alpana bajpai

Tragedy Inspirational

4.6  

alpana bajpai

Tragedy Inspirational

मैं बेचारी नहीं हूँ

मैं बेचारी नहीं हूँ

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चीफ एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर के पद पर पहुंच कर रश्मि बहुत खुश थी। उसके काम से खुश होकर कंपनी के मालिक ने उसके सम्मान में एक जलसा का आयोजन किया था जिसमें उसको सम्मानित किया गया था। तालियों की गड़गड़ाहट के मध्य अचानक से अतीत की स्मृतियां उसे घेरने लगीं।

बेचारी ! बेचारी ! रश्मि बचपन से ही यह शब्द सुनती आ रही थी। उसकी दुबली पतली काया को देख कर सब लोग उसे 'बेचारी' कह कर चिढ़ाते थे।

वो आज भी नहीं भूली है कुछ भी। एक-एक करके अतीत की सारे घटनाएं चलचित्र की भांति उसकी आँखों के सामने से गुजरते जा रहीं थी।

एक दिन उसका भाई उसकी चॉकलेट छीन कर भाग गया तो उसने मम्मी को आवाज लगाई -मम्मी ! देखो भैया मेरे चॉकलेट लेकर भाग गए हैं। अरे ! शुभम, दे दो उसको उसकी चॉकलेट देखते नहीं बेचारी कितनी दुबली पतली है। यदि कभी कुछ काम करने की बारी आती तो भी यही कह कर अरे ! रहने दे, थक जाएगी बिचारी पहले ही कितनी दुबली पतली है, 'बेचारी 'शब्द सुन सुनकर उसका बचपन कब बीत गया उसे पता ही नहीं चला। जैसे-जैसे उम्र बढ़ रही थी उसे इस बिचारी शब्द से नफरत से होती जा रही थी। जवानी में भी इस बेचारी शब्द ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। पढ़ाई करके एक दिन शादी करके रश्मि ससुराल आ गई। रश्मि ससुराल आकर बहुत खुश थी। उसे लगा यहां पर उसके सपनों को उड़ान मिलेंगी परंतु यहां भी बेचारी शब्द ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। बचपन में जिस बेचारी शब्द के पीछे सहानुभूति होती थी वही ससुराल में ताने छिपे रहते थे।

धीरे धीरे रश्मि को समझ आने लगा कि ससुराल में उसकी जगह एक नौकरानी से ज्यादा कुछ भी ना थी। सास, ननद, देवर, ससुर, पति इन सब की गुलामी करते रहो तो अच्छी भाभी, बहू,अच्छी पत्नी और यदि भूले से भी कहीं कुछ गलती हो जाए तो वहीं व्यंग बाण -अरे !छोटे शहर से आई है ना बेचारी इसलिए। इसे क्या पता, बड़े शहरों में कैसे होता है। अभी तो इसे सीखने में बहुत समय लगेगा। ऐसी बातों से अक्सर रश्मि घायल हो जाया करती थी। धीरे धीरे उसकी हिम्मत जवाब देने लगी। आखिरकार सहन करने की भी एक सीमा होती है।

उस दिन पहली बार रश्मि ने सबके सामने अपने जुबान खोली- हां, हां, मुझे मालूम है कि आप लोग छोटे शहर वाली लड़की से शादी करके क्यों लाए हैं, सब समझती हूं मैं, पागल नहीं हूं। आप लोग दिन रात काम करवाते हैं और छोटे शहर के होने का ताना देकर मुझे यह एहसास कराने की कोशिश में लगे रहते हैं कि मुझसे रिश्ता जोड़ कर आप लोगों ने मेरे ऊपर बहुत बड़ा एहसान किया है। सच तो यह है कि आप लोगों को बहू, भाभी या पत्नी, नहीं नौकरानी चाहिए थी जो 24 घंटे आप लोगों के घर में काम करें।

देखा! ना देखा मैं ना कहती थी, यह सीधी नहीं है बस सीधा होने का ढोंग करती है। आने दो आज शाम को भैया को बताती हूं कि उनकी पत्नी की करतूत।

कैसे पटर पटर जुबान चलाती है अपने सास ससुर के सामने। शाम को प्रवीन जब ऑफिस से लौटता है।

अरे रश्मि ! एक गिलास पानी तो देना। मैं मां के कमरे में जा रहा हूं, पानी वही ले आना। अच्छा ठीक है रश्मि ने कहा।

रोज का रूटीन था ऑफिस से आने के पश्चात प्रवीण सबसे पहले अपनी मां के कमरे में जाते थे उनका हालचाल पूछने के लिए। लीजिए पानी।

अरे! रश्मि सिर्फ एक गिलास पानी तुम्हें इतनी भी अक्ल नहीं कि कमरे में मां है समीक्षा है प्रतीक्षा है आ रही थी तो सबके लिए पानी ले आती। तभी प्रतीक्षा बोली- रहने दो भैया, हम लोग अपने आप पानी पी लेंगे। इनको क्या लगता है यह पानी नहीं देंगी तो हम प्यासे मर जाएंगे सासू मां ने बोलीं- क्या तुम्हारे मायके में यह भी नहीं सिखाया गया कि शाम को जब पति आए तो उसे खाली पानी नहीं देते, कुछ मिठाईयां बिस्किट बगैरा ही ले आती।

ऐसी बात नहीं है मम्मी, मैंने सोचा कि पहले पानी दे देती हूं। उसके बाद चाय के साथ में बिस्किट बगैरा ले आऊंगी। मैं यही पूछने आई थी कि आप लोग भी चाय पिएंगे। क्या आप लोग भी से क्या मतलब है तुम्हारा रश्मि? प्रवीण ने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा।जाओ सब के लिए चाय बना कर लाओ।

दिन ऐसे ही बीत जा रहे थे। रश्मि के अंदर कुछ तो था जो उसको बेचैन कर रहा था। एक दिन अखबार पढ़ते समय विज्ञापन में उसने मार्केटिंग मैनेजर की पोस्ट के लिए विज्ञापन देखा तो अचानक से उसको अपने एम.बी.ए. होने का ख्याल आया। पहली बार उसने घर में बिना किसी को बताए उस पोस्ट के लिए आवेदन कर दिया। तीन दिन के पश्चात इंटरव्यू के लिए जाना था। उसने जल्दी-जल्दी घर का सारा काम निपटाया और इंटरव्यू देने चली गई भगवान ने साथ दिया उसको नियुक्त कर लिया गया।आठ दिन के अंदर ऑफिस में रिपोर्ट करना था। डूबते को जैसे तिनके का सहारा मिल गया था। रश्मि आज बहुत खुश थी इतने सालों के पश्चात ही सही अपने पैरों पर खड़े होने जा रही थी।

उसके सामने सबसे बड़ा प्रश्न था कि ससुराल वालों को कैसे बताया जाये ? वह शाम होने का इंतजार करती रही जब शाम को प्रवीण घर लौटे तो रश्मि चाय लेकर मांजी के कमरे में गयी। वहां पर रोज की तरह घर के सारे सदस्य बैठे हुए थे। छोटी ननद रोजाना की तरह उसको छोटा दिखाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रही थी।

रश्मि ने धीरे से अपने सास-ससुर से पूछा -मम्मी पापा में नौकरी करना चाहती हूं। यह सुनते ही इससे पहले कि प्रवीण कुछ बोले या सास-ससुर कुछ जवाब दें बड़ी ननद बोली- तुम और नौकरी ?तुमको क्या लगता है कि तुम जो डिग्री लाई हो उससे तुमको इस शहर में नौकरी मिलेगी? प्रवीण ने कहा -तुमको नौकरी करने की क्या जरूरत है? सासू मां बोली- शायद दिन भर काम करती है ना इससे छुटकारा पाने के लिए नौकरी करने की सोच रही होगी। बस सुबह तैयार हुई बैग लटका कर चल दिए नौकरी करने, घर के कामों का झंझट खत्म।

छोटी बहू

छोटी ननद बोली- भाभी जाओ और देख लो जाकर तुमको कहीं कोई नौकरी दे दे। अगर तुम को नौकरी मिल जाती है तो हम लोग मना नहीं करेंगे। क्यों भैया आप रुकोगे? नहीं ना।

रश्मि ने एक बार फिर पूछा अगर मुझे नौकरी मिल गई तो सच में आप लोग करने दोगे। ससुर जी बोले- अगर मिल जाती है तो हमें कोई एतराज नहीं होगा। रश्मि को क्या चाहिए था बस एक मौका जो उसे मिल गया था। एक हफ्ते बाद उसको जॉइन करना था। दो-तीन दिन उसने नौकरी ढूंढने का बहाना किया। एक दो जगह इंटरव्यू देने गए बाद में घर में नियुक्ति पत्र दिखाया। तीन दिन पश्चात उसको जॉइन करना है मार्केटिंग मैनेजर की पोस्ट थी तनख्वाह अच्छी थी, अब घर के सदस्य कैसे उसको मना करें। इस पर भी छोटी ननद ने आखिरी वार किया। जाओ, जाओ जब रोज नौकरी करने जाना पड़ेगा ना, तब समझ में आएगा कि पैसे इतनी आसानी से नहीं कमाए जाते जो तुम घर में बैठे-बैठे फिजूलखर्ची करती रहती हो अब सब समझ में आ जाएगा। रश्मि ने कोई जवाब देना मुनासिब नहीं समझा और वापस आकर अपने को नए माहौल में ढालने की तैयारी करने लगी। धीरे-धीरे उसकी काबिलियत से खुश होकर उसको दो ही साल में मैनेजिंग डायरेक्टर पद पर नियुक्त कर दिया गया। शाम को घर लौटते वक्त वह बहुत खुश थी। मैनेजिंग डायरेक्टर की पोस्ट मिलना उसके लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। उसने मिठाई खरीदी और खुशखबरी देने के लिए जल्दी जल्दी घर आने लगी खुशी में उसे यह ध्यान ही नहीं रह गया जहां वह जा रही है उसकी खुशियां बांटने वाला तो कोई भी अपना नहीं है। वहां घर में पहुंचते ही सासु मां बोली- आ गई बहू। उनका रवैया थोड़े दिनों से उसके प्रति कुछ नरम हो चुका था।

उसको समझ में नहीं आया था वक्त ने समझाया या वह जो पैसे लेकर आती है उसकी वजह से ऐसा है। पर उसने उधर ध्यान देना भी जरूरी नहीं समझा। अरे मम्मी पापा, मेरा आज प्रमोशन हुआ है। अरे वाह आप कौन सा किस पोस्ट पर मम्मी ने पूछा-

मेरा प्रमोशन मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर हो गया है।और तनख्वा भी बढ़ गई है। प्रवीण भी वहीं बैठे थे। वह अपने कंपनी में मैनेजर और मैं मैनेजिंग डायरेक्टर यह बात उनको हजम नहीं हुई जोर से चिल्लाते हुए बोले -रश्मि यह सब क्या लगा रखा है। मैंने पहले ही मना किया था कि नहीं करो नौकरी, मेरी तनख्वाह से घर चल रहा था ना ! फिर क्या कमी थी तुमको जो नौकरी करने जा रही हो? देखो रात के 8:30 बज गए हैं अभी तुमने खाना बनाना शुरू नहीं किया। कब खाना बनाओगी? कब हम लोग खाएंगे? समय का तो तुमको ख्याल ही नहीं है। ऐसे ही देर सवेर खाना देती रही तो एक दिन घर के सारे लोग बीमार हो जाएंगे। कोई जरूरत नहीं है कल से नौकरी पर जाने की। उन लोगों को बोल दो कि तुम रिजाइन कर रही हो। रश्मि ने पहली बार पूर् जोर आवाज में प्रवीण का विरोध किया बोली- मैं नौकरी नहीं छोड़ने वाली जिस दिन से इस घर में आयी हूँ, किसी ने मेरे खुशियों की, मेरे आप सम्मान की परवाह नहीं की। बेचारी, बेचारी ! कह कर मुझसे सारा काम करवाते रहे। किसी ने यह भी नहीं सोचा कि मुझे कैसा लगता होगा। अब यह छोटी सी खुशी मिली है इसको आप लोग छीन नहीं सकते और सुनिये- मैं बेचारी नहीं हूं। मेरे शब्दों को ध्यान से सुनिए मैं बेचारी नहीं हूं अगर आपको मेरा नौकरी करना पसंद नहीं है तो मैं यह घर छोड़ कर दूसरे घर में चली जाऊंगी वैसे भी कंपनी की तरफ से मुझे घर मिल रहा है पर मैं अब यह नौकरी नहीं छोडूंगी। यह कहकर रश्मि अपने कमरे में जाकर अपने सामान पैक करने लगी। आज शायद उसको इस बेचारी शब्द से मुक्ति मिल गई थी।


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