देखा कि बच्चे इंग्लिश पढ़ने के लिए आ गए आज तो फिर भी धूप निकली थी‌। वह बच्चों को लेकर घर के गार्डन में ही बैठ गई। गौरव और वाणी के शाम को आकर पीने के लिए उसने थोड़ा सा सूप भी बना लिया। चाय तो दोनों दफ्तर में ही पी लेते हैं सूप उन्हें अच्छा लगेगा। यूं ही शाम भी हो गई थी और बच्चों के आने का समय भी हो रहा था। थोड़ा सा सूप पीकर वह बैठी ही थी कि डोर बेल बजी। मम्मी जी गुड इवनिंग कहते हुए वाणी और गौरव दोनों घर में घुसे।

मुस्कुराते हुए राधिका जी ने दोनों का स्वागत किया और कैटल में से दोनों को गर्म सूप पीने के लिए कहा। सूप लेते हुए दोनों ने राधिका जी का हाल पूछा तो राधिका जी ने गौरव को बताया कि तुम्हारा एक कुरियर आया था। "अरे हां मम्मी, वाणी को बहुत ठंड लगती है तो मैंने कमरे के लिए लिए रूम हीटर मंगवाया है", गौरव ने कहा।

मम्मी एक आपके लिए भी मंगवा लें, वैसे बहुत ठंड है आजकल के हीटर सिर्फ गर्म हवा फेंकते हैं उनसे ना तो करंट का डर होता है और ना ही दम घुटता है। एक आप भी मंगवा लो ना? चाहो तो यही रख लो हम दूसरा मंगवा लेंगे"? वाणी ने कहा। बच्चे सूप पी चुके थे।

राधिका जी उठी और कोरियर वाला रूम हीटर गौरव को पकड़ाती हुई बोली, "नहीं, तुम ही रख लो, मैं इसका क्या करूंगी?" ऐसा कहती हुई वह भी अपने मोबाइल में अमेज़न में कुछ सर्च करने लगीं।



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